क्या सचिन पिलगांवकर ने 'शोले' में दोहरी जिम्मेदारी निभाई और एक्शन टीम की भी कमान संभाली?

सारांश
Key Takeaways
- सचिन पिलगांवकर ने 'शोले' में दोहरी जिम्मेदारी निभाई।
- उनका अभिनय समय के साथ और गहरा होता गया है।
- सचिन ने विभिन्न भाषाओं में फिल्में की हैं।
- टीवी में भी उनकी पहचान बनी है।
- उनकी कहानी प्रेरणादायक है।
मुंबई, 16 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। जब बात हिंदी सिनेमा के उन अदाकारों की होती है, जो समय के साथ नहीं बदले, तो सचिन पिलगांवकर का नाम सबसे पहले आता है। उनकी आवाज और हाव-भाव के साथ-साथ उनका चेहरा भी वैसा ही है जैसा 40-50 साल पहले था। 67 की उम्र में भी वह लुक के मामले में युवाओं को चुनौती देते हैं, और उनका अभिनय तो वक्त के साथ और भी गहरा और प्रभावशाली होता गया। सचिन की कहानी केवल उनके चेहरे और अभिनय की खूबसूरती तक सीमित नहीं है, बल्कि उनकी बहुमुखी प्रतिभा से भी रंगीन है।
1975 की सुपरहिट फिल्म 'शोले' की बात करें, तो सचिन ने इसमें न केवल रहीम चाचा के बेटे अहमद का रोल निभाया, बल्कि वह फिल्म के असिस्टेंट डायरेक्टर भी थे। इस फिल्म की शूटिंग लगभग दो साल चली थी, और उस समय निर्देशक रमेश सिप्पी इतने सारे हिस्सों की शूटिंग एक साथ संभाल नहीं पा रहे थे। इसलिए उन्होंने अपनी पूरी टीम के साथ अलग-अलग यूनिट बनाई। एक्शन सीन और अन्य बड़े सीन की अलग-अलग टीमों ने काम किया। इसी बीच, रमेश सिप्पी ने सचिन को सेकंड यूनिट का जिम्मा सौंपा, यानी वे एक्शन सीन के शूट की निगरानी असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर करेंगे।
यह जिम्मेदारी किसी भी नए या साधारण कलाकार को नहीं दी जाती, लेकिन सचिन की लगन और फिल्म से जुड़ाव को देखकर सिप्पी ने उन्हें चुना। सचिन ने न केवल स्क्रीन पर अभिनय किया, बल्कि फिल्म के पीछे जाकर भी काम संभाला। इस किस्से का खुलासा उन्होंने राष्ट्र प्रेस से बात करते हुए किया था।
17 अगस्त 1957 को मुंबई के एक कोंकणी परिवार में जन्मे सचिन पिलगांवकर केवल एक कलाकार नहीं, बल्कि युवा पीढ़ी के लिए एक मिसाल हैं। उनकी कहानी बचपन से ही खास रही है, जब वे महज चार साल के थे। राजा परांजपे की मराठी फिल्म 'हा माझा मार्ग एकला' से उन्होंने फिल्मी दुनिया में कदम रखा, और इस बेहतरीन शुरुआत के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। इसके बाद उन्होंने कई बाल कलाकार के रूप में यादगार फिल्में दीं, जैसे 'अजब तुझे सरकार', जिसके लिए उन्हें एक बार फिर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया।
बचपन में मिली इस कामयाबी ने सचिन को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। उन्होंने लीड एक्टर के तौर पर 'गीत गाता चल', 'बालिका वधू', 'अंखियों के झरोखों से', और 'नदिया के पार' जैसी फिल्मों में लीड रोल निभाकर अपनी प्रतिभा का जादू बिखेरा। हर किरदार में उनकी सहजता और दमदार अभिनय को खूब सराहा गया।
वह केवल फिल्मों तक सीमित नहीं रहे, सचिन; उन्होंने हिंदी, मराठी, कन्नड़ और भोजपुरी सिनेमा में भी अपनी छाप छोड़ी। साथ ही, टीवी की दुनिया में भी उन्होंने कमाल किया। 'तू तू मैं मैं' और 'कड़वी खट्टी मीठी' जैसे लोकप्रिय धारावाहिकों में उनके अभिनय ने दर्शकों का दिल जीत लिया। न सिर्फ एक अभिनेता, बल्कि एक निर्देशक के रूप में भी उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई। सचिन पिलगांवकर की यह यात्रा लोगों के लिए प्रेरणादायक है।