क्या 'डर के आधार पर फिल्म नहीं बनती'? 'हक' के निर्देशक और लेखक सुपर्ण वर्मा का बयान
सारांश
Key Takeaways
- महिला अधिकारों का मुद्दा केवल भारत में ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी महत्वपूर्ण है।
- सुपर्ण वर्मा ने फिल्म के माध्यम से संवेदनशील विषयों पर चर्चा की है।
- फिल्म 'हक' महिलाओं की सफलता और संघर्ष की कहानी है।
- महिला सशक्तीकरण और समानता पर जोर दिया गया है।
- संवेदनशील मुद्दों पर बातचीत करना आवश्यक है।
मुंबई, 5 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। बॉलीवुड के निर्देशक और लेखक सुपर्ण वर्मा अपनी नई फिल्म 'हक' के लिए चर्चा में हैं। दर्शकों के बीच फिल्म को लेकर खासी उत्सुकता देखी जा रही है। यह फिल्म महिलाओं के अधिकारों के एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर केंद्रित है और भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण बदलाव को उजागर करती है। इसी क्रम में, सुपर्ण वर्मा ने फिल्म बनाने के पीछे की प्रेरणा के बारे में बताया।
राष्ट्र प्रेस से बातचीत में, सुपर्ण वर्मा ने कहा कि 'हक' एक ऐसा मुद्दा उठाती है जो न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में महिलाओं के अधिकारों से संबंधित है।
उन्होंने कहा, ''भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और यहाँ होने वाली घटनाओं का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव पड़ता है। भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई को दिखाना न केवल राष्ट्रीय बल्कि वैश्विक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।''
सुपर्ण वर्मा ने बताया कि फिल्म का प्रेरणास्रोत शाह बानो केस है, जिसे भारत में महिलाओं के अधिकारों के लिए एक मील का पत्थर माना जाता है।
गौरतलब है कि 62 वर्षीय शाह बानो ने अपने पति से तलाक के बाद गुजारा भत्ता की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि सेक्शन 125 के अंतर्गत गुजारा भत्ता का अधिकार सभी नागरिकों को है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।
हालांकि, यह फैसला कुछ मुस्लिम समूहों को स्वीकार नहीं हुआ। उनका तर्क था कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय मुस्लिम पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप कर रहा है। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित कर इस फैसले को प्रभावित किया और मुस्लिम पर्सनल लॉ की स्वतंत्रता को बहाल किया।
सुपर्ण वर्मा ने कहा, ''इस तरह के संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दों पर काम करना चुनौतीपूर्ण होता है, लेकिन डर के आधार पर फिल्म नहीं बनती। मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि मैं उस विषय को पूरी गहराई से समझूं, ताकि दर्शकों तक सही संदेश पहुंचा सकूं।''
निर्देशक ने यह भी कहा, ''महिला अधिकार केवल भारत तक सीमित नहीं हैं। दुनिया भर की महिलाएं भेदभाव और कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करती हैं। इसलिये, फिल्म 'हक' का संदेश बहुत व्यापक है। यह फिल्म महिलाओं की सफलता और उनके संघर्ष की कहानी है। इसमें पुरुष पात्र भी हैं, लेकिन यह मुख्य रूप से महिला सशक्तीकरण और समानता के इर्द-गिर्द घूमती है।''
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि समाज में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत करना आवश्यक है। यदि हम इन मुद्दों पर खुलकर चर्चा करें, तो न केवल हमारी सोच और समझ बढ़ती है, बल्कि हम एक बेहतर समाज के लिए भी तैयार होते हैं।