क्या विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर कई हिंदी फिल्मों ने बंटवारे के दर्द को दर्शाया?

सारांश
Key Takeaways
- विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस हर वर्ष 14 अगस्त को मनाया जाता है।
- बॉलीवुड ने विभाजन की त्रासदी को कई फिल्मों के माध्यम से दर्शाया है।
- इन फिल्मों में मानवता, नफरत और प्रेम के जटिल रिश्तों को दिखाया गया है।
- विभाजन के समय के दर्दनाक अनुभवों को समझने का एक माध्यम फिल्में हैं।
- यह हमें एकजुटता और सहिष्णुता का संदेश देती हैं।
मुंबई, 14 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। 1947 का वह दिन, जब देश के बंटवारे के दौरान नफरत और हिंसा के कारण अनगिनत लोग बेघर हो गए, उसी की याद में 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मनाया जाता है। इस विभाजन ने कई लोगों के घर छोड दिए, अपने बिछड़ गए, दिल टूट गए और आंखों में वह भयानक दृश्य बस गया जो आज भी दिल दहला देता है। उस समय की दुश्वारियों को दर्शाते हुए और कई संवेदनशील मुद्दों को छूते हुए बॉलीवुड ने हमें कई यादगार फिल्में दी हैं।
चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म ‘पिंजर’ अमृता प्रीतम के उपन्यास पर आधारित है, जो विभाजन के दौरान महिलाओं की पीड़ा को बखूबी दर्शाती है। वर्ष 2003 में आई इस फिल्म में उर्मिला मातोंडकर ने 'पूरो' का किरदार निभाया, जिसे दर्शकों ने बेहद पसंद किया। पूरो एक हिंदू लड़की है, जिसे एक मुस्लिम युवक (मनोज बाजपेयी) द्वारा अपहरण कर लिया जाता है। यह फिल्म सामाजिक बंधनों, नफरत और मानवता के बीच के जटिल संबंधों को उजागर करती है। ‘पिंजर’ विभाजन की त्रासदी को प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करती है, जो दर्शकों को उसके दर्द के बारे में सोचने पर मजबूर कर देती है।
साल 2003 में आई सबीहा सुमर की फिल्म ‘खामोश पानी’ पाकिस्तान के एक गांव की कहानी है, जहां विभाजन की यादें एक महिला और उसके बेटे के जीवन को दर्शाती हैं। किरण खेर की शानदार एक्टिंग इस फिल्म को विशेष बनाती है। यह फिल्म एक पंजाबी गांव में रहने वाली विधवा मां और उसके बेटे की कहानी है।
अनिल शर्मा के निर्देशन में बनी ‘गदर’ विभाजन के दौरान प्रेम और बलिदान की कहानी को प्रस्तुत करती है। 2001 में आई इस फिल्म में सनी देओल और अमीषा पटेल मुख्य भूमिका में हैं। यह फिल्म एक सिख ट्रक ड्राइवर तारा सिंह और मुस्लिम लड़की सकीना की प्रेम कहानी को दर्शाती है। विभाजन की हिंसा और नफरत के बीच, तारा अपनी पत्नी और बेटे को बचाने के लिए पाकिस्तान जाता है। ‘गदर’ ने विभाजन के दर्द को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया है।
‘1947: अर्थ’ एक इंडो-कैनेडियन पीरियड रोमांस ड्रामा फिल्म है, जिसका निर्देशन दीपा मेहता ने किया है। यह बाप्सी सिधवा के उपन्यास 'क्रैकिंग इंडिया' पर आधारित है, जो 1947 के भारत विभाजन की कहानी है। कहानी लाहौर में भारतीय स्वतंत्रता के समय भारत के विभाजन से पहले और बाद की है। पोलियो से ग्रस्त 'लेनी', एक धनी पारसी परिवार की लड़की है, जो अपनी कहानी सुनाती है।
खुशवंत सिंह के उपन्यास पर आधारित पामेला रूक्स की फिल्म ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ 1998 में रिलीज हुई थी। यह एक पंजाबी गांव की कहानी है, जहां सिख और मुस्लिम समुदाय शांति से रहते हैं। लेकिन, विभाजन की हिंसा गांव को भी अपनी चपेट में ले लेती है। ट्रेन दृश्य, जिसमें लाशों से भरी रेलगाड़ी गांव पहुंचती है, विभाजन की भयावहता को दर्शाता है।