क्या 'चित्रा' वाले सरकार ने 'न्यू थिएटर' से भारतीय सिनेमा की नींव मजबूत की?
सारांश
Key Takeaways
- बी. एन. सरकार ने 1930 में न्यू थिएटर्स की स्थापना की।
- उन्होंने क्लासिक फिल्में जैसे 'देवदास' और 'चित्रलेखा' का निर्माण किया।
- सरकार ने तकनीकी रूप से उन्नत फिल्म स्टूडियो का निर्माण किया।
- उनका उद्देश्य सिनेमा को समाज का दर्पण बनाना था।
- चित्रा सिनेमा हॉल का उद्घाटन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने किया।
मुंबई, 27 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। जब हम भारतीय सिनेमा के पितामह की चर्चा करते हैं, तो दादासाहेब फाल्के का नाम सबसे पहले आता है। लेकिन उनके बाद एक ऐसा नाम है जिसने भारतीय फ़िल्म उद्योग को आधुनिक रूप दिया और स्टूडियो संस्कृति की शुरुआत की, वह हैं बिरेंद्र नाथ सरकार, जिन्हें बी. एन. सरकार के नाम से भी जाना जाता है।
साल 1901 में जन्मे दूरदर्शी सरकार ने कोलकाता के टॉलीगंज में 1930 में न्यू थिएटर्स लिमिटेड की स्थापना की। उस समय फिल्म निर्माण का मतलब था छोटे-छोटे शेड में कैमरा लगाकर शूटिंग करना। लेकिन बी. एन. सरकार ने कुछ बड़ा सोचा। उन्होंने कोलकाता में तकनीकी रूप से सबसे उन्नत फिल्म स्टूडियो बनवाया, जो कि साउंडप्रूफ था और इसमें प्रोसेसिंग लैब, रिकॉर्डिंग थिएटर और एडिटिंग रूम भी शामिल थे।
न्यू थिएटर्स द्वारा निर्मित फिल्में आज भी क्लासिक मानी जाती हैं, जिसमें ‘देवदास’, ‘चित्रलेखा’, ‘स्ट्रीट सिंगर’, ‘वचन’ और ‘धूप-छांव’ जैसे नाम शामिल हैं। इन फिल्मों में के. एल. सहगल, पंकज मलिक, प्रमथेश बरुआ जैसे दिग्गज जुड़े थे। इसमें उनकी पहली बोलती फिल्म बांग्ला भाषा की थी, जिसका नाम देने पाओना था।
यह पहली बार था जब हिंदुस्तानी फिल्मों में संगीत, कहानी और तकनीक का शानदार मेल हुआ। एक इंटरव्यू में बी. एन. सरकार ने कहा था, “मैं फिल्मों को सिर्फ मनोरंजन नहीं, समाज का दर्पण बनाना चाहता हूं। अगर एक फिल्म देखकर दर्शक अपने भीतर झांक ले, तो मेरा काम पूरा। यही भारतीय सिनेमा का भविष्य है।”
इसी लक्ष्य के साथ सरकार ने न्यू थियेटर्स में ऐसी फिल्मों को जगह दी, जो साहित्य के साथ जुड़ी रहीं। वह भी मनोरंजन के साथ।
हालांकि, सिनेमा के प्रति उनका प्रेम यूं ही नहीं आया, बल्कि यह बीज अंकुरित हुआ, जब कलकत्ता में उन्होंने अपने एक सिनेमा हॉल का निर्माण किया और नाम दिया 'चित्रा'। इस सिनेमा हॉल का उद्घाटन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने किया था। 'चित्रा' में बंगाली फिल्में तो दिखाई गईं ही, साथ ही 'न्यू सिनेमा' में हिन्दी की फिल्में भी प्रदर्शित होने लगीं। उन्होंने हिन्दी और बंगाली के साथ तमिल की 150 से अधिक फिल्मों का निर्माण किया, जो सफल रहीं।
बी. एन. सरकार के संघर्ष की दास्तां भी कम नहीं है। 1940 में उनके साथ एक भयानक हादसा हुआ, जिसमें उनका न्यू थिएटर्स स्टूडियो और रिकॉर्डिंग्स जलकर राख हो गए। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और थिएटर को फिर से खड़ा किया। इसके बाद 1944 में उन्होंने 'उदयेर पथे' शीर्षक की फिल्म बनाई, जो एक नई शुरुआत थी।
सरकार ने 1931 में न्यू थिएटर्स बनाकर भारतीय सिनेमा को पहला आधुनिक स्टूडियो दिया। ‘देवदास’, ‘चित्रलेखा’ जैसी क्लासिक फिल्में दीं और के.एल. सहगल, पंकज मलिक, बिमल रॉय समेत अन्य कलाकारों को संवारा और निखारा।