क्या आग में स्वाहा हुआ स्टूडियो, लेकिन हौसला नहीं डिगा? बी. एन. सरकार की प्रेरणादायक कहानी

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क्या आग में स्वाहा हुआ स्टूडियो, लेकिन हौसला नहीं डिगा? बी. एन. सरकार की प्रेरणादायक कहानी

सारांश

बी. एन. सरकार की कहानी एक जीवंत मिसाल है कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी एक व्यक्ति अपने सपनों को जी सकता है। आग से स्वाहा हुआ स्टूडियो, लेकिन उनका हौसला कभी नहीं टूटा। आइए जानते हैं उनकी प्रेरणादायक यात्रा के बारे में।

Key Takeaways

  • बी. एन. सरकार ने कठिनाइयों में भी अपने सपनों को नहीं छोड़ा।
  • आग ने उनके स्टूडियो को तोड़ा, लेकिन हौसला कभी नहीं टूटा।
  • उन्होंने कई युवा कलाकारों को मौका दिया।
  • सिनेमा में तकनीकी नवाचार का नेतृत्व किया।
  • भारतीय फिल्म जगत में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

मुंबई, 4 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। जीवन में कभी-कभी ऐसे क्षण आते हैं जो हमें तोड़कर रख देते हैं और हमारे सपनों को राख में बदल देते हैं। लेकिन वही राख कुछ लोगों के लिए उड़ने के नए पंख बन जाती है। बी. एन. सरकार की कहानी कुछ ऐसी ही प्रेरणादायक मिसाल है। वह सिर्फ एक फिल्म निर्माता नहीं थे, बल्कि सिनेमा के एक ऐसे साधक थे जिन्होंने भारतीय फिल्म जगत को नई दिशा दी। सन् 1940 में एक भीषण आग ने उनका पूरा न्यू थिएटर्स स्टूडियो, रिकॉर्डिंग्स और वर्षों की मेहनत को जला दिया। ऐसे समय में अगर कोई आम इंसान होता तो शायद टूट जाता, लेकिन बी. एन. सरकार ने हार नहीं मानी। उन्होंने उस राख से फिर अपने सपनों को जिंदा किया, नए कलाकारों को मंच दिया, और भारतीय सिनेमा को फिर से ऊंचाइयों तक पहुंचाया।

बी. एन. सरकार का पूरा नाम बीरेंद्रनाथ सरकार था। उनका जन्म 5 जुलाई 1901 को बिहार के भागलपुर में हुआ था। उनके पिता, सर निरेंद्रनाथ सरकार, बंगाल के पहले एडवोकेट जनरल थे, और उनके परदादा, पीरी चरण सरकार, ने अंग्रेजी भाषा की पहली भारतीय टेक्स्टबुक लिखी थी।

बी. एन. सरकार ने कोलकाता के प्रसिद्ध हिंदू स्कूल से पढ़ाई करने के बाद लंदन यूनिवर्सिटी से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। विदेश से लौटने के बाद उन्होंने कोलकाता में बतौर इंजीनियर करियर की शुरुआत की, लेकिन वह अपना बिजनेस करना चाहते थे। एक दिन उन्होंने सिनेमा हॉल के बाहर टिकट के लिए लंबी लाइन देखी, तो उन्होंने इसे अपने व्यवसाय के तौर पर शुरू करने का फैसला लिया, जहां लोग बिना देखे ही टिकट खरीदने को तैयार थे। यहीं से उन्होंने फिल्म निर्माण में कदम रखा।

उन्होंने पहले 'चित्रा' सिनेमा हॉल का निर्माण कराया, जिसका उद्घाटन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने किया था। इसके बाद 1931 में उन्होंने 'न्यू थिएटर्स' की स्थापना की, जो आने वाले दशकों में भारतीय सिनेमा की ताकत बना। शुरुआती कुछ फिल्में असफल रहीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 'देवदास', 'चंडीदास', और 'भाग्य चक्र' जैसी फिल्मों की सफलता ने उन्हें सिनेमा की दुनिया का बादशाह बना दिया। उन्होंने केवल फिल्में नहीं बनाईं, बल्कि तकनीक, कला और भारतीय संस्कृति के अद्भुत संगम का आंदोलन खड़ा किया।

बी. एन. सरकार का 'न्यू थिएटर्स' तकनीकी नवाचार, सांस्कृतिक योगदान और रचनात्मकता के तौर पर शिखर पर था, लेकिन 9 अगस्त 1940 को एक भीषण आग ने सबकुछ स्वाहा कर दिया। बी. एन. सरकार की इस सपनों की फैक्ट्री को राख में बदल दिया। जिस वक्त आग लगी, उस समय वे मोहन बागान और आर्यन क्लब के बीच फुटबॉल मैच देख रहे थे। इस दौरान किसी ने आकर उनके कान में स्टूडियो में आग लगने की खबर सुनाई। खबर सुनते ही वे तुरंत स्टूडियो की ओर भागे, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। पूरा प्रोडक्शन जलकर खाक हो चुका था। दशकों की मेहनत तबाह हो चुकी थी।

इस भयानक क्षति के बाद भी बी. एन. सरकार ने हार नहीं मानी। उन्होंने दोबारा स्टूडियो खड़ा किया, युवा प्रतिभाओं को मौका दिया, और बिमल रॉय जैसे उभरते कलाकारों को मंच प्रदान किया। 1944 में 'उदयेर पथे' जैसी संवेदनशील और क्रांतिकारी फिल्म से उन्होंने एक नई शुरुआत की। वह 1951 में फिल्म इंक्वायरी कमेटी के सदस्य बने, जिसकी सिफारिशों से फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) का गठन हुआ। 28 नवंबर 1980 को उन्होंने अंतिम सांस ली।

Point of View

तो व्यक्ति अपने सपनों को पूरा कर सकता है। यह एक प्रेरणा है सभी के लिए।
NationPress
23/07/2025

Frequently Asked Questions

बी. एन. सरकार का जन्म कब हुआ?
बी. एन. सरकार का जन्म 5 जुलाई 1901 को बिहार के भागलपुर में हुआ।
न्यू थिएटर्स की स्थापना कब हुई?
न्यू थिएटर्स की स्थापना 1931 में हुई थी।
बी. एन. सरकार की प्रमुख फिल्मों में कौन सी हैं?
बी. एन. सरकार की प्रमुख फिल्मों में 'देवदास', 'चंडीदास', और 'भाग्य चक्र' शामिल हैं।
उन्होंने किस फिल्म के साथ नई शुरुआत की?
'उदयेर पथे' फिल्म के साथ उन्होंने नई शुरुआत की।
उनकी अंतिम सांस कब ली?
बी. एन. सरकार ने 28 नवंबर 1980 को अंतिम सांस ली।