क्या विनोद खन्ना ने विलेन की छवि को तोड़कर हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार का मुकाम हासिल किया?

सारांश
Key Takeaways
- विनोद खन्ना ने नेगेटिव रोल से हीरो बनने तक का अद्भुत सफर तय किया।
- उन्होंने अपने अभिनय से दर्शकों के दिलों में एक विशेष स्थान बनाया।
- उनकी प्रमुख फिल्में आज भी दर्शकों के बीच लोकप्रिय हैं।
- विनोद खन्ना ने अपनी मेहनत और सादगी से सफलता प्राप्त की।
- वे राजनीति में भी सक्रिय रहे और कई चुनाव जीते।
मुंबई, 5 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। विनोद खन्ना हिंदी सिनेमा के उन अद्वितीय सितारों में से एक थे, जिनकी यात्रा नेगेटिव रोल से लेकर हीरो बनने तक बेहद प्रेरणादायक रही। उन्होंने न केवल अपने अद्भुत अभिनय से दर्शकों के दिलों पर राज किया, बल्कि अपनी एक विशेष पहचान भी बनाई। विनोद खन्ना ने अपने करियर की शुरुआत फिल्मों में खलनायक के रूप में की, लेकिन उनकी दर्शनीयता और शानदार अभिनय ने उन्हें जल्दी ही हीरो का किरदार दिला दिया।
विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर 1946 को पेशावर (अब पाकिस्तान) में एक पंजाबी परिवार में हुआ था। बंटवारे के बाद उनका परिवार भारत आकर मुंबई में बस गया। उनकी एक्टिंग में रुचि बचपन से ही थी। पढ़ाई के बाद उन्होंने एक्टिंग को अपना करियर बनाने का निर्णय लिया। हालांकि उनके पिता शुरुआत में इसके खिलाफ थे, लेकिन उनकी मेहनत और लगन को देखकर वे भी राजी हो गए और विनोद को अपने सपने को पूरा करने का अवसर मिला।
साल 1968 में विनोद खन्ना को पहली बड़ी सफलता मिली जब उन्हें फिल्म 'मन का मीत' में खलनायक का रोल मिला। उस समय हिंदी फिल्मों में विलेन या नेगेटिव रोल निभाना आसान नहीं था, लेकिन विनोद ने इसे अपनी ताकत बना दिया। अपने डैशिंग लुक और एक्सप्रेशंस के जरिए उन्होंने नेगेटिव रोल में भी अपनी प्रतिभा साबित की। इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में विलेन की भूमिका निभाई और दर्शकों के दिलों में अपनी अलग जगह बनाई। लेकिन उनकी किस्मत में हीरो बनना भी लिखा था।
धीरे-धीरे विनोद खन्ना को फिल्मों में हीरो के रोल मिलने लगे। साल 1971 में आई फिल्म 'मेरे अपने' में उन्हें पहली बार मुख्य भूमिका में देखा गया, जिससे उनकी लोकप्रियता में जबरदस्त इजाफा हुआ। यह फिल्म दर्शकों के बीच इतनी पसंद की गई कि विनोद खन्ना ने अपने नाम को एक हीरो के रूप में पक्का कर लिया। इसके बाद उनकी कई हिट फिल्में आईं, जैसे 'मेरा गांव मेरा देश', 'अमर अकबर एंथोनी', 'कुर्बानी', और 'दयावान'। इन फिल्मों ने साबित कर दिया कि वह केवल विलेन नहीं, बल्कि एक बेहतरीन हीरो भी हैं।
विनोद खन्ना की विशेषता यह थी कि उन्होंने कभी खुद को स्टारडम में नहीं फंसने दिया। वे अपनी मेहनत और सादगी से हमेशा सभी के दिलों में बसे रहे। उन्होंने अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना और सुनील दत्त जैसे दिग्गजों के साथ काम किया, लेकिन अपनी अलग पहचान बनाई। 'अमर अकबर एंथोनी' और 'मुकद्दर का सिकंदर' जैसी फिल्मों में उनकी जोड़ी अमिताभ बच्चन के साथ दर्शकों की पसंदीदा रही।
उनका करियर इतना शानदार था कि 1980 के दशक में वे इंडस्ट्री के सबसे ज्यादा फीस लेने वाले अभिनेताओं में शामिल थे। लेकिन इसी दौरान उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया। 1982 में वे अपने आध्यात्मिक गुरु ओशो की शरण में चले गए और फिल्मों से दूरी बना ली। करीब पांच साल बाद 1987 में फिल्म 'इंसाफ' से उन्होंने वापसी की, और फिर से दर्शकों के दिलों पर राज किया।
विनोद खन्ना को उनके अभिनय के लिए कई पुरस्कार मिले। उनके अभिनय की सराहना हर जगह हुई और फिल्मी जगत ने उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया। इसके अलावा, वे राजनीति में भी सक्रिय रहे और भाजपा के नेता के रूप में कई बार लोकसभा चुनाव जीत चुके थे।
27 अप्रैल 2017 को विनोद खन्ना का निधन हो गया। कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन आज भी उनकी यादें और उनकी फिल्मों का जादू दर्शकों के दिलों में बसा हुआ है।