क्या 'ये रिश्ता क्या कहलाता है' की समृद्धि शुक्ला ने अपने परिवार की आर्थिक तंगी को याद किया?

सारांश
Key Takeaways
- समृद्धि शुक्ला ने बचपन में आर्थिक तंगी का सामना किया।
- वित्तीय स्वतंत्रता का महत्व समझा।
- कमाई और खर्च का सही प्रबंधन किया।
- बचत और निवेश पर जोर दिया।
- काम और जीवन संतुलन बनाए रखना मुश्किल है।
मुंबई, 11 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। समृद्धि शुक्ला वर्तमान में टीवी धारावाहिक 'ये रिश्ता क्या कहलाता है' में मुख्य भूमिका में दिखाई दे रही हैं। उनके पात्र अभिरा शर्मा को दर्शक काफी पसंद कर रहे हैं। एक इंटरव्यू में, उन्होंने अपने बचपन में परिवार की आर्थिक कठिनाइयों का सामना करने के बारे में खुलकर चर्चा की।
समृद्धि ने कहा, "मैंने अपने माता-पिता को कभी भी किसी बात के लिए तंग या परेशान नहीं किया। शायद यही वजह है कि मैं घर की स्थिति को लेकर बहुत जागरूक थी। मैं अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठाने और अपने पिता, जो परिवार के एकमात्र कमाने वाले थे, पर बोझ कम करने के लिए जल्दी से कमाई करना चाहती थी। नाबालिग रहते हुए मैंने जो भी कमाया, उसे मेरी मां के बैंक खाते में रखा गया, जिसे वो ही देखती थीं। मैंने इसका उपयोग केवल आपात स्थिति या शिक्षा के लिए किया।"
अपने बचपन को याद करते हुए समृद्धि ने कहा, "जब मैंने पहली बार पैसे कमाए, तो वह सिर्फ गाड़ी के पैसे थे। मैं एक ऑडिशन के लिए गई थी, मुझे रोल नहीं मिला, लेकिन मुझे 200 रुपए मिले। उस समय मैं छोटी थी, लेकिन मुझे पैसे की अहमियत समझ में आती थी।"
उन्होंने टीवी सितारों की ज़िंदगी के बारे में भी चर्चा की। समृद्धि ने बताया, "एक कलाकार के रूप में, हम बहुत उतार-चढ़ाव भरा जीवन जीते हैं। हमें नहीं पता होता कि कोई प्रोजेक्ट कब तक चलेगा या हमें कितनी फीस मिलेगी। मेरे लिए वित्तीय स्वतंत्रता का मतलब है काम न करने पर भी अपनी जीवनशैली को बनाए रखना। इसलिए मैं बचत और निवेश पर विश्वास करती हूं। हमारे माता-पिता की पीढ़ी के पास सीमित वित्तीय संसाधन थे, लेकिन आज हमारे पास बेहतर विकल्प हैं। हर किसी को अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए एसआईपी या पीपीएफ जैसी योजनाओं का लाभ लेना चाहिए।"
समृद्धि शुक्ला ने एक वाइस ओवर आर्टिस्ट के रूप में भी अपनी पहचान बनाई है। उन्होंने डोरेमोन के कैरेक्टर को अपनी आवाज दी है। अभिनेत्री ने कहा कि मुंबई जैसे शहर में जीवन यापन करना आसान नहीं है। यहाँ काम का दबाव हमेशा बना रहता है। यहां वर्क-लाइफ बैलेंस बनाए रखना बहुत मुश्किल है, चाहे वह मनोरंजन उद्योग हो या कॉर्पोरेट सेक्टर, सभी का यही हाल है।