क्या श्रीलेखा मित्रा को सामाजिक बहिष्कार मामले में हाईकोर्ट से मिली राहत?

सारांश
Key Takeaways
- श्रीलेखा मित्रा को सामाजिक बहिष्कार मामले में राहत मिली।
- पुलिस को बहिष्कार के पोस्टर हटाने का आदेश दिया गया।
- अदालत ने सोशल मीडिया पर पोस्ट हटाने का भी निर्देश दिया।
कोलकाता, 11 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सामाजिक बहिष्कार के मामले में श्रीलेखा मित्रा को महत्वपूर्ण राहत प्रदान की है। अदालत ने पुलिस को स्पष्ट निर्देश देते हुए कहा है कि उनके घर के आस-पास लगे बहिष्कार के पोस्टर और बैनर को तुरंत हटाया जाए। यदि अदालत के किसी आदेश का उल्लंघन किया जाता है, तो याचिकाकर्ता फिर से अदालत में शिकायत दर्ज कर सकता है।
दरअसल, बंगाली अभिनेत्री श्रीलेखा मित्रा ने आरजी कर हत्या के विरोध में प्रदर्शन में सक्रिय भाग लिया था। इसके बाद से उन्हें लगातार निशाना बनाया जा रहा था। सोशल मीडिया से लेकर उनके घर के आसपास उनकी सामाजिक बहिष्कार के पोस्टर चिपकाए गए थे।
इससे श्रीलेखा का मानसिक उत्पीड़न बढ़ गया था, जिसके चलते उन्होंने एक याचिका दायर कर अपनी सुरक्षा की मांग की थी।
श्रीलेखा ने अपनी याचिका में दावा किया था कि उन्हें सोशल मीडिया पर धमकियां मिल रही हैं और उनका सामाजिक बहिष्कार करने की कोशिश की जा रही है।
इस मामले की सुनवाई के दौरान, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अधिकृत पुलिस थाने को केएमसी की सहायता से अभिनेत्री के घर के चारों ओर लगे सभी पोस्टर और बैनर हटाने का आदेश दिया। इसके साथ ही, यदि सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ कोई बहिष्कार संदेश वाली पोस्ट है, तो उसे भी हटाना होगा। इस मामले में मेटा इंक और गूगल इंडिया को भी पक्षकार बनाया गया है।
अदालत ने यह भी कहा कि यदि उनके आदेश का उल्लंघन किया जाता है, तो याचिकाकर्ता अदालत में फिर से शिकायत कर सकता है। इस मामले में राज्य सरकार को 24 नवंबर तक हलफनामा दाखिल करना होगा। यह मामला दिसंबर की मासिक सूची में सूचीबद्ध होगा।
इस वर्ष 9 अगस्त को आरजी कर घटना की पहली बरसी पर, अभिनेत्री ने एक विरोध रैली में भाग लिया था। श्रीलेखा मित्रा ने वहां राज्य सरकार के खिलाफ सवाल उठाए थे कि एक वर्ष के बाद भी पीड़िता और उसके माता-पिता को न्याय क्यों नहीं मिल रहा है।
इसके बाद, दक्षिण कोलकाता के बेहला क्षेत्र में उनके घर के बाहर श्रीलेखा के खिलाफ नारे लिखे कई बैनर और पोस्टर चिपकाए गए हैं। इस मामले में हरिदेवपुर थाने में ईमेल के माध्यम से शिकायत दर्ज कराई गई थी, लेकिन पुलिस अधिकारियों की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसलिए उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।