क्या अरंडी वास्तव में 'वात रोगों का यमराज' है, जो कई समस्याओं का करता है विनाश?
सारांश
Key Takeaways
- अरंडी वात विकारों के लिए असरदार है।
- यह पाचन को सुधारता है।
- त्वचा और बालों के लिए हाइड्रेशन प्रदान करता है।
- इसका सही उपयोग महत्वपूर्ण है।
- गर्भवती महिलाओं को सावधानी बरतनी चाहिए।
नई दिल्ली, 22 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। आयुर्वेद में अरंडी (कैस्टर) को एक विशेष जड़ी-बूटी माना जाता है, जिसे 'वात रोगों का यमराज' कहा जाता है। यह केवल एक पौधा नहीं है, बल्कि शरीर की गहरी सफाई करने वाला एक प्राकृतिक डिटॉक्स मास्टर है। इसमें छिपे गुण किसी वरदान से कम नहीं हैं।
अरंडी का तेल और पत्तियाँ मुख्य रूप से वात दोष नाशक, पाचन अग्नि बढ़ाने, शोथहर और मृदु विरेचक औषधि मानी जाती हैं। इसका रस मधुर और क्षय है, और गुण स्निग्ध और गुरु हैं, जबकि वीर्य उष्ण होता है। खास बात यह है कि यह शरीर के सूक्ष्म छिद्रों तक पहुंच सकता है, जहाँ दूसरी दवाएँ इतना असर नहीं करतीं। इसलिए यह जोड़ों के दर्द, गठिया, सायटिका, कब्ज और अन्य वात विकारों में बेहद उपयोगी है।
अरंडी के तेल में रिसिनोलिक एसिड होता है, जो आंतों की गति तेज करता है और कब्ज को दूर करता है। इसके अलावा, जोड़ों की मालिश करने से सूजन कम होती है और रूमेटोइड अर्थराइटिस या साइटिका में भी लाभ मिलता है। त्वचा और बालों के लिए भी यह वरदान है, क्योंकि यह प्राकृतिक ह्यूमेक्टेंट की तरह काम करता है, नमी खींचकर त्वचा को हाइड्रेटेड रखता है और बालों को मजबूत बनाता है।
माइग्रेन या पुराने सिरदर्द में ताजे पत्तों का पेस्ट माथे और कनपटी पर लगाने से नसों की सूजन कम होती है और दर्द में राहत मिलती है। बालों को मजबूत बनाने के लिए इसे नारियल तेल के साथ मिलाकर जड़ों में लगाना भी सहायक है।
इसके सही उपयोग के लिए रात को गर्म दूध में 1-2 चम्मच तेल मिलाकर पीना या जोड़ों की सूजन पर पत्तों का लेप लगाना फायदेमंद है।
हालांकि, अरंडी बहुत शक्तिशाली है। इसे सावधानी से इस्तेमाल करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं और बच्चों को इसके सेवन से बचना चाहिए। ज्यादा सेवन से दस्त और डिहाइड्रेशन हो सकता है। इसका उपयोग करने से पहले योग्य आयुर्वेदाचार्य से सलाह जरूर ले लें।