क्या आयुर्वेद के वैश्विक दूत पीआर कृष्ण कुमार परंपरा, विज्ञान और आध्यात्मिकता का अद्वितीय संगम हैं?

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क्या आयुर्वेद के वैश्विक दूत पीआर कृष्ण कुमार परंपरा, विज्ञान और आध्यात्मिकता का अद्वितीय संगम हैं?

सारांश

आयुर्वेद के वैश्विक दूत पीआर कृष्ण कुमार का जीवन परंपरा, विज्ञान और आध्यात्मिकता का एक अद्वितीय संगम है। उनके कार्यों ने आयुर्वेद को एक नई दिशा दी और वैश्विक पहचान दिलाई। जानिए किस प्रकार उन्होंने चिकित्सा, शिक्षा और संस्कृति में योगदान दिया।

Key Takeaways

  • आयुर्वेद का वैश्वीकरण परंपरा की आत्मा को संरक्षित करते हुए होना चाहिए।
  • कृष्ण कुमार ने आयुर्वेद को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रमोट किया।
  • योग और ध्यान के माध्यम से आयुर्वेद को एक वैश्विक पहचान मिली।
  • उन्होंने हेल्थ टूरिज्म को बढ़ावा दिया।
  • कृष्ण कुमार ने भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण में योगदान दिया।

नई दिल्ली, 22 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। गुरजिएफ के अनुसार, मनुष्य एक बहुलतावादी प्राणी है, जिसका अर्थ है कि मनुष्य में सैकड़ों 'मैं' होते हैं। उन 'मैं' का संतुलन साधकर समाज के हित में उपयोग करना केवल कुछ चुनिंदा लोगों के बस की बात होती है। आयुर्वेदाचार्य पीआर कृष्ण कुमार ऐसे ही व्यक्तित्व थे। वे एक कुशल चिकित्सक, शिक्षक, दार्शनिक, प्रशासक, उद्यमी और आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में जाने जाते थे। उनके जीवन में सभी भूमिकाओं का अद्भुत संतुलन था।

23 सितंबर 1951 को जन्मे कृष्ण कुमार, आयुर्वेद के महान प्रवर्तक और द आर्य वैद्य फ़ार्मेसी के संस्थापक आर्य वैद्यन पीवी राम वेरियर के पुत्र थे। उनके दादा संस्कृत के विद्वान, कवि और वैद्य रहे हैं। उनके पिता का सपना था कि वे आयुर्वेद को वैश्विक मंच पर ले जाएं और नई पीढ़ी के लिए ऐसे चिकित्सक तैयार करें जो परंपरा और आधुनिकता दोनों का संगम हों। यही दृष्टि कृष्ण कुमार के जीवन का मार्गदर्शन बनी।

शोर्णूर आयुर्वेद कॉलेज से शिक्षा प्राप्त करने के बाद, कृष्ण कुमार ने आयुर्वेद शिक्षा के प्रचार-प्रसार को अपना जीवन-ध्येय बनाया। कोयंबटूर स्थित चिकित्सालयम में, उन्होंने आयुर्वेद को ज्योतिष और दैविक उपचार पद्धतियों के साथ मिलाकर एक संपूर्ण चिकित्सा दृष्टिकोण विकसित किया, जिसने आधुनिक चिकित्सकों को भी प्रभावित किया।

कृष्ण कुमार ने अंधानुकरण से अधिक वैज्ञानिक प्रमाणीकरण पर जोर दिया। उनके प्रयासों से 1977 में डब्ल्यूएचओ और आईसीएमआर ने आयुर्वेद उपचार (विशेषकर रूमेटॉइड आर्थराइटिस) पर पहला क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया। इसके अलावा, अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने भी 2004–06 में उनकी अगुवाई में प्रोजेक्ट को फंड किया, जो भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था। उनका मानना था कि आयुर्वेद का वैश्वीकरण तभी सार्थक है जब उसमें परंपरा की आत्मा अक्षुण्ण रहे।

उन्होंने पर्यटन उद्योग के व्यावसायिक दबावों से दूर रहकर प्रिवेंटिव मेडिसिन और हेल्थ टूरिज्म को बढ़ावा दिया। देश-विदेश में यात्रा करके, उन्होंने योग और ध्यान के माध्यम से आयुर्वेद को एक वैश्विक पहचान दिलाई।

कृष्ण कुमार केवल चिकित्सा तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने क्षेत्रोपासना ट्रस्ट और भारतमुनि फाउंडेशन जैसे संगठनों के माध्यम से भारतीय संस्कृति और मूल्यों के पुनर्जागरण में योगदान दिया। उनके ट्रस्ट और विद्यालयों में आज भी विद्यार्थी परंपरागत भारतीय विज्ञानों की शिक्षा लेते हैं।

आयुर्वेद के वैश्विक प्रचार-प्रसार और शिक्षा सुधार में योगदान के लिए उन्हें 2009 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। हालांकि, वे हमेशा कहते थे कि यह मेरा नहीं, आयुर्वेद का सम्मान है। स्वामी विवेकानंद के शब्दों को वे अक्सर उद्धृत करते थे कि हर नए विचार को पहले उपहास झेलना पड़ता है, फिर विरोध, और अंततः स्वीकृति।

Point of View

यह कहना उचित है कि पीआर कृष्ण कुमार का योगदान न केवल आयुर्वेद के क्षेत्र में, बल्कि भारतीय संस्कृति और शिक्षा में भी महत्वपूर्ण रहा है। उनका दृष्टिकोण परंपरा और आधुनिकता का संगम है, जो आज की दुनिया में बेहद आवश्यक है।
NationPress
22/09/2025

Frequently Asked Questions

पीआर कृष्ण कुमार कौन थे?
पीआर कृष्ण कुमार आयुर्वेदाचार्य, चिकित्सक, शिक्षक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक थे, जिन्होंने आयुर्वेद को वैश्विक पहचान दिलाई।
उन्होंने आयुर्वेद को कैसे प्रमोट किया?
कृष्ण कुमार ने आयुर्वेद को वैज्ञानिक प्रमाणीकरण और हेल्थ टूरिज्म के माध्यम से बढ़ावा दिया।
उन्हें कौन सा सम्मान मिला था?
उन्हें 2009 में आयुर्वेद के वैश्विक प्रचार-प्रसार के लिए पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया।