कैंसर के दौरान नींद एक चुनौती क्यों बन जाती है?
सारांश
Key Takeaways
- कैंसर मरीजों को नींद संबंधी समस्याएँ होती हैं।
- नींद की कमी से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है।
- सोने का कमरा शांत और अंधेरा होना चाहिए।
- सीबीटी जैसी थेरेपी नींद सुधारने में मददगार होती हैं।
- रोज एक ही समय पर सोने की आदत डालें।
नई दिल्ली, 28 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। नींद हमारे जीवन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह केवल शरीर को आराम नहीं देती, बल्कि दिमाग को भी तरोताजा करती है। साथ ही, यह हमारी याददाश्त और सोचने की क्षमता में सुधार करती है। लेकिन जब कोई व्यक्ति कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझता है, तो नींद अक्सर एक चुनौती बन जाती है।
रात भर नींद न आना या बार-बार टूटने की समस्या केवल थकान को बढ़ाती है, बल्कि इलाज की प्रक्रिया पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार, कैंसर रोगियों में से लगभग हर दूसरे व्यक्ति को नींद से संबंधित समस्याएँ होती हैं, जिससे उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।
कैंसर का असर शरीर और दिमाग दोनों पर होता है। ट्यूमर या बीमारी के कारण दर्द, सांस लेने में कठिनाई, बार-बार पेशाब, पेट की समस्याएँ, और खाँसी जैसी परेशानियाँ, मरीज की नींद में रुकावट डालती हैं। इसके अतिरिक्त, बुखार, थकान, और लगातार असहजता नींद पूरी करने में बाधा बनती है।
कैंसर का इलाज भी नींद पर असर डालता है। कीमोथेरेपी, रेडिएशन, हार्मोन थेरेपी और कुछ दवाएँ, जैसे स्टेरॉइड या दर्द निवारक दवाएँ, रात को मतली, पसीना या पेट की परेशानी पैदा कर सकती हैं। इन दुष्प्रभावों के कारण मरीज ठीक से सो नहीं पाते। कई बार उन्हें बार-बार उठना पड़ता है या नींद बीच में टूट जाती है। ये सभी चीजें लंबे समय तक गहरी नींद में रुकावट डालती हैं।
कैंसर का नाम सुनते ही कई लोग डर, चिंता और भविष्य के प्रति असुरक्षा महसूस करते हैं। इलाज की प्रक्रिया, पारिवारिक चिंताएँ, और मृत्यु का भय मरीज के मन को निरंतर व्यस्त रखते हैं। यही मानसिक तनाव अनिद्रा का एक मुख्य कारण बनता है। कई मरीज सोने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनका दिमाग लगातार विचारों से भरा रहता है, जिससे उन्हें नींद नहीं आती।
कैंसर रोगियों में नींद की कमी के कई रूप देखे जाते हैं। कुछ मरीज रात में बार-बार उठते हैं, जबकि कुछ दिन में बहुत ज्यादा नींद लेते हैं। कुछ मरीजों को स्लीप एपनिया जैसी समस्या भी होती है, खासकर उन लोगों में जो सांस लेने में कठिनाई महसूस करते हैं। नींद की कमी केवल थकान को बढ़ाती नहीं है, बल्कि यह याददाश्त, ध्यान, निर्णय लेने की क्षमता और भावनात्मक संतुलन पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है।
हालांकि, कैंसर रोगी अपनी नींद को बेहतर बनाने के लिए कुछ कदम उठा सकते हैं। सबसे पहले, रोज एक ही समय पर सोने और जागने की आदत बनाना आवश्यक है। सोने का कमरा शांत, अंधेरा और ठंडा होना चाहिए। सोने से पहले मोबाइल, टीवी या अन्य स्क्रीन से दूरी बनाए रखना सहायक होता है। इसके अलावा, कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) जैसी थेरेपी बिना दवा के नींद सुधारने में प्रभावी साबित होती हैं। यह एक प्रकार की 'टॉकिंग थेरेपी' है, जो आपको अपने नकारात्मक विचारों और व्यवहारों को पहचानने और उन्हें बदलने में मदद करती है। यह मरीज को मानसिक रूप से आराम करना सिखाती है।