क्या डीएनए आधारित डाइट वास्तव में 'वन-साइज-फिट्स-ऑल नहीं' है?

सारांश
Key Takeaways
- व्यक्तिगत पोषण का महत्व समझें।
- डीएनए और माइक्रोबायोम के आधार पर आहार का चयन करें।
- एक ही डाइट सभी के लिए उपयुक्त नहीं होती।
- स्वास्थ्य में सुधार के लिए व्यक्तिगत डाइट अपनाएं।
- भारत में हेल्थ स्टार्टअप्स इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
नई दिल्ली, 29 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। हमारे यहाँ हर पीढ़ी को यह शिक्षा दी जाती है कि स्वस्थ रहने के लिए सभी को समान भोजन करना चाहिए। जैसे कि सुबहदोपहररात लेकिन समय के साथ यह धारणा बदल रही है। वैज्ञानिक अनुसंधान बताते हैं कि आपकी थाली में क्या होना चाहिए, यह रिवायत नहीं, बल्कि आपके डीएनए द्वारा निर्धारित होता है!
वैज्ञानिक अनुसंधान का कहना है कि वन-साइज-फिट्स-ऑल का युग समाप्त हो गया है। अर्थात् हर व्यक्ति का शरीर और उसकी आवश्यकताएँ अलग होती हैं, और उसी के अनुसार उसका आहार भी भिन्न होना चाहिए। यही विचार आज व्यक्तिगत पोषण या डीएनए आधारित डाइट के रूप में उभर रहा है।
आसान शब्दों में कहें तो यह एक ऐसा विज्ञान है जो बताता है कि आपकी जीन, आपका माइक्रोबायोम और आपकी जीवनशैली यह तय करेंगे कि आपके लिए कौन-सा भोजन सबसे लाभकारी है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति चावल खाने के बाद थकान महसूस करता है जबकि दूसरे के लिए वही चावल ऊर्जा का स्रोत बनते हैं। इसके पीछे की वजह शरीर की आंतरिक जैविक संरचना है।
हाल के वर्षों में माइक्रोबायोम टेस्ट और जीन टेस्ट इस क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं। माइक्रोबायोम टेस्ट से यह पता चलता है कि आपकी आंतों में कौन से बैक्टीरिया अधिक सक्रिय हैं और वे आपके पाचन और रोग प्रतिरोधक क्षमता को कैसे प्रभावित कर रहे हैं। वहीं, जीन टेस्ट यह दर्शाता है कि आपका शरीर कार्बोहाइड्रेट, फैट या प्रोटीन को कैसे पचाता है और कौन-सा पोषक तत्व आपके लिए फायदेमंद या हानिकारक हो सकता है।
2022 में नेचर मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन ने दिखाया कि जब लोगों को उनके जेनेटिक और माइक्रोबायोम डेटा के आधार पर व्यक्तिगत डाइट दी गई, तो उनकी ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल पर पारंपरिक डाइट की तुलना में कहीं बेहतर प्रभाव पड़ा। यानी, जो डाइट एक व्यक्ति के लिए लाभकारी होती है, वही दूसरे के लिए हानिकारक भी हो सकती है।
द अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन (2016) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जिन लोगों को व्यक्तिगत पोषण संबंधी सलाह मिली, उनके मेडिटेरियन आहार का पालन करने की संभावना अधिक थी। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एपिडेमियोलॉजी में प्रकाशित एक संबंधित शोधपत्र में पाया गया कि आहार, जीवनशैली और जीनोटाइप के आधार पर व्यक्तिगत पोषण संबंधी जानकारी देने से पारंपरिक दृष्टिकोण की तुलना में आहार व्यवहार में बड़े और अधिक उपयुक्त परिवर्तन हुए।
भारत में भी अब इस ट्रेंड की ओर झुकाव बढ़ रहा है। मेट्रो शहरों में कई हेल्थ स्टार्टअप्स जीन टेस्टिंग और गट-हेल्थ एनालिसिस के आधार पर डाइट प्लान देने लगे हैं। इससे लोग यह समझ पा रहे हैं कि 'लो-कार्ब', 'कीटो' या 'हाई-प्रोटीन' डाइट किसे सचमुच सूट करती है और किसके लिए यह हानिकारक हो सकती है।