क्या गर्भावस्था में गैस और पेट फूलने का है कोई समाधान? जानिए आयुर्वेद और विज्ञान के दृष्टिकोण से

सारांश
Key Takeaways
- गर्भावस्था के दौरान गैस और पेट फूलने की समस्या सामान्य है।
- हार्मोनल परिवर्तन पाचन तंत्र को प्रभावित करते हैं।
- आयुर्वेद में प्राकृतिक उपायों से राहत मिल सकती है।
- धीरे-धीरे खाना खाने से गैस बनने की संभावना कम होती है।
- शारीरिक गतिविधि बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
नई दिल्ली, १८ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। गर्भावस्था हर महिला के जीवन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और संवेदनशील समय होता है। इस अवधिकाल में शरीर में कई प्रकार के परिवर्तन होते हैं, जो न केवल भावनात्मक बल्कि शारीरिक रूप से भी प्रभावित करते हैं। गर्भधारण के दौरान हार्मोनल स्तर में बड़े उतार-चढ़ाव आते हैं, जिसके कारण कुछ असहज स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, जो सामान्य होने पर भी अत्यधिक परेशान करने वाली होती हैं। इन्हीं में से एक है पेट फूलना, गैस बनना, अपच और लगातार बेचैनी का अनुभव होना।
आधुनिक विज्ञान और आयुर्वेद, दोनों के दृष्टिकोण से गर्भवती महिलाओं में पाचन तंत्र से संबंधित समस्याएँ सामान्य हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसका मुख्य कारण प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का बढ़ता स्तर है। गर्भावस्था के दौरान यह हार्मोन शरीर में अधिक मात्रा में उत्पन्न होता है, जो मांसपेशियों को ढीला कर देता है, जिसमें पाचन तंत्र की मांसपेशियाँ भी शामिल होती हैं। जब पाचन धीमा हो जाता है, तो भोजन लंबे समय तक पेट में रहता है, जिससे गैस बनने लगती है और पेट भारी महसूस होता है।
आयुर्वेद के अनुसार, गर्भावस्था के समय वात दोष का असंतुलन इन समस्याओं का प्रमुख कारण है। यदि वात दोष बढ़ जाता है, तो यह शरीर में गैस और सूखापन उत्पन्न करता है, जिससे कब्ज, पेट फूलना और जलन जैसी समस्याएँ बढ़ सकती हैं। विशेषकर यदि भोजन में गड़बड़ी हो या महिला लंबे समय तक बिना खाए रहे, तो यह दोष और अधिक बढ़ सकता है।
गर्भवती महिला का बढ़ता हुआ गर्भाशय भी आंतों पर दबाव डालता है, जिससे गैस का निकलना कठिन हो जाता है और वह पेट में ही जमा हो जाती है। कभी-कभी यह दबाव इतना अधिक होता है कि सांस लेने में भी परेशानी महसूस होती है। इसके अलावा, गर्भावस्था के दौरान महिलाओं की शारीरिक गतिविधि कम हो जाती है, जिससे पाचन क्रिया और कमजोर हो जाती है।
आहार में अचानक बदलाव भी इस समस्या को बढ़ावा देते हैं। कई बार महिलाएँ गर्भवती होने के बाद हेल्दी डाइट पर शिफ्ट होती हैं, जिसमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है, जैसे साबुत अनाज, फल और सब्जियाँ। हालाँकि ये चीजें लाभकारी होती हैं, लेकिन अचानक और अधिक मात्रा में लेने से पेट में गैस बनने लगती है, विशेषकर जब पर्याप्त पानी नहीं पिया जा रहा हो।
विज्ञान के अनुसार, भोजन करते समय हवा निगलना भी एक सामान्य कारण है। जब हम जल्दी-जल्दी खाते हैं या खाते समय बात करते हैं, तो अनजाने में मुँह के जरिए हवा पेट में चली जाती है, जो गैस और पेट फूलने का कारण बनती है। यही कारण है कि डॉक्टर अक्सर धीरे-धीरे खाने की सलाह देते हैं और यह सलाह आयुर्वेद भी देता है।
अब यदि इलाज की बात करें तो दोनों ही दृष्टिकोण, आयुर्वेद और एलोपैथी, गर्भवती महिलाओं के लिए सुरक्षित और प्राकृतिक उपायों को प्राथमिकता देते हैं। आयुर्वेद में सौंफ, अजवाइन और हिंग को पाचन के लिए रामबाण माना गया है। हल्के गुनगुने पानी के साथ इनका सेवन करने से गैस कम होती है और पेट साफ रहता है। वहीं विज्ञान का कहना है कि एक ही बार में अधिक खाना खाने से बचना चाहिए। दिन में कई बार हल्का और सुपाच्य भोजन करने से पाचन पर जोर नहीं पड़ता और गैस बनने की संभावना भी कम होती है।