क्या झारखंड 2027 तक फाइलेरिया मुक्त हो पाएगा?

Key Takeaways
- झारखंड का फाइलेरिया मुक्त अभियान 2027 तक पूरा करने की योजना है।
- स्वास्थ्य मंत्री ने सक्रिय भागीदारी की अपील की है।
- फाइलेरिया की दवा साल में एक बार दी जाती है।
- अभियान से फाइलेरिया रोगियों की संख्या में कमी आई है।
- अभियान में 14 जिलों के 91 प्रखंड शामिल हैं।
जामताड़ा, 10 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड को 2027 तक फाइलेरिया से मुक्त करने का उद्देश्य निर्धारित किया गया है। इस संबंध में रविवार को पूरे राज्य में मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) अभियान की शुरुआत की गई। यह अभियान केंद्र सरकार के सहयोग से संचालित किया जा रहा है, जो कि आगामी 25 अगस्त तक जारी रहेगा।
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने जामताड़ा जिला मुख्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में स्वयं इस दवा की खुराक लेकर अभियान की औपचारिक शुरुआत की।
उन्होंने राज्य के नागरिकों से अपील की कि वे फाइलेरिया के खिलाफ चलाए जा रहे इस अभियान में सक्रिय भाग लें।
स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि फाइलेरिया केवल शारीरिक अपंगता ही नहीं, बल्कि आत्मसम्मान, आजीविका और मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव डालती है। इसे पूरी तरह से रोका जा सकता है और वह भी सिर्फ साल में एक बार दी जाने वाली दवा से।
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, राज्य में लगातार चलाए जा रहे अभियानों से फाइलेरिया रोगियों की संख्या में भारी कमी दर्ज की गई है।
विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2025 में जुलाई महीने में 268 मरीज मिले थे, जबकि 2024 के जून तक यह संख्या 776 थी। इस प्रकार, केवल एक वर्ष में फाइलेरिया के मरीजों की संख्या में विशाल गिरावट आई है।
इस वर्ष मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन का पहला चरण 10 फरवरी से शुरू हुआ था, जिसमें 1.85 करोड़ लोगों को फाइलेरिया से बचाव हेतु दवा दी गई। इस अभियान का शुभारंभ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने वर्चुअल माध्यम से किया।
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, झारखंड के 14 जिलों के 91 प्रखंडों में फाइलेरिया के मरीज पाए जाते हैं। इनमें रांची, पूर्वी सिंहभूम, बोकारो, देवघर, धनबाद, गढ़वा, गिरिडीह, गुमला, लोहरदगा, रामगढ़ और साहिबगंज जिले शामिल हैं, जहाँ लोगों को डीईसी और अल्बेंडाजोल दवाओं का सेवन कराया गया। सिमडेगा, पाकुड़ और कोडरमा जिलों में डीईसी, अल्बेंडाजोल और आइवरमेक्टिन तीन दवाओं का सेवन कराने का अभियान चलाया गया था।