क्या फल और सब्जियाँ त्वचा के रंग को बदल सकती हैं? अगली बार खाएं और ध्यान दें
सारांश
Key Takeaways
- गाजर और शकरकंद जैसे खाद्य पदार्थ त्वचा के रंग को प्रभावित कर सकते हैं।
- अत्यधिक सेवन से कैरोटीनिमिया जैसी स्थिति उत्पन्न होती है।
- ये रंग परिवर्तन अस्थायी और सुरक्षित होते हैं।
- संतुलित आहार से त्वचा का स्वास्थ्य बना रहता है।
- प्राकृतिक पिगमेंट्स जैसे लाइकोपीन और ल्यूटीन भी प्रभाव डालते हैं।
नई दिल्ली, ११ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। यह जानकर शायद आपको आश्चर्य हो, लेकिन पोषण विज्ञान के कई अनुसंधान यह दर्शाते हैं कि कुछ फल और सब्जियाँ जब अत्यधिक मात्रा में खाई जाती हैं तो वे त्वचा के रंग में अस्थायी परिवर्तन कर सकती हैं। इनमें उपस्थित प्राकृतिक पिगमेंट, विशेषकर कैरोटेनॉइड्स, शरीर में जमा होकर त्वचा की ऊपरी परत (एपिडर्मिस) को प्रभावित करते हैं और हल्का पीला, नारंगी या गुलाबी टोन उत्पन्न कर सकते हैं।
विशेषज्ञ इसे “आहार-जनित त्वचा रंग परिवर्तन” मानते हैं, जो पूरी तरह से सुरक्षित और अस्थायी होता है।
सबसे प्रमुख उदाहरण गाजर है। अमेरिकन जर्नल ऑफ डर्मेटोलॉजी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, कई हफ्तों तक प्रतिदिन अधिक मात्रा में गाजर खाने से “कैरोटीनिमिया” नामक स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिसमें त्वचा हल्के पीले-नारंगी रंग में बदलने लगती है। यह असर सबसे पहले हथेलियों और पैरों के तलवों पर दिखता है और गाजर का सेवन कम करने पर धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है।
शकरकंद और कद्दू जैसे अन्य कैरोटीन-समृद्ध खाद्य पदार्थ भी इसी प्रकार का प्रभाव डालते हैं। कई अध्ययनों में इसे “हेल्दी ग्लो इफेक्ट” कहा गया है। हालांकि यह बदलाव तभी उभरता है जब इन सब्जियों का सेवन अत्यधिक और लंबे समय तक किया जाए।
टमाटर और लाल शिमला मिर्च में पाया जाने वाला लाइकोपीन त्वचा में हल्की गुलाबी या लालिमा ला सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर और न्यूकैसल यूनिवर्सिटी के एक संयुक्त अध्ययन में पाया गया कि लाइकोपीन न केवल त्वचा को यूवी क्षति से बचाता है बल्कि अधिक सेवन की स्थिति में त्वचा को हल्का लाल टोन भी दे सकता है। इसी तरह, चुकंदर का लगातार सेवन बीटाइन और एंथोसाइनिन जैसे पिगमेंट्स के कारण त्वचा में गुलाबी आभा ला सकता है।
हरी पत्तेदार सब्जियों जैसे पालक में मौजूद ल्यूटीन और जिएक्सैन्थिन भी बहुत अधिक मात्रा में लेने पर त्वचा में हल्की पीली गर्माहट पैदा कर सकते हैं, जबकि क्लोरोफिल की उपस्थिति त्वचा को “वार्म टिंट” दे सकती है।
डर्मेटोलॉजिस्ट इस बात पर जोर देते हैं कि ये सभी बदलाव अस्थायी और पूरी तरह से सुरक्षित होते हैं। इन्हें अक्सर लोग पीलिया समझ लेते हैं, जबकि इसमें और पीलिया में बड़ा अंतर है—कैरोटीनिमिया में आंखों का सफेद हिस्सा कभी पीला नहीं होता। यह केवल शरीर में प्राकृतिक पिगमेंट्स के अधिक जमाव के कारण होता है।
विशेषज्ञों की सलाह है कि फल और सब्जियाँ स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी हैं, लेकिन किसी भी चीज का अत्यधिक सेवन असंतुलन पैदा कर सकता है। संतुलित और विविध आहार लेने से त्वचा का प्राकृतिक रंग और स्वास्थ्य दोनों सुरक्षित रहते हैं।