क्या विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2025 पर युवाओं में डिप्रेशन के मामले बढ़ रहे हैं?

सारांश
Key Takeaways
- सोशल मीडिया का प्रभाव
- डिप्रेशन के लक्षण और पहचान
- खुलकर बात करने का महत्व
- योग और मेडिटेशन के लाभ
- विशेषज्ञ से सलाह लेने की आवश्यकता
नई दिल्ली, 9 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। हर वर्ष 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाने का उद्देश्य है लोगों में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देना और यह स्पष्ट करना कि मानसिक समस्याएं भी उतनी ही गंभीर होती हैं जितनी शारीरिक रोग। लेकिन चिंताजनक यह है कि आज का युवा तेजी से डिप्रेशन, एंग्जायटी और स्ट्रेस जैसी मानसिक समस्याओं का सामना कर रहा है।
तेज रफ्तार जीवनशैली, सोशल मीडिया का दबाव, करियर का अनिश्चितता, और रिश्तों में अस्थिरता, ये सभी कारक युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं। आज का युवा लगातार अपने आप की तुलना दूसरों से करता है।
इंस्टाग्राम पर परफेक्ट लाइफ की होड़ में वह अंदर से खालीपन महसूस करने लगता है। नौकरी का तनाव, पढ़ाई का दबाव, परिवार की अपेक्षाएं, और असफलता का डर उसकी सोच को घेर लेता है। यही कारण है कि 16 से 30 वर्ष के बीच डिप्रेशन के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
इसके अतिरिक्त, नींद की कमी, खराब खान-पान, शारीरिक गतिविधियों का अभाव, और डिजिटल लत इस समस्या को और बढ़ा देती हैं। दिन-रात मोबाइल और लैपटॉप की स्क्रीन में डूबे रहना न केवल आँखों बल्कि मस्तिष्क को भी थका देता है।
हालांकि, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में अभी भी कलंक बना हुआ है। लोग मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक के पास जाने से हिचकिचाते हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ जाती है। यह ध्यान देने वाली बात है कि भले ही व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ हो, जरूरी नहीं कि वह मानसिक रूप से भी स्वस्थ हो।
डिप्रेशन से बचाव के लिए सबसे महत्वपूर्ण है खुलकर बात करना। परिवार या दोस्तों के साथ अपनी भावनाएं साझा करना मानसिक बोझ को हल्का कर सकता है। इसके साथ ही, मेडिटेशन और योग जैसी चीजें मन को शांत रखने में सहायक होती हैं।
पर्याप्त नींद, संतुलित आहार, और डिजिटल डिटॉक्स को अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए। यदि लक्षण गंभीर हों, तो विशेषज्ञ की मदद लेने में संकोच नहीं करना चाहिए।
युवाओं के लिए यह समझना आवश्यक है कि मानसिक स्वास्थ्य कमजोरी नहीं, बल्कि इंसान की असली ताकत है। जिस तरह शारीरिक बीमारियों का इलाज संभव है, वैसे ही मानसिक उलझनों का भी समाधान है।