क्या 31 अक्टूबर 1517 ने यूरोप का इतिहास बदल दिया?
सारांश
Key Takeaways
- मार्टिन लूथर का योगदान ईसाई धर्म में बदलाव लाने वाला था।
- 95 थिसेस चर्च की प्रथाओं पर सवाल उठाने का एक तरीका था।
- प्रोटेस्टेंट रिफॉर्मेशन ने यूरोप में धार्मिक विभाजन की नींव रखी।
नई दिल्ली, 30 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। लगभग पांच सौ साल पहले, ऑल सेंट्स डे की पूर्व संध्या पर (1517 में) एक ऐसा घटना हुई जिसने यूरोप के इतिहास को बदल कर रख दिया। इलेक्टोरल सैक्सोनी की एक नई विश्वविद्यालय के अनजान प्रोफेसर और पादरी ने जर्मनी के विटेनबर्घ शहर की केजल चर्च के दरवाजे पर एक सूची चस्पा की। इस सूची में कुछ ऐसा था जो धर्माधिकारियों की सत्ता को चुनौती देता था।
इस पादरी और धर्मशास्त्री का नाम मार्टिन लूथर था और उसने एक ऐसा कदम उठाया जिसने न केवल ईसाई धर्म की दिशा को बदला, बल्कि पूरे यूरोप की राजनीति, समाज और संस्कृति पर गहरा असर डाला। यह दिन आज भी कई प्रोटेस्टेंट चर्चों में 'रिफॉर्मेशन डे' के रूप में मनाया जाता है।
कहानी 16वीं सदी के जर्मनी की है। उस समय रोमन कैथोलिक चर्च यूरोप में अत्यधिक शक्तिशाली था और धर्म के नाम पर लोगों से 'इंडलजेंस' यानी पापों से मुक्ति के लिए धन वसूला जा रहा था। मार्टिन लूथर इस प्रवृत्ति से गहराई से आहत थे। उन्होंने बाइबिल के अध्ययन के दौरान महसूस किया कि ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग पैसे या पुजारियों के जरिए नहीं, बल्कि आस्था और आत्मचिंतन से है।
31 अक्टूबर 1517 को उन्होंने अपनी '95 थिसेस' नामक 95 तर्कों की सूची जर्मनी के विटेनबर्घ शहर की केजल चर्च के दरवाजे पर टांग दी। इन तर्कों में उन्होंने चर्च की प्रथाओं और भ्रष्टाचार पर सवाल उठाए। यह कदम प्रतीकात्मक था, लेकिन इसके असर ने पूरे यूरोप को हिला दिया। उस समय छपाई का नया माध्यम, प्रिंटिंग प्रेस, तेजी से फैल रहा था, और लूथर के विचार कुछ ही हफ्तों में पूरे महाद्वीप में मानों चीखने लगे।
यहीं से प्रोटेस्टेंट रिफॉर्मेशन की शुरुआत हुई। एक ऐसा धार्मिक आंदोलन जिसने ईसाई धर्म को दो बड़े हिस्सों में बांट दिया- कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट। धीरे-धीरे यह आंदोलन धार्मिक सीमाओं से निकलकर सामाजिक सुधार, शिक्षा, स्वतंत्र विचार और लोकतंत्र जैसे मूल्यों की नींव बन गया।
रिफॉर्मेशन ने यूरोप को आत्ममंथन का अवसर दिया। कला, संगीत और शिक्षा में नए विचारों ने जन्म लिया। लोगों ने सवाल करना, सोचना और अपने निर्णय स्वयं लेना सीखा। यह सिर्फ एक धार्मिक विद्रोह नहीं था, बल्कि मानव चेतना के पुनर्जागरण का प्रारंभ था।
आज भी 31 अक्टूबर को जर्मनी, स्वीडन, नॉर्वे और यूरोप के कई अन्य देशों में रिफॉर्मेशन डे मनाया जाता है। चर्चों में विशेष प्रार्थनाएं होती हैं और मार्टिन लूथर को याद किया जाता है, एक ऐसे पादरी को जिसने अपनी सोच से पूरी दुनिया को रोशन किया।