क्या पाकिस्तान तालिबान की वापसी पर खुशी मनाने के बाद अब अपनी ही समस्याओं से जूझ रहा है?

सारांश
Key Takeaways
- पाकिस्तान की खुशियाँ जल्दी ही संकट में बदल गईं हैं।
- तालिबान की वापसी ने टीटीपी को मजबूत किया है।
- डूरंड लाइन विवाद ने तनाव को बढ़ाया है।
- पाकिस्तान की सेना को टीटीपी से निपटने में मुश्किलें आ रही हैं।
- अफगान तालिबान पाकिस्तान के खिलाफ गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है।
नई दिल्ली, 15 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। एक घर की कलह आपकी जिंदगी में उतनी हलचल नहीं मचाती, जितनी पड़ोस में हो रही हिंसा का शोर आपको बेचैन कर सकता है। भारत भी इस समय ऐसी ही परिस्थिति का सामना कर रहा है। लेकिन भारत की एक अच्छी बात यह है कि वह इन सभी शोरगुलों से न तो पहले घबराया और न ही आज इसके प्रति कोई चिंता दिखाई दे रहा है।
दरअसल, भारत के पड़ोसी राष्ट्र एक-एक कर अशांत होते जा रहे हैं, जबकि भारत तेजी से विकास की दिशा में बढ़ रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि भारत ने अपने आंतरिक विरोधों को सुलझाने के लिए कभी भी किसी अन्य देश की हस्तक्षेप को महत्व नहीं दिया। लेकिन, भारत के पड़ोसी देशों की सोच इस मामले में भिन्न है।
अफगानिस्तान, जो कभी अमेरिका की मदद से तालिबान को अपने क्षेत्र से बाहर करने की कोशिश कर रहा था, आज फिर तालिबान के कब्जे में है। इस बार तालिबान का समर्थन पाकिस्तान ने किया और अपनी जमीन पर टीटीपी जैसे संगठनों को फलने-फूलने का मौका दिया। अब वही टीटीपी पाकिस्तान के लिए गले की फांस बनता जा रहा है।
बांग्लादेश के हालात भी कुछ ऐसे ही रहे हैं। अमेरिका और चीन से लगातार सहायता की उम्मीद ने वहां की जनता में सरकार के प्रति असंतोष पैदा किया, जिसका खामियाजा वहां के लोकतंत्र को भुगतना पड़ा। नेपाल में भी वामपंथ की जड़ों ने अभिव्यक्ति पाई, और जब वहां की सरकार चीन की तरफ झुक गई, तो जनता ने इसका विरोध किया। श्रीलंका ने भी ऐसे ही हालात देखे, जहां चीन की भूमिका प्रमुख रही।
इस प्रकार, पाकिस्तान में कट्टरपंथी ताकतें और चीन की हस्तक्षेप ने भारत के पड़ोसी देशों को अशांत कर दिया। अमेरिका की राजनीतिक गतिविधियां भी इस स्थिति को और बिगाड़ने में लगी रहीं। अगस्त 2021 में, जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया, तो पाकिस्तान सबसे ज्यादा खुश था। तब पाकिस्तान के आंतरिक मंत्री ने तालिबान सरकार को मान्यता देने वाला पहला देश बनने का दावा किया। उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान थे, जो अब अपने देश में सलाखों के पीछे हैं।
लेकिन अब पाकिस्तान की खुशियों का गुब्बारा तेजी से फूट रहा है। तालिबान के अन्दरुनी मामलों में बढ़ती दखलंदाजी ने पाकिस्तान को एक बार फिर संकट में डाल दिया है।
तालिबान ने अफगानिस्तान में अपने पांव जमाने के लिए 20 साल तक विद्रोह किया, लेकिन उसके सामने 40 से अधिक देशों का गठबंधन था। इस दौरान, तालिबान को हर बार पाकिस्तान से समर्थन मिलता रहा। अब पाकिस्तान को यह समझ में आ रहा है कि जिस टीटीपी को उसने पनपने दिया, वही उसे चुनौती देने के लिए तैयार है।
पाकिस्तान की सेना अब टीटीपी के खिलाफ संघर्ष कर रही है, जो अफगानिस्तान की सीमा में भागकर सुरक्षित पनाह लेती है। इस स्थिति ने पाकिस्तान को गंभीर संकट में डाल दिया है।
अफगान तालिबान भी पाकिस्तान के खिलाफ गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है। तालिबान के विदेश मंत्री ने भारत यात्रा के दौरान जम्मू-कश्मीर को भारत का हिस्सा बताया और यह भी कहा कि पाकिस्तान में आतंकवाद उसकी आंतरिक समस्या है।
इस सब के बीच, पाकिस्तान की सेना के लिए यह स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण साबित हो रही है।