क्या बांग्लादेश में यूएन मानवाधिकार कार्यालय खोलने का निर्णय विवादित है?

सारांश
Key Takeaways
- बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने मानवाधिकार कार्यालय खोलने का निर्णय लिया है।
- कई राजनीतिक दलों और संगठनों ने इस निर्णय का विरोध किया है।
- कट्टर इस्लामी संगठन हिफाजत-ए-इस्लाम ने इसे इस्लामी मूल्यों के खिलाफ बताया है।
- अंतरिम सरकार और यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने तीन वर्ष के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
ढाका, 29 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार द्वारा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (ओएचसीएचआर) की स्थापना को मंजूरी देने के निर्णय का कई राजनीतिक दलों ने तीव्र विरोध किया है। यह जानकारी कट्टर इस्लामी संगठन हिफाजत-ए-इस्लाम द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान दी गई।
सोमवार को ढाका रिपोर्टर्स यूनिटी में आयोजित 'संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग कार्यालय पर समझौते का मूल्यांकन' विषयक गोलमेज चर्चा में विभिन्न राजनीतिक दलों और संगठनों ने इस कदम की निंदा की।
हिफाजत-ए-इस्लाम के महासचिव साजिदुर इस्लाम ने कहा कि ढाका में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (ओएचसीएचआर) की स्थापना “इस्लामी मूल्यों के प्रतिकूल” है और “पश्चिमी वर्चस्व” को बढ़ावा देती है।
संयुक्त सचिव ममूनुल हक ने कहा, “इस कार्यालय को खोलने से पहले सभी राजनीतिक दलों से खुली चर्चा होनी चाहिए। देश और इस्लाम के हित में हम किसी के नाम पर चुप नहीं रह सकते।”
बैठक में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के स्थायी समिति के सदस्य सलाहुद्दीन अहमद ने इस निर्णय को “अनुचित” बताते हुए कार्यवाहक सरकार से पुनर्विचार करने की अपील की, ताकि “बांग्लादेश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी का सामना न करना पड़े।”
अमर बांग्लादेश पार्टी के अध्यक्ष मुजीबुर रहमान मंनु ने संयुक्त राष्ट्र महिला संगठन पर बांग्लादेश में “पश्चिमी मूल्यों को बढ़ावा देने” का आरोप लगाया।
गण अधिकार परिषद के अध्यक्ष नुरुल हक नूर ने कहा, “अमेरिका समर्थित सरकार देश चला रही है। बिना किसी चर्चा के ऐसे निर्णय लेना तानाशाही का संकेत है।”
पिछले सप्ताह भी हिफाजत-ए-इस्लाम समेत कई कट्टर इस्लामी दलों ने इस प्रस्तावित कार्यालय का विरोध किया था। संगठन के प्रमुख शाह मुहीबुल्लाह बाबुनगरी और महासचिव साजिदुर रहमान ने कहा था कि अमेरिकी हितों के लिए इस देश में मानवाधिकार मिशन को अनुमति नहीं दी जाएगी। यह बांग्लादेश के मुस्लिम पारिवारिक कानून, इस्लामी शरिया और धार्मिक मूल्यों में हस्तक्षेप का प्रयास है।
गौरतलब है कि 18 जुलाई को अंतरिम सरकार और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय के बीच तीन वर्ष के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसका उद्देश्य देश में मानवाधिकारों के संरक्षण और संवर्धन को समर्थन देना है।