क्या राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों ने अमेरिका-भारत के रिश्तों में तनाव बढ़ाया?

सारांश
Key Takeaways
- ट्रंप की नीतियों ने भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव बढ़ाया है।
- भारत ने अमेरिकी दबाव को अस्वीकार किया है।
- अमेरिकी और यूरोपीय संघ के व्यापारिक संबंधों में द्वैतिकता है।
- भारत अपनी स्वतंत्र नीति पर चलने का संकल्प जताता है।
- रूस से ऊर्जा व्यापार पर भारत को दबाव में लाने की कोशिश की जा रही है।
वाशिंगटन, 7 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई नीति ने भारत और अमेरिका के बीच पिछले दो दशकों से बनी रणनीतिक साझेदारी में तनाव उत्पन्न कर दिया है। ट्रंप प्रशासन ने भारत के रूसी कच्चे तेल के आयात पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया है, जबकि चीन के लिए रूस के साथ ऊर्जा व्यापार में रियायत बरती जा रही है। यह जानकारी एक रिपोर्ट में गुरुवार को प्रस्तुत की गई।
'इंडिया नैरेटिव' की एक रिपोर्ट के अनुसार, नई दिल्ली ने स्पष्ट किया है कि वह 1.4 अरब लोगों की ऊर्जा आवश्यकताओं को अमेरिका के दबाव में नहीं आने देगा।
विदेश मंत्रालय ने अमेरिका की दोहरी नीति की आलोचना करते हुए कहा कि पश्चिमी देश भी रूस के साथ व्यापार कर रहे हैं। भारत ने स्पष्ट किया कि वह अपनी स्वतंत्र नीति पर चलेगा, न कि अमेरिका के अधीन।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रंप का टैरिफ लगाने का यह कदम उनकी पुरानी रणनीति का हिस्सा है, जो अब अपने अंतिम चरण में पहुँच गई है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि अमेरिका ने चीन के रूस के साथ चल रहे ऊर्जा व्यापार को चुपचाप स्वीकार किया है, लेकिन भारत को दंडात्मक कार्रवाई के लिए निशाना बनाया है। दक्षिण ब्लॉक (भारत सरकार) ने इस चुनिंदा नाराजगी को नजरअंदाज नहीं किया है।
रिपोर्ट के अनुसार, कई वर्षों तक अमेरिका ने भारत को 'रणनीतिक साझेदार' माना और यह विश्वास किया गया कि साझा आर्थिक विकास और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका उसे ट्रंप की उन सख्त नीतियों से बचाएगी जो उन्होंने अन्य देशों के खिलाफ अपनाई थीं।
रिपोर्ट के मुताबिक, यह भ्रम तब टूटा जब ट्रंप ने भारतीय सामानों पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया और भारत के ऊर्जा क्षेत्र पर द्वितीयक प्रतिबंधों की धमकी दी ताकि नई दिल्ली को रूसी कच्चे तेल की खरीद रोकने के लिए दबाव डाला जा सके। वहीं, अमेरिका और यूरोपीय संघ खुद मॉस्को के साथ व्यापारिक संबंध बनाए हुए थे।
इसके अलावा, वाशिंगटन द्वारा पाकिस्तान के प्रति खुले रवैये ने भारत-अमेरिका संबंधों को और नुकसान पहुँचाया। अमेरिका ने पाकिस्तान को 19 प्रतिशत की रियायती टैरिफ दरें दीं और संयुक्त तेल खोज समझौते पर भी हस्ताक्षर किए। यह सब तब हुआ जब भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में पाकिस्तान की भूमिका को उजागर किया था। ट्रंप ने भारत में काम कर रही अमेरिकी कंपनियों को चेतावनी दी कि अगर वे 'नौकरियां वापस अमेरिका नहीं लाएंगी' तो उन्हें सजा दी जाएगी। इन सब बातों ने भारत-अमेरिका रिश्तों को गंभीर रूप से प्रभावित किया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह उस देश का व्यवहार नहीं है जो 'रणनीतिक साझेदारी' को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हो, बल्कि यह एक 'लोकलुभावन सौदागर' की मानसिकता को दर्शाता है, जो गठबंधनों को लंबे समय के निवेश के रूप में नहीं, बल्कि निरंतर लाभ के खेल में सौदेबाजी के साधन के रूप में देखता है।
रिपोर्ट में कहा गया, "अमेरिका-भारत का रिश्ता कभी 21वीं सदी की वैश्विक व्यवस्था का एक अहम आधार माना जाता था, लेकिन आज के दौर में लोकलुभावन सौदेबाजी को विदेश नीति के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, यहां तक कि अहम रिश्ते भी बलि चढ़ सकते हैं। दुनिया अब समझने लगी है कि ट्रंप के साथ कोई भी रिश्ता ‘विशेष’ नहीं होता, सब कुछ मौके पर टिका होता है और जब गठबंधनों को डिस्पोजेबल (त्यागने योग्य) माना जाता है, तो वैश्विक व्यवस्था खुद खतरनाक रूप से कमजोर हो जाती है।