क्या भारत की सैन्य शक्ति ने पाकिस्तान को बड़े बदलाव के लिए मजबूर किया?
सारांश
Key Takeaways
- भारत की सैन्य शक्ति में वृद्धि ने पाकिस्तान को रणनीतिक बदलाव के लिए प्रेरित किया है।
- पाकिस्तान का 27वां संशोधन भारत के सैन्य सुधारों का एक उत्तर है।
- दोनों देशों के बीच की प्रतिस्पर्धा क्षेत्रीय सुरक्षा को प्रभावित करती है।
- पाकिस्तान को अपनी सैन्य संरचना को आधुनिक बनाने की आवश्यकता है।
- सुरक्षा प्रतिस्पर्धा में संतुलन बनाए रखने के लिए दोनों देशों को विचार करना होगा।
नई दिल्ली, 15 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। क्या भारत की सैन्य ताकत ने पाकिस्तान को महत्वपूर्ण बदलाव की ओर अग्रसर किया है? यह एक संभावना है और राजनीतिक दृष्टि से भी स्वाभाविक है। पाकिस्तान की संसद द्वारा पारित 27वां संवैधानिक संशोधन भारत के सैन्य सुधारों के संकेत देता है!
दक्षिण एशिया में वर्तमान सुरक्षा परिदृश्य में, दोनों देशों के रणनीतिक निर्णय एक-दूसरे से अलग नहीं देखे जा सकते। पाकिस्तान जो 'ट्राई सर्विस कंट्रोल', 'चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेस (सीडीएफ)' मॉडल और सुरक्षा कानूनों के विस्तार पर विचार कर रहा है, वह भारत की हाल की सैन्य संरचना से स्पष्ट रूप से प्रभावित है, विशेषकर 2019 के बाद से जब भारत ने पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की नियुक्ति की और 'ज्वाइंट थियेटर कमांड' की दिशा में कदम बढ़ाया।
भारत का सीडीएस मॉडल पाकिस्तान के लिए केवल एक प्रशासनिक सुधार नहीं था; इसने भारत की सैन्य रणनीतियों, संसाधनों के नियंत्रण और तीनों सेनाओं के बीच समन्वय को पहले से कहीं अधिक मजबूत किया। पाकिस्तान की सैन्य और राजनीतिक चर्चाओं में यह तर्क लगातार उभरता है कि भारत के इस कदम ने “एनफील्ड एफेक्ट” उत्पन्न किया है—अर्थात, यदि प्रतिद्वंद्वी एकीकृत कमान की ओर बढ़ रहा है, तो प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए हमें भी ऐसा ही करना होगा। यही कारण है कि पाकिस्तान में सीडीएफ की अवधारणा को “भारत के सीडीएस मॉडल का शैडो चेंज” कहा जा रहा है, जो सेना, नौसेना और वायुसेना को एक अधिक केंद्रीकृत ढांचे में लाएगा और राष्ट्रीय स्तर पर त्वरित निर्णय लेने में सहायक होगा।
ट्राई-सर्विस कंट्रोल की चर्चा भी इसी रणनीतिक प्रतिस्पर्धा से संबंधित है। भारत पिछले पांच वर्षों से ज्वाइंट थियेटर कमांड की योजना पर काम कर रहा है, जिसमें उत्तरी, पश्चिमी और समुद्री थिएटरों में संयुक्त सैन्य नियंत्रण का विचार शामिल है। यही कारण है कि पाकिस्तान में यह चिंता बार-बार उठाई जाती है कि अगर भारत के पास अधिक संगठित थिएटर-कमांड संरचना होगी, तो सीमा क्षेत्रों में उसका सामरिक दबाव बढ़ेगा, जिससे प्रतिक्रिया की क्षमता बनाए रखने के लिए पाकिस्तान को अपनी कमान प्रणाली का पुनर्गठन करना पड़ेगा।
यह तर्क नया नहीं है। 1998 में परमाणु परीक्षणों के बाद भी दोनों देशों ने एक-दूसरे के मिसाइल कार्यक्रमों की गति देखकर अपने कार्यक्रमों को तेज किया था, और 2004 के बाद भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी के विस्तार ने भी पाकिस्तान को चीन के साथ अपने सैन्य संबंधों को गहरा करने के लिए प्रेरित किया था। इतिहास में इसी तरह की प्रतिक्रियात्मक प्रवृत्तियों की भरपूर मिसालें हैं।
सुरक्षा कानूनों के विस्तार की आवश्यकता भी भारत-पाक तकनीकी प्रतिस्पर्धा के संदर्भ में देखी जा रही है। भारत जहां ड्रोन-स्वॉर्म, एआई-आधारित सर्विलांस और लंबी-मारक क्षमता वाली मिसाइल प्रणालियों पर तेजी से निवेश कर रहा है, वहीं पाकिस्तान में यह चिंता गहराई पकड़ती जा रही है कि मौजूदा कानूनी ढांचा इन आधुनिक खतरों का सामना करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
विशेष रूप से सीमा क्षेत्रों में ड्रोन घुसपैठ और हाई-टेक जासूसी गतिविधियों के बढ़ते मामलों के बीच पाकिस्तान में यह भावना उभरी है कि पारंपरिक सैन्य कानून अब नई तकनीकी लड़ाइयों के लिए सक्षम नहीं हैं। भारत की उत्तर और पश्चिम सीमा पर बढ़ते तकनीकी तैनातियों के संदर्भ में पाकिस्तान में यह तर्क किया जाता है कि यदि कानूनी अधिकार अधिक केंद्रीकृत और व्यापक नहीं होंगे, तो सुरक्षा प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने का खतरा है।
इन सभी कारणों से, 27वां संशोधन कुछ विशेषज्ञों द्वारा केवल घरेलू प्रशासनिक सुधार नहीं माना जाता, बल्कि इसे दक्षिण एशिया की शक्ति-प्रकृति के समानांतर देखा जाता है। पाकिस्तान का इतिहास दर्शाता है कि हर बड़े सुरक्षा बदलाव के पीछे एक बाहरी प्रेरणा रही है—चाहे वह 1950 के दशक में 'दक्षिण पूर्व एशिया संधि संगठन- केंद्रीय संधि संगठन (एसईएटीओ-सीईएनटीओ)' का गठबंधन हो, 1980 के दशक में अफगान युद्ध के चलते सुरक्षा ढांचे का पुनर्गठन हो, या 2001 के बाद आतंकवाद-विरोधी कानूनों का विस्तार हो।
अब इसी क्रम में भारत के सैन्य सुधारों को भी पाकिस्तान अपने रणनीतिक वातावरण की एक अनिवार्य चुनौती मानता है।
इसलिए यह प्रश्न कि “क्या भारत का कोई खौफ पैदा हो रहा है?” बेबुनियाद नहीं है। यह खौफ सीधे युद्ध के खतरे का नहीं है, बल्कि प्रतिस्पर्धा में असंतुलन का है। यही कारण है कि पाकिस्तान में यह सोच तेजी से उभर रही है कि सुरक्षा ढांचे को समय के साथ आधुनिक, केंद्रीकृत और तकनीकी रूप से सशक्त बनाना आवश्यक है, वरना क्षेत्रीय शक्ति संतुलन भारत की ओर झुक सकता है। 27वां संशोधन उसी बड़े विमर्श का हिस्सा है, जिसमें घरेलू राजनीति और बाहरी रणनीतिक दबाव एक साथ मिलकर यह तय करते हैं कि किसी देश की सैन्य-राजनीतिक दिशा भविष्य में कैसी होगी।