क्या पाकिस्तान में डिजिटल बैन चिंताओं का विषय है, यूरोप की खामोशी क्यों है?

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क्या पाकिस्तान में डिजिटल बैन चिंताओं का विषय है, यूरोप की खामोशी क्यों है?

सारांश

पाकिस्तान में डिजिटल बैन ने आवाज़ को दबाया, अब विश्व बिरादरी को इस पर खामोशी तोड़नी होगी। क्या यूरोप इस स्थिति का सामना करेगा?

Key Takeaways

  • पाकिस्तान में डिजिटल बैन
  • यूरोप की खामोशी चिंताजनक है।
  • इंटरनेट बंद करना तात्कालिक और संरचनात्मक नुकसान है।
  • ये मुद्दे मानवाधिकारों से जुड़े हैं।
  • यूरोप को सैद्धांतिक कदम उठाने की ज़रूरत है।

इस्लामाबाद, 14 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। पाकिस्तान में डिजिटल बैन ने आम जन की आवाज को दबाने का काम किया है। यह स्थिति अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय और संस्थाओं को असमंजस में डाल रही है, जहां वे यह समझ नहीं पा रहे हैं कि खामोश रहें या इसके खिलाफ खुलकर बोलें। इस उहापोह और चुप्पी पर शुक्रवार को एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है।

यूके के मीडिया आउटलेट मिल्ली क्रोनिकल ने पाकिस्तान में डिजिटल नियंत्रण के मुद्दे को उठाया है। विस्तृत रिपोर्ट में इसकी नीयत और यूरोप के देशों के सैद्धांतिक दृष्टिकोण पर चर्चा की गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जब सरकारें इंटरनेट बंद कर देती हैं और उनके आलोचना करने वाले चैनल्स को बैन कर देती हैं, तो यह स्पष्ट है कि इसका नुकसान तात्कालिक और संरचनात्मक दोनों है। इससे जीवन संकट में पड़ जाता है और अपने हिसाब से नैरेटिव सेट किया जाने लगता है।

पाकिस्तान ने इस दिशा में कदम उठाए हैं। वहां की सरकार ने डिजिटल कंट्रोल के चलते बड़ी आबादी को समय-समय पर मोबाइल ब्रॉडबैंड से काट दिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को ब्लॉक किया। पत्रकारों का धमकाना और अगवा करना भी इस स्थिति को दर्शाता है, जो संरचनात्मक और तात्कालिक नुकसान की ओर इशारा करता है। इसलिए जरूरी है कि यूरोपीय देश सैद्धांतिक कदम उठाएं और बेहतर कूटनीति के साथ आगे बढ़ें।

पाकिस्तानी डिजिटल नियंत्रण के बीच यूरोपीय देशों की खामोशी को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा गया है कि "इसके बजाय, हमने जो देखा है वह एक सोची-समझी खामोशी है जो इस असहज सच्चाई को उजागर करती है कि कैसे मानवाधिकारों की बात करने वाले भू राजनीतिक सुविधा को ध्यान में रखकर चुप्पी साधे रहते हैं। यह पैटर्न अब जाना पहचाना सा लग रहा है।"

रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि यूरोप की नीति मोल-भाव वाली नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसे पाकिस्तान के डिजिटल दमन को आंतरिक समस्या के रूप में नहीं देखना चाहिए। इसे ह्यूमन राइट इमरजेंसी के रूप में ट्रीट किया जाना आवश्यक है।

यदि यूरोपीय विदेश नीति नारों से परे लोकतंत्र को और प्रेस विज्ञप्तियों से परे प्रेस स्वतंत्रता को महत्व देती है, तो इसे ऐसी प्रथाओं को "भू-राजनीतिक चिंताओं के लिए स्वीकार्य" तत्व के रूप में स्वीकार करना बंद कर देना चाहिए।

यह रिपोर्ट दावा करती है कि अगर यूरोप मूक बना रहा, तो यह न केवल पाकिस्तानियों के लिए निराशाजनक होगा, बल्कि यह अन्य हुक्मरानों को भी डिजिटल बैन करने के लिए प्रेरित करेगा।

Point of View

मैं मानता हूँ कि डिजिटल बैन केवल पाकिस्तान की समस्या नहीं है, बल्कि यह वैश्विक मानवाधिकारों का मुद्दा है। हमें अपनी आवाज़ उठानी चाहिए और इस मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
NationPress
14/11/2025

Frequently Asked Questions

पाकिस्तान में डिजिटल बैन का क्या प्रभाव है?
पाकिस्तान में डिजिटल बैन ने आम नागरिकों की आवाज़ को दबाने और उनकी जानकारी तक पहुँच को सीमित करने का काम किया है।
यूरोप की खामोशी का क्या मतलब है?
यूरोप की खामोशी इस बात का संकेत है कि मानवाधिकारों की चर्चा में भू राजनीतिक हितों को प्राथमिकता दी जा रही है।
क्या डिजिटल बैन वैश्विक स्तर पर चिंता का विषय है?
हाँ, डिजिटल बैन केवल एक देश का मामला नहीं है, यह वैश्विक मानवाधिकारों के लिए चिंता का विषय है।