क्या पाकिस्तान में पत्रकार खालिद जमील की गिरफ्तारी प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है?

सारांश
Key Takeaways
- खालिद जमील की गिरफ्तारी ने प्रेस की स्वतंत्रता पर सवाल उठाया है।
- एचआरसीपी ने इसे एक गंभीर उल्लंघन बताया है।
- पाकिस्तान में पत्रकारों का उत्पीड़न बढ़ रहा है।
- महिला पत्रकारों के अधिकारों की सुरक्षा आवश्यक है।
- स्वतंत्रता की आवाज को दबाना लोकतंत्र के खिलाफ है।
इस्लामाबाद, 23 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। पाकिस्तान मानवाधिकार परिषद (एचआरसीपी) ने देश के प्रमुख पत्रकार खालिद जमील की गिरफ्तारी को 'प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला' करार दिया है।
जमील को शुक्रवार को गिरफ्तार किया गया था। पाकिस्तान की जांच एजेंसी एफआईए के साइबर क्राइम सेल ने उन्हें इस्लामाबाद मीडिया टाउन में उनके निवास से उठाया।
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जांच एजेंसी ने एक बयान में कहा कि उन्हें "आधिकारिक प्रक्रियाएं पूरी होने" के बाद हिरासत में लिया गया, लेकिन कोई और जानकारी नहीं दी।
एचआरसीपी ने कहा, "पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार पाकिस्तान के संविधान और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों द्वारा संरक्षित है। किसी भी पत्रकार को उसके विचारों या रिपोर्टिंग के लिए गिरफ्तार करना न केवल मौलिक मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि प्रेस की स्वतंत्रता पर भी हमला है।"
मानवाधिकार संगठन ने मांग की कि पाकिस्तानी सरकार और संबंधित अधिकारी जमील को तुरंत रिहा करें और पत्रकारों का उत्पीड़न बंद करें।
प्रेस की स्वतंत्रता को एक स्वतंत्र समाज की नींव बताते हुए, संगठन ने सरकार से पाकिस्तान में मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाने का आग्रह किया। कहा कि पत्रकारों की आवाज को दबाना लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है।
यह पहली बार नहीं है कि जमील कानूनी शिकंजे में फंसे हों। इससे पहले, उन्हें सितंबर 2023 में सोशल मीडिया पर कथित तौर पर देश-विरोधी बयान फैलाने के आरोप में एफआईए द्वारा गिरफ्तार किया गया था।
जमील वर्तमान में किसी भी मीडिया हाउस से जुड़े नहीं हैं और फिलहाल एक यूट्यूब चैनल चलाते हैं। उनका चैनल पाकिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन और राजनीतिक दमन पर ध्यान केंद्रित करता है।
इस सप्ताह की शुरुआत में, मानवाधिकार संरक्षण आयोग (एचआरसीपी) ने इस्लामाबाद स्थित नेशनल प्रेस क्लब (एनपीसी) की चार महिला पत्रकारों के खिलाफ इलेक्ट्रॉनिक अपराध निवारण अधिनियम (पीईसीए) के तहत मामले दर्ज करने की तीखी आलोचना की थी और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया था।
मानवाधिकार संस्था के अनुसार, पाकिस्तानी महिला पत्रकार पहले से ही कठिन परिस्थितियों में कार्यरत हैं। ऐसे में नैयर अली, सेहरिश कुरैशी, मायरा इमरान और शकीला जलील के खिलाफ कार्रवाई इस क्षेत्र में काम कर रही महिलाओं की दुश्वारियों की ओर इशारा करती है।