क्या थ्येनचिन एससीओ शिखर सम्मेलन 2025 सहयोग, विकास और साझा भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण है?

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क्या थ्येनचिन एससीओ शिखर सम्मेलन 2025 सहयोग, विकास और साझा भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण है?

सारांश

थ्येनचिन में संपन्न एससीओ शिखर सम्मेलन ने वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक सहयोग के नए आयाम खोले हैं। इसमें 20 से अधिक देशों के नेता शामिल हुए, जो साझा भविष्य की ओर एक नई दिशा में आगे बढ़ने का संकेत देते हैं।

Key Takeaways

  • 20 से अधिक देशों के नेताओं की उपस्थिति ने सम्मेलन की महत्वपूर्णता बढ़ाई।
  • नई एसीओ विकास बैंक की योजना ने वित्तीय सहयोग का नया आयाम खोला।
  • भारत, चीन और रूस के बीच सामूहिक सहयोग का संदेश स्पष्ट है।
  • ग्लोबल साउथ के लिए नवीनतम राजनीतिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया।
  • बढ़ता एससीओ प्रभाव वैश्विक राजनीति में नई दिशा दे सकता है।

बीजिंग, 3 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक चीन के थ्येनचिन शहर में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन इतिहास का सबसे बड़ा और प्रभावशाली आयोजन रहा। यह पांचवीं बार था जब चीन ने एससीओ शिखर सम्मेलन की मेजबानी की। इस बार की ख़ासियत यह रही कि इसमें 20 से अधिक देशों के शीर्ष नेता और 10 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख शामिल हुए। यह सम्मेलन केवल राजनीतिक और आर्थिक सहयोग का मंच नहीं रह गया, बल्कि एक नए वैश्विक दृष्टिकोण और साझा भविष्य की परिकल्पना का प्रतीक बन गया।

एससीओ एक अंतर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना 15 जून 2001 को शंघाई में छह देशों, चीन, कजाकिस्तान, किर्गिज गणराज्य, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान द्वारा की गई थी। 2017 में भारत-पाकिस्तान इसका हिस्सा बने और फिर ईरान 2023, 2024 में बेलारूस भी एससीओ से जुड़ गया। अब यह 10 देशों का समूह बन गया है जो दुनिया की लगभग 40 प्रतिशत आबादी का हिस्सा हैं।

गौरतलब है कि भारत-चीन के बीच पिछले कुछ वर्षों में उतार-चढ़ाव देखने को मिला और दोनों देशों के संबंधों में खटास आई, लेकिन 2018 के बाद भारतीय प्रधानमंत्री का यह दौरा बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है, खासकर जब अमेरिका द्वारा भारत-चीन-रूस समेत दुनिया के कई देशों पर टैरिफ़ लगाए जा रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा महत्वपूर्ण है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने प्रधानमंत्री मोदी का बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने याद दिलाया कि भारत और चीन केवल प्राचीन सभ्यताएं नहीं हैं, बल्कि दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश भी हैं और ग्लोबल साउथ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उन्हें एससीओ में शामिल होने पर ख़ुशी है और अन्य देशों के नेताओं से मिलकर आनंदित महसूस हुआ। उन्होंने एससीओ मंच से भारत की नीति को तीन शब्दों में परिभाषित किया—सुरक्षा, संचार और अवसर

रूस और चीन ने अपने भाषणों में बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था और “कोल्ड वॉर मानसिकता” से मुक्त सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया। यह संदेश स्पष्ट करता है कि एससीओ अब वैश्विक दक्षिण की सामूहिक आवाज के रूप में उभर रहा है। ईरान और बेलारूस जैसे नए सदस्य देशों की सक्रिय भागीदारी ने इस मंच की व्यापकता और प्रासंगिकता को और बढ़ा दिया। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने एससीओ और वैश्विक मंचों पर न्याय, आत्म-निर्णय, संप्रभुता और गैर-हस्तक्षेप जैसे सिद्धांतों को फिर से बताया।

चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने सम्मेलन में एसीओ विकास बैंक की स्थापना की योजना प्रस्तुत की। अगले तीन वर्षों में सदस्य देशों को लगभग 1.4 अरब डॉलर का ऋण प्रदान किया जाएगा। इसके साथ ही 280 मिलियन डॉलर की नि:शुल्क सहायता का भी ऐलान किया गया। यह निर्णय न केवल सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था को गति देगा, बल्कि वित्तीय स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की दिशा में भी महत्वपूर्ण साबित होगा।

एसीओ इतिहास का सबसे बड़ा शिखर सम्मेलन माना गया, जिसमें 10 पूर्ण सदस्य (जिनमें भारत, ईरान, बेलारूस आदि शामिल हैं) और कई बातचीत करने वाले साथी उपस्थित रहे। इसमें वैश्विक दक्षिण की एकता और एसीओ को पश्चिमी प्रभुत्व का चुनौती स्वरूप स्थापित करने का स्पष्ट संदेश था। इसके साथ ही भारत-चीन-रूस का एक साथ आना और आरआईसी को मजबूती देना भी एक अहम मुद्दा है। जैसा कि प्रतीत होता है कि पश्चिमी देशों की मनमानी और अस्थिरता हमेशा बनी रही है, ऐसे में ग्लोबल साउथ और आरआईसी का मजबूत बने रहना जरूरी हो जाता है। इन तीनों देशों को यह समझना होगा कि इनका साथ रहना बेहद ज़रूरी है ताकि किसी भी विपरीत परिस्थिति में ये तीनों देश एक-दूसरे का सहयोग कर सकें। सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग की मुलाकात ने एक सकारात्मक संकेत दिया। वहीं राष्ट्रपति पुतिन ने संप्रभुता, आत्मनिर्णय और गैर-हस्तक्षेप जैसे सिद्धांतों पर जोर देकर संगठन की मूल आत्मा को दोहराया।

इन उपलब्धियों से स्पष्ट होता है कि 2025 का थ्येनचिन एससीओ शिखर सम्मेलन न केवल क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करने में सहायक रहा, बल्कि वैश्विक शासन में एससीओ की भूमिका को एक नई दिशा देने का अवसर भी प्रदान करता है—विशेषकर ग्लोबल साउथ के देशों के लिए। यह सम्मेलन उम्मीदों और सहयोग की नई किरण लेकर आया है। थ्येनचिन शिखर सम्मेलन ने यह साफ कर दिया है कि एससीओ अब केवल एक सुरक्षा संगठन नहीं, बल्कि विकास और साझा भविष्य की दिशा में आगे बढ़ने वाला एक यूरेशियाई सहयोग मंच बन चुका है।

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग) (लेखक- देवेंद्र सिंह)

Point of View

NationPress
03/09/2025

Frequently Asked Questions

थ्येनचिन एससीओ शिखर सम्मेलन 2025 का महत्व क्या है?
यह सम्मेलन वैश्विक दक्षिण के देशों के लिए न केवल राजनीतिक और आर्थिक सहयोग का मंच है, बल्कि एक साझा भविष्य की दिशा में आगे बढ़ने का अवसर भी प्रदान करता है।
इस सम्मेलन में कितने देशों के नेता शामिल हुए?
इस सम्मेलन में 20 से अधिक देशों के शीर्ष नेता शामिल हुए।
एससीओ की स्थापना कब हुई थी?
एससीओ की स्थापना 15 जून 2001 को शंघाई में हुई थी।
इस सम्मेलन में नए सदस्य कौन हैं?
ईरान और बेलारूस जैसे नए सदस्य देशों ने सम्मेलन में भाग लिया।
प्रधानमंत्री मोदी का इस सम्मेलन में क्या योगदान था?
प्रधानमंत्री मोदी ने इस मंच से भारत की नीति को सुरक्षा, संचार और अवसर के तीन शब्दों में परिभाषित किया।