क्या आपातकाल का विरोध करने वाले भेजे गए थे जेल? : सुधांशु त्रिपाठी

सारांश
Key Takeaways
- आपातकाल ने लोकतंत्र को कमजोर किया।
- विरोध करने वालों को जेल में डाल दिया गया।
- राजनीतिक चेतना का उदय जेपी आंदोलन से हुआ।
- सांस्कृतिक लोकतंत्र का उदय राममंदिर आंदोलन से हुआ।
- लोकतंत्र की रक्षा बाबासाहेब अंबेडकर के संविधान से है।
इंदौर, २५ जून (राष्ट्र प्रेस)। भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा है कि भारत हमेशा से लोकतंत्र की परंपरा का वाहक राष्ट्र रहा है, लेकिन लगभग पांच दशक पहले एक ऐसा समय आया जो बहुत ही दुखद, दर्दनाक और कलंकित अध्याय था। उस समय जो भी विरोध करता था, उसे जेल में डाल दिया जाता था।
आपातकाल की ५०वीं वर्षगांठ के अवसर पर भाजपा द्वारा देशभर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इसी संदर्भ में सुधांशु त्रिवेदी ने इंदौर में संवाददाताओं से चर्चा की। उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान देश के चारों स्तंभों को कमजोर कर दिया गया था, और जो लोग इसका विरोध करते थे, उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया जाता था।
उन्होंने आगे कहा कि भारत में राजनीतिक चेतना का उदय जेपी आंदोलन के बाद हुआ और नवनिर्माण आंदोलन गुजरात में प्रारंभ हुआ, जिसने देश के राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया। आपातकाल का प्रभाव यह रहा कि कांग्रेस कई राज्यों में १९७७ के बाद सत्ता में नहीं आ सकी। देश की स्वतंत्रता के बाद सांस्कृतिक चेतना का उदय १९९० के दशक में राममंदिर आंदोलन के बाद हुआ। वैचारिक स्वतंत्रता की लड़ाई अब भी जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि यह अमृतकाल है, जिसमें हमें गुलामी की मानसिकता से मुक्त होना है।
उन्होंने कहा कि आपातकाल ने हमें वास्तविक राजनीतिक लोकतंत्र प्रदान किया, जबकि सांस्कृतिक लोकतंत्र हमें बीसवीं शताब्दी के अंत में मिला, और वैचारिक लोकतंत्र के लिए संघर्ष अभी भी जारी है। इसलिए लोकतंत्र की रक्षा के लिए बाबासाहेब अंबेडकर द्वारा रचित संविधान के अनुसार हमें इतना मजबूत लोकतंत्र स्थापित करना चाहिए कि कोई ऐसे विचार करने की हिम्मत न करे। भाजपा और एनडीए इस दिशा में कार्य कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि विरोधी दल के नेताओं को भाजपा की सरकार ने सम्मान दिया है, जिन्होंने इस देश के लिए योगदान दिया है। यह इस बात का प्रमाण है कि लोकतंत्र में वैचारिक विभेद के बावजूद हम देश के लिए योगदान देने वालों के साथ खड़े होते हैं। यही लोकतांत्रिक भावना है।
ईरान और इजरायल युद्ध पर त्रिवेदी ने कहा कि सोनिया गांधी के नेतृत्व में चलने वाली सरकार ने ईरान का विरोध किया था, इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को वोट बैंक के तराजू पर नहीं तौला जाना चाहिए।