क्या आपातकाल का दर्द आज भी ताजा है? जानिए उन लोगों की दास्तान जिन्होंने झेला है ये अनुभव

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क्या आपातकाल का दर्द आज भी ताजा है? जानिए उन लोगों की दास्तान जिन्होंने झेला है ये अनुभव

सारांश

आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर, उत्तर प्रदेश के लोगों ने अपने अनुभव साझा किए। क्या आपातकाल का दर्द आज भी ताजा है? जानें उन लोगों की दास्तान जो इस भयावह समय के गवाह रहे हैं।

Key Takeaways

  • आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर नागरिकों की पीड़ा।
  • जेल में यातनाओं का सामना करने वाले लोगों की दास्तान।
  • आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का उल्लंघन।
  • सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव की चर्चा।
  • लोगों की एकजुटता और संघर्ष का महत्व।

लखनऊ, २५ जून (राष्ट्र प्रेस)। आपातकाल के ५० साल पूरे होने के अवसर पर, तत्कालीन कांग्रेस सरकार के जुल्मों का सामना कर चुके उत्तर प्रदेश के कई नागरिकों ने अपनी पीड़ा साझा की। उन्होंने कहा कि आज भी उन भयावह दिनों की याद आते ही दिल दहल जाता है।

आपातकाल के दौरान जेल जाने वाले लालचंद्र मौर्या ने समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से अपने कड़वे अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि आपातकाल के ५० साल बीत जाने के बावजूद, लोग उस दर्द से उबर नहीं पाए हैं। उन्होंने कहा कि उनके गुरु बाबा जी को २९ जून १९७५ को जिलाधिकारी ने बुलाया था। गुरुदेव खुद गाड़ी चलाकर पुलिसकर्मी के पास गए थे। जब उन्होंने पुलिसवाले से उनका जुर्म पूछा, तो उसने बताया कि उन्हें मीसा के तहत गिरफ्तार किया जा रहा है। आगरा जेल में बंद होने के बाद उन्हें यातनाएं दी गईं।

जब भक्तों को इसके बारे में पता चला, तो लालचंद्र मौर्या और बाबा जी के अन्य भक्त उनसे मिलने पहुंचे। मौर्या ने कहा कि बाबा के करीब पांच हजार से अधिक भक्त उनसे मिलने पहुंचे, जिससे पुलिसकर्मी हैरान रह गए। इसके बाद पुलिस ने दिल्ली को सूचित किया कि हजारों की संख्या में बाबा के अनुयायी आ गए हैं। यदि समय रहते कोई कदम नहीं उठाया गया, तो एक बड़ी दिक्कत हो सकती है। इसके बाद बाबा को बरेली जेल भेजा गया। उन्हें अकेले बंद कर दिया गया था, लेकिन, जेल में भी उनका प्रचार चलता रहा।

मौर्या ने कहा, "बाबा जेल में रहते हुए भी घबराए नहीं, उनका हौसला नहीं डिगा। उन्होंने कहा कि हमें जेल को जेल नहीं समझना है, बल्कि यहां पर भी भजन कीर्तन करते रहना है, ताकि हम अपनी बात शासन तक पहुंचा सकें।" उन्होंने कहा कि जब यह आदेश आया कि सभी को बाबा जी के साथ जेल जाना होगा, तब हम हजारों की संख्या में जेल परिसर पर पहुंचे और नारे लगाए कि 'बाबा जी को छोड़ दो, और हमें जेल दो'।

जेल में उन्हें बहुत सताया गया। हमें कहा गया कि हमारी नसबंदी कर दी जाएगी। वह सर्दी का समय था, और हमें बर्फ डाल दिया जाता था। मैं करीब ढाई महीने तक जेल में था।

उन दिनों को याद कर आज भी दिल दहल जाता है। दो लोग सड़क पर बात नहीं कर सकते थे। अखबार पर सेंसरशिप लगा दी गई थी। कई माताओं ने जेल में ही अपने बच्चे को जन्म दिया था। उस समय की सरकार ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी थीं।

उस दौर को याद करते हुए मथुरा के प्रह्लाद मिश्रा बताते हैं कि उन दिनों लोगों के साथ क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गई थीं। आपातकाल का विरोध करने वाले लोगों को बहुत यातनाएं दी गई थीं, जिन्हें याद कर आज भी रूह कांप जाती है।

पूर्व विधायक सुरेंद्र प्रताप सिंह ने भी आपातकाल के काले दौर को याद किया। उन्होंने कहा कि आज से ५० साल पहले इंदिरा गांधी ने जनाक्रोश से बचने के लिए आपातकाल का ऐलान किया था। इससे पहले देशभर में लोगों का आक्रोश देखने को मिला था।

सुरेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि मौलिक अधिकारों को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया था। उन्हें भी २१ दिन तक जौनपुर जेल में रखा गया था और इसके बाद दूसरे जेल में भेज दिया गया था। इस दौरान कई बड़े पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया था।

Point of View

NationPress
25/06/2025

Frequently Asked Questions

आपातकाल क्या था?
आपातकाल वह समय था जब इंदिरा गांधी ने 1975 में देश में आपातकाल की घोषणा की थी, जिससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ।
आपातकाल के दौरान क्या हुआ?
आपातकाल के दौरान कई नेताओं, पत्रकारों और आम नागरिकों को बिना किसी कारण के गिरफ्तार किया गया और उन्हें यातनाएं दी गईं।
आपातकाल का विरोध क्यों हुआ?
आपातकाल का विरोध इस कारण हुआ क्योंकि यह लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन था और इससे देश में असंतोष उत्पन्न हुआ।
आपातकाल का प्रभाव क्या था?
आपातकाल का प्रभाव देश की राजनीति, समाज और मीडिया पर गहरा पड़ा, जिससे लोकतंत्र की नींव कमजोर हुई।
आपातकाल के दौरान लोग कैसे विरोध करते थे?
लोगों ने जेल जाकर, सड़कों पर उतरकर और नारे लगाकर आपातकाल का विरोध किया।