क्या आपातकाल के 50 साल : सीएम नीतीश कुमार का कहना है कि इमरजेंसी थी तानाशाही का प्रतीक?

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क्या आपातकाल के 50 साल : सीएम नीतीश कुमार का कहना है कि इमरजेंसी थी तानाशाही का प्रतीक?

सारांश

आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तानाशाही की याद दिलाई। उन्होंने बताया कि कैसे इंदिरा गांधी सरकार ने लोगों की आवाज को दबाया और लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष का आह्वान किया। यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक पल है, जो हमें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहने की प्रेरणा देता है।

Key Takeaways

  • आपातकाल ने भारतीय लोकतंत्र को चुनौती दी।
  • सीएम नीतीश ने तानाशाही का विरोध किया।
  • संविधान की रक्षा के लिए सजग रहना आवश्यक है।
  • एकता और साहस से ही लोकतंत्र की रक्षा संभव है।
  • इतिहास से सीख लेकर हमें अपने अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।

पटना, २५ जून (राष्ट्र प्रेस)। आपातकाल के ५० साल पूरे होने पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा की, जिसमें उन्होंने इसे तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार की तानाशाही का प्रतीक बताया। उन्होंने बताया कि आपातकाल के दौरान जनता की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई थी। उन सभी साथियों को तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाने के कारण जेल में डाल दिया गया था।

सीएम नीतीश ने कहा कि बिहार ने हमेशा संविधान, न्याय, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय की भावना को अपने विकास का आधार बनाया है। हम संविधान के आदर्शों की रक्षा के लिए सदैव सजग रहेंगे।

देश में आपातकाल के बुधवार को ५० साल पूरे हुए। २५ जून १९७५ को आपातकाल लागू किया गया था। इस अवसर पर सीएम नीतीश ने उस समय को याद करते हुए अपनी बातें साझा की।

सीएम नीतीश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "२५ जून, १९७५ का वो दिन हम सभी को याद है, जब देश में आपातकाल लागू हुआ था। इसे स्वतंत्र भारत के इतिहास का काला दिन कहा जाता है। १९७५ का आपातकाल तत्कालीन सरकार की तानाशाही का प्रतीक था। आपातकाल के दौरान जनता की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदी लगा दी गई थी। आपातकाल के खिलाफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी ने आंदोलन का आगाज किया। मैंने भी अपने कई साथियों के साथ इस आंदोलन में भाग लिया तथा आपातकाल का सक्रिय विरोध किया। हम सभी को तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जेल में डाल दिया गया। लेकिन, देशवासियों ने एकजुटता और साहस का परिचय दिया। हम एकजुट होकर लड़ाई लड़े।"

उन्होंने आगे लिखा, "आप सभी को पता है कि लोकतंत्र के मूल में जनता की आवाज होती है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम हर परिस्थिति में उसकी रक्षा करें। बिहार ने हमेशा संविधान, न्याय, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय की भावना को अपने विकास का मार्ग बनाया है। हमारा यह संकल्प रहेगा कि हम संविधान के आदर्शों की रक्षा के लिए सदैव सजग रहेंगे।"

इसके अलावा, बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने आपातकाल के ५० वर्ष पूरे होने पर एक्स पर लिखा, "२५ जून १९७५ का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का एक ऐसा काला अध्याय है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। दंभ से भरी, निरंकुश कांग्रेस सरकार ने संविधान की मर्यादा को तार-तार किया, अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटा। भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं पर विश्वास रखने वाले तथा देश के संविधान की गरिमा के प्रति समर्पित लोग, २५ जून को कभी भूल नहीं पाएंगे। आपातकाल में जेल गए लोकतंत्र सेनानियों की मार्मिक कहानियां सुनकर आज भी हृदय में पीड़ा के निशान उभर आते हैं। आपातकाल की कालरात्रि की भयावह अवधि में लोकतंत्र की पुनर्स्थापना हेतु संघर्ष करने वाले सभी लोकतंत्र सेनानियों को मेरा नमन!"

Point of View

मैं यह मानता हूँ कि आपातकाल ने भारतीय लोकतंत्र की नींव को हिला दिया था। यह समय हमें यह सिखाता है कि हमें अपने अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा सजग रहना चाहिए। एकता और साहस के साथ, हम किसी भी तानाशाही का मुकाबला कर सकते हैं।
NationPress
25/06/2025

Frequently Asked Questions

आपातकाल कब लागू हुआ था?
आपातकाल 25 जून 1975 को लागू हुआ था।
आपातकाल का प्रमुख कारण क्या था?
आपातकाल का प्रमुख कारण राजनीतिक अस्थिरता और इंदिरा गांधी की सत्ता को बनाए रखना था।
इस दौरान क्या हुआ था?
इस दौरान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदी लगाई गई थी और अनेक नेता जेल में डाल दिए गए थे।
आपातकाल के खिलाफ कौन सा आंदोलन हुआ था?
आपातकाल के खिलाफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी ने आंदोलन शुरू किया था।
आपातकाल का प्रभाव क्या था?
आपातकाल ने भारतीय लोकतंत्र की नींव को हिला दिया और लोगों में जागरूकता बढ़ाई।