क्या अजमेर शरीफ में 814वें उर्स के समापन पर इंसानियत, सद्भाव और भाईचारे की अपील की गई?
सारांश
Key Takeaways
- अजमेर शरीफ का उर्स मानवता और भाईचारे का प्रतीक है।
- 10 लाख से अधिक लोग उर्स में शामिल हुए।
- हाजी सैयद सलमान चिश्ती का संदेश एकता और करुणा का था।
- उर्स का उद्देश्य मानवता की सुरक्षा और सम्मान को बढ़ावा देना था।
- 2026 को 'आशा का वर्ष' बनाने का आह्वान किया गया।
अजमेर शरीफ, 29 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का 814वां सालाना उर्स आस्था, प्रेम और मानव एकता के अद्भुत संदेश के साथ सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर गद्दी नशीं एवं चिश्ती फाउंडेशन के अध्यक्ष हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने कहा कि उर्स के दौरान 10 लाख से अधिक जायरीन ने अजमेर शरीफ पहुंचकर दुआ, इबादत और विनम्रता के साथ मानवता की साझी चेतना को सुदृढ़ किया, जो मजहब, भाषा, राष्ट्रीयता और संस्कृति की सीमाओं से परे है।
हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने कहा कि यह उर्स केवल ऐतिहासिक परंपरा का पालन नहीं है, बल्कि एक जीवंत दुआ है, जब पूरी मानवता नैतिक चौराहे पर खड़ी है। उन्होंने बताया कि आठ सदियों से अधिक समय से अजमेर शरीफ एक आध्यात्मिक शरणस्थली रही है, जहां दिल को सुकून और बंटी हुई आत्मा को एकता मिलती है। उन्होंने ख्वाजा गरीब नवाज के संदेश, 'सबसे प्रेम, किसी से द्वेष नहीं' को आज के दौर के लिए एक सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत बताया। सामूहिक इबादत और मौन प्रार्थना ने यह सिद्ध किया कि धर्म का असली स्वरूप एकता और करुणा है।
अपने संदेश में हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने वर्ष 2025 को मानवता के लिए एक कठिन परीक्षा का समय बताया। उन्होंने कहा कि आतंक, हिंसा, बढ़ता ध्रुवीकरण और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर चिंता ने पूरी दुनिया को झकझोरा है। ऑस्ट्रेलिया में हुए आतंकवादी हमले और बांग्लादेश में हिंदू समुदाय की सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि निर्दोषों की हर मौत एक आंकड़ा नहीं, बल्कि मानवता की पवित्र जिम्मेदारी का उल्लंघन है। अजमेर शरीफ की पवित्र धरती से उन्होंने बांग्लादेश में हिंदू समुदाय और विश्वभर के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रार्थना की।
उन्होंने भारत के 1.4 अरब नागरिकों और वैश्विक समुदाय से अपील की कि भारत की आत्मा हमेशा बहुलवाद, सह-अस्तित्व और आध्यात्मिक लोकतंत्र में बसी हुई है। अजमेर शरीफ इसका जीवंत प्रमाण है कि विविधता कमजोरी नहीं, बल्कि हमारी सबसे बड़ी ताकत है। उन्होंने कहा कि आस्था का उद्देश्य दिलों को ठीक करना है, कठोर बनाना नहीं। धर्म को जीवन की रक्षा करनी चाहिए, राजनीति का औजार नहीं बनना चाहिए।
2026 के लिए उन्होंने 'आशा का वर्ष' बनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि 2026 शांति का वर्ष हो, जो न्याय पर आधारित हो। सरकारों, धार्मिक नेताओं, मीडिया और नागरिक समाज से उन्होंने नैतिक केंद्र को पुनर्स्थापित करने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा, "जहां नफरत ने दिलों को कठोर कर दिया है, वहां दिल नरम हों। मतभेद की जगह बातचीत हो। न्याय दया के साथ चले। मानवता अपनी साझा आत्मा को फिर से खोजे।"
--आईएएनएल
पीएसके/वीसी