क्या अरावली में माइनिंग पर सख्ती बरकरार है, 90 प्रतिशत से ज्यादा क्षेत्र अब पूरी तरह संरक्षित है?
सारांश
Key Takeaways
- अरावली क्षेत्र में खनन पर पूरी तरह से रोक।
- 90 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र अब संरक्षित।
- सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार नियम।
- भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक विरासत की सुरक्षा।
- ग्रीन अरावली पहल का महत्व।
नई दिल्ली, 21 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। सुंदरबन की बैठक के बाद अरावली पर्वत श्रृंखला के संदर्भ में चल रही चर्चाओं और भ्रांतियों को केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री तथा अलवर से लोकसभा सदस्य भूपेंद्र यादव ने स्पष्ट किया है। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि अरावली क्षेत्र में किसी प्रकार की छूट नहीं दी गई है और न ही दी जाएगी।
भूपेंद्र यादव ने बताया कि अरावली पर्वतमाला भारत के चार राज्यों (दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात) में फैली हुई है। अरावली का क्षेत्र 39 जिलों में विस्तारित है। अरावली से संबंधित कानूनी प्रक्रिया कोई नई नहीं है, बल्कि 1985 से इस पर याचिकाएं चल रही हैं। इन याचिकाओं का मुख्य उद्देश्य अरावली क्षेत्र में खनन पर कठोर और स्पष्ट नियम लागू करना है, जिसका सरकार पूरा समर्थन करती है।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने चारों राज्यों को निर्देश दिए हैं कि अरावली की एक समान परिभाषा तय की जाए ताकि किसी भी राज्य में अलग-अलग व्याख्या के आधार पर नियमों का उल्लंघन न हो सके। इसी दिशा में सरकार ने स्पष्ट और वैज्ञानिक परिभाषा प्रदान की है।
मंत्री ने 100 मीटर के सुरक्षा क्षेत्र के बारे में फैले भ्रम पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि कुछ लोग यह गलत प्रचार कर रहे हैं कि 100 मीटर का मतलब पहाड़ी के ऊपर से नीचे की खुदाई की अनुमति है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह पूर्णतः गलत है।
उनके अनुसार, 100 मीटर की सुरक्षा सीमा पहाड़ी के आधार से मानी जाती है, यानी पहाड़ी के नीचे से 100 मीटर तक का पूरा क्षेत्र संरक्षित रहेगा। वहां किसी भी प्रकार की खुदाई या गतिविधि की अनुमति नहीं होगी।
भूपेंद्र यादव ने आगे बताया कि यदि दो अरावली पहाड़ियों के बीच केवल 500 मीटर का ही अंतर है, तो वह पूरी भूमि भी अरावली रेंज का हिस्सा मानी जाएगी। यानी केवल पहाड़ ही नहीं, बल्कि उनके बीच की भूमि भी संरक्षण के दायरे में आएगी।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इस परिभाषा के लागू होने के बाद अरावली का 90 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र संरक्षित क्षेत्र में आ चुका है।
उन्होंने कहा कि दिल्ली के अरावली क्षेत्र में खनन गतिविधियों पर पूरी तरह से रोक है। सरकार पिछले दो वर्षों से ग्रीन अरावली पहल चला रही है। हम ग्रीन अरावली के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
भूपेंद्र यादव ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार का उद्देश्य किसी प्रकार के विकास को रोकना नहीं है, बल्कि प्राकृतिक विरासत, पर्यावरण संतुलन और भविष्य की पीढ़ियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और वैज्ञानिक मानकों के आधार पर तय की गई यह परिभाषा अब भ्रम की सभी गुंजाइश खत्म करती है। इससे न केवल अवैध खनन पर लगाम लगेगी, बल्कि अरावली को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों पर भी कठोर रोक लगेगी।