क्या अरुणा आसफ अली का साहस, संघर्ष और प्रेम आजादी के आंदोलन में अद्वितीय था?

सारांश
Key Takeaways
- अरुणा आसफ अली का जीवन साहस और संघर्ष का प्रतीक है।
- उनका प्रेम विवाह उस समय एक क्रांतिकारी कदम था।
- उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई।
- अरुणा की विचारधारा स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय पर केंद्रित थी।
- उनके योगदान को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
नई दिल्ली, 28 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। जब आप दिल्ली की व्यस्त सड़कों पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय या तुर्कमान गेट की ओर बढ़ते हैं, तो आपके सामने सड़क किनारे लगे साइन बोर्ड पर नजरें ठहर जाती हैं। ये नाम एक ही महान शख्सियत से जुड़े हैं और वो हैं अरुणा आसफ अली।
हालांकि आज की पीढ़ी इस नाम से पूरी तरह परिचित नहीं हो सकती, लेकिन यदि आप इतिहास के पन्नों को पलटें तो पाएंगे कि अरुणा का सार्वजनिक जीवन जितना प्रेरणादायक है, उनकी निजी जिंदगी उतनी ही रोमांचक है। यह कहानी आपको एक अद्वितीय प्रेम कहानी और साहसिक व्यक्तित्व से मिलवाती है, जिसमें प्रेम की गहराई के साथ-साथ सामाजिक रूढ़ियों को चुनौती देने की भावना भी है।
16 जुलाई 1909 को हरियाणा के कालका में जन्मी अरुणा गांगुली का संबंध एक ब्राह्मण परिवार से था, लेकिन उनके जीवन साथी आसफ अली थे। अरुणा का जीवन एक प्रेरणा है, जिसमें प्यार, साहस और समाज को बदलने की चाह दिखाई देती है। उनका प्रेम विवाह उस समय एक क्रांतिकारी कदम था, जब धर्म और उम्र के भेद को पार करना सामाजिक ताने-बाने में बेहद कठिन था। वास्तव में, अरुणा और आसफ का रिश्ता केवल व्यक्तिगत नहीं था, बल्कि स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय के लिए उनकी साझा सोच पर भी आधारित था।
आसफ अली के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अरुणा ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। 1942 के 'भारत छोड़ो' आंदोलन में गोवालिया टैंक मैदान पर झंडा फहराने से लेकर ब्रिटिश शासन को चुनौती देने तक, अरुणा ने यह साबित किया कि प्रेम और क्रांति एक साथ चल सकते हैं।
19 साल की उम्र में, अरुणा ने 21 साल बड़े और मुस्लिम समुदाय से संबंधित आसफ अली से प्रेम विवाह किया। यह 1928 का समय था, जब अंतर्जातीय और अंतरधार्मिक विवाह समाज के लिए एक बड़ा 'कलंक' माने जाते थे। अरुणा ने न केवल अपने दिल की सुनी, बल्कि इस प्रेम को स्वतंत्रता संग्राम के साझा जुनून से जोड़कर एक मिसाल भी कायम की।
कहा जाता है कि जब अरुणा कोलकाता के गोखले मेमोरियल कॉलेज में प्रोफेसर थीं, तो वहां उनकी पहली मुलाकात इलाहाबाद के प्रसिद्ध वकील और कांग्रेस नेता आसफ अली से हुई। आसफ अली स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे और इसी दौरान दोनों के बीच प्रेम पनपा। इस प्रेम को मंजिल तक पहुंचने में आसफ का 21 साल बड़ा होना और एक मुस्लिम होना बहुत बड़ी बाधाएं थीं—एक ऐसा रिश्ता, जो रूढ़िवादी समाज के लिए अस्वीकार्य था। अरुणा के परिवार, विशेषकर उनके पिता उपेंद्रनाथ गांगुली भी इस अंतरजातीय और उम्र के अंतर वाले विवाह के खिलाफ थे। फिर भी, अरुणा ने 1928 में अपनी मर्जी से आसफ अली से विवाह किया।
विवाह के बाद, अरुणा के जीवन की दिशा बदल गई। आसफ अली के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े होने के कारण, अरुणा भी इस आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए प्रेरित हुईं। भारत की आजादी की पृष्ठभूमि में बनी इस प्रेम कहानी की बुनियाद केवल रोमांस पर नहीं टिकी थी। अरुणा आसफ अली की विचारधारा स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय और महिलाओं के अधिकारों पर केंद्रित थी। वह समाजवादी विचारों से गहरे प्रभावित थीं और जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादी नेताओं के साथ मिलकर काम करती थीं।
अरुणा आसफ अली को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें 1964 का लेनिन शांति पुरस्कार, 1991 का जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार, और मरणोपरांत 1997 में भारत रत्न शामिल हैं। उनकी याद में दक्षिण दिल्ली में एक सड़क का नाम 'अरुणा आसफ अली मार्ग' रखा गया है। इसके अलावा 1998 में एक डाक टिकट भी जारी किया गया था।
29 जुलाई 1996 को, उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन, उनकी कहानी आज भी साहस, समर्पण और प्रेम की एक मिसाल है।