क्या अशफाकउल्ला खान ने हंसते हुए फांसी को गले लगाया? एकता का सिपाही, बलिदान बना मिसाल

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क्या अशफाकउल्ला खान ने हंसते हुए फांसी को गले लगाया? एकता का सिपाही, बलिदान बना मिसाल

सारांश

अशफाकउल्ला खान, एक महान क्रांतिकारी जिन्होंने अपने बलिदान से आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी कहानी हमें एकता और राष्ट्रप्रेम की प्रेरणा देती है। जानिए कैसे उन्होंने अपने जीवन को वतन के लिए समर्पित किया और फांसी के फंदे पर चढ़ते हुए भी अपने जज्बे को नहीं छोड़ा।

Key Takeaways

  • अशफाकउल्ला खान का जन्म 22 अक्टूबर 1900 को हुआ।
  • उन्होंने काकोरी कांड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा बना।
  • उन्होंने गांधीजी से प्रेरणा ली।
  • उनकी कहानी हमें एकता का महत्व सिखाती है।

नई दिल्ली, 21 अक्तूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम उन गौरवमयी गाथाओं का साक्षी है, जहाँ राष्ट्रप्रेम की भावना सर्वोपरि रही। इसी अटूट भावना से भरे महान क्रांतिकारी अशफाकउल्ला खान का जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में 22 अक्टूबर 1900 को एक पठान परिवार में हुआ था। उनके भीतर क्रांति की एक तीव्र चिंगारी धधकती थी, और देशभक्ति का जज्बा उफान मारता था।

रामप्रसाद बिस्मिल के करीबी दोस्त और काकोरी कांड के नायक, जिन्होंने फांसी के फंदे पर चढ़ते हुए भी 'मदरे वतन' का उद्घोष किया, ये वीर सपूत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन गिने-चुने नायकों में से हैं, जिन्होंने सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल कायम की। 1927 में मात्र 27 वर्ष की आयु में गोरखपुर जेल में शहीद होकर भी अशफाकउल्ला खान आजादी की लौ को जलाए रखने वाले प्रतीक बने हुए हैं। उनकी विरासत हमें सिखाती है कि असली आजादी धार्मिक दीवारों से परे, एकजुट होकर ही हासिल होती है।

अशफाकउल्ला खान उर्फ 'अशफाक' ने मोहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज (आज का अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) में दाखिला लिया, लेकिन जल्दी ही ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज उठाने लगे। गांधीजी से प्रेरित होकर उन्होंने अपना जीवन वतन को समर्पित कर दिया और खिलाफत तथा असहयोग आंदोलन में भाग लिया।

1920 के दशक में भारत की आजादी की लड़ाई में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) का गठन हुआ, जिसने ब्रिटिश हुकूमत को जड़ से उखाड़ने का संकल्प लिया। इस संगठन में दो उभरती शख्सियतें रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ और अशफाकउल्ला खान थीं। दोनों की दोस्ती एक मिसाल बनी और इनकी देशभक्ति ने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी।

9 अगस्त 1925 को लखनऊ के पास काकोरी में साहिबान एक्सप्रेस को रोककर एचआरए के क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाना लूट लिया। लगभग 4,000 रुपए की इस लूट का मकसद था आजादी की लड़ाई के लिए हथियार और संसाधन जुटाना। अशफाक, बिस्मिल, चंद्रशेखर ‘आजाद’, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी और रोशन सिंह ने इस साहसिक कदम को अंजाम दिया। काकोरी कांड ने ब्रिटिश शासन को हिलाकर रख दिया। अंग्रेजों ने इसे ‘काकोरी षड्यंत्र’ करार देकर क्रांतिकारियों की तलाश तेज कर दी।

गिरफ्तारी के बाद अशफाकउल्ला खान ने लखनऊ की अदालत में बेबाकी से कहा, “हमने चोरी नहीं की, यह वतन के लिए था।” अशफाक को फांसी की सजा सुनाई गई। 19 दिसंबर 1927 को फैजाबाद जेल में उन्हें फांसी दे दी गई। काकोरी कांड ने न सिर्फ क्रांतिकारियों को प्रेरित किया, बल्कि इसके बाद गैर-हिंसक आंदोलन को भी बल दिया।

Point of View

एकजुटता में निहित है। आज का भारत उनकी विरासत को याद करता है और हम सभी को उनके आदर्शों का अनुसरण करना चाहिए।
NationPress
21/10/2025

Frequently Asked Questions

अशफाकउल्ला खान का जन्म कब हुआ?
अशफाकउल्ला खान का जन्म 22 अक्टूबर 1900 को हुआ।
काकोरी कांड क्या था?
काकोरी कांड एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी घटना थी जिसमें एचआरए के सदस्यों ने सरकारी खजाना लूटने का प्रयास किया।
अशफाकउल्ला खान को कब फांसी दी गई?
उन्हें 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई।
अशफाकउल्ला खान का योगदान क्या था?
उनका योगदान भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में अत्यधिक महत्वपूर्ण था।
अशफाकउल्ला खान और रामप्रसाद बिस्मिल के बीच क्या रिश्ता था?
वे करीबी दोस्त थे और स्वतंत्रता संग्राम में साथी थे।