क्या अयोध्या ध्वजारोहण: सपने, संघर्ष और बलिदान आज हो गए सार्थक? - मोहन भागवत

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क्या अयोध्या ध्वजारोहण: सपने, संघर्ष और बलिदान आज हो गए सार्थक? - मोहन भागवत

सारांश

अयोध्या में राम मंदिर ध्वजारोहण समारोह के दौरान मोहन भागवत ने संतों और श्रद्धालुओं के संघर्ष को सराहा। उन्होंने कहा कि यह दिन उन सभी के लिए सार्थक है, जिन्होंने सदियों से इस सपने के लिए बलिदान दिया। भागवत ने आशा व्यक्त की कि राम मंदिर का निर्माण हिंदू समाज की श्रद्धा और धैर्य का प्रतीक है।

Key Takeaways

  • राम मंदिर का ध्वजारोहण समारोह ऐतिहासिक है।
  • मोहन भागवत ने संतों के बलिदान को सराहा।
  • यह समारोह हिंदू समाज की एकता का प्रतीक है।
  • संघर्ष और समर्पण से लक्ष्य प्राप्ति संभव है।
  • ध्वजारोहण ने भारत की सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित किया है।

अयोध्या, २५ नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। राम मंदिर ध्वजारोहण समारोह के ऐतिहासिक पल पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि आज का दिन उन सभी संतों, श्रद्धालुओं और कर्मयोगियों के लिए सार्थकता का क्षण है, जिन्होंने सदियों तक राम मंदिर निर्माण के संकल्प के लिए संघर्ष किया और अपने प्राणों की आहुति दी।

उन्होंने कहा कि जिन महान आत्माओं ने इस स्वप्न को साकार होते देखने की इच्छा रखी थी, आज उनकी आत्मा को संतोष मिला होगा। भागवत ने कहा कि अशोक सिंघल, संत परमहंस चंद्र दास और आदरणीय डालमिया जी जैसी विभूतियों को आज वास्तविक शांति मिली होगी। मंदिर की शास्त्रीय प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और राम राज्य का वह ध्वज, जो कभी अयोध्या में फहराया करता था और दुनिया को अपने आलोक से समृद्धि देता था, आज हमारी आंखों के सामने पुनः आसमान में ऊंचा उठ गया है।

सरसंघचालक ने अपने संबोधन में राम राज्य के ध्वज पर बने रघुकुल के प्रतीक को विदार वृक्ष का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि यह वृक्ष त्याग, छाया और लोककल्याण का प्रतीक है—जो स्वयं धूप में खड़ा रहकर दूसरों को फल और सुख देता है। यह रघुकुल की सत्ता और जीवन दर्शन का आधार रहा है।

सूर्य भगवान के उदाहरण से भागवत ने कहा कि संकल्प की सिद्धि सत्व से होती है। रथ चलाने के लिए सात घोड़े हैं, लगाम है, लेकिन यदि रस्सा और सारथी न हों तो रथ नहीं चल सकता। सूर्य देव रोज पूर्व से पश्चिम जाते हैं क्योंकि यह सत्व की शक्ति है। हिंदू समाज ने साढ़े पांच सौ वर्षों तक अपने सत्व को सिद्ध किया और आज रामलला भव्य मंदिर में विराजमान हैं। भागवत ने यह भी कहा कि जितना सपना उन संतों और कार्यकर्ताओं ने देखा था, उससे भी अधिक भव्य रूप में राम मंदिर आज साकार हुआ है। यह केवल एक निर्माण नहीं, बल्कि हिंदू समाज की धैर्य, सामर्थ्य और श्रद्धा की विजय है।

मोहन भागवत ने कहा, "छाया बांटने वाले भारत को खड़ा करने का कार्य प्रारंभ हो चुका है। हमें सभी विपरीत परिस्थितियों में भी कार्य करना है। यह संकल्प की पुनरावृत्ति का दिवस है। सबके लिए खुशी और शांति बांटने वाला भारतवर्ष खड़ा करना है, यह विश्व की अपेक्षा है। हमारा कर्तव्य है, रामलला का नाम लेकर इस कार्य की गति बढ़ाएं।"

ध्वजारोहण समारोह के दौरान उपस्थित श्रद्धालुओं ने इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनकर ‘जय श्री राम’ के उद्घोष से वातावरण गुंजायमान कर दिया।

Point of View

जो न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। मोहन भागवत का यह संबोधन हमें यह याद दिलाता है कि संघर्ष और समर्पण से हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। यह भारत की विविधता और एकता का प्रतीक है।
NationPress
25/11/2025

Frequently Asked Questions

अयोध्या ध्वजारोहण का महत्व क्या है?
यह ध्वजारोहण समारोह राम मंदिर के निर्माण के संघर्ष और बलिदान का प्रतीक है।
मोहन भागवत ने क्या कहा?
उन्होंने संतों और श्रद्धालुओं के संघर्ष को सराहा और इसे हिंदू समाज की श्रद्धा की जीत बताया।
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