क्या बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के लिखे ‘वंदे मातरम्’ ने आजादी की अलख जगाई?

सारांश
Key Takeaways
- बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 1838 में हुआ था।
- उन्होंने ‘वंदे मातरम्’ गीत लिखा, जो स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बना।
- उनकी रचनाएं हिंदी और अन्य भाषाओं में अनुवादित हुईं।
- बंकिम चंद्र को बंगाली उपन्यास का जनक माना जाता है।
- उनकी लेखनी ने कई प्रमुख साहित्यकारों को प्रेरित किया।
नई दिल्ली, 25 जून (राष्ट्र प्रेस)। वर्ष था 1896 और स्थान था कोलकाता। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था, जब रवींद्रनाथ टैगोर ने एक ऐसा गीत गाया जो सभी की जुबां पर चढ़ गया। यह गीत था ‘वंदे मातरम्’, जिसे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने लिखा था। यह गीत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक अद्वितीय प्रतीक बन गया और इसे आजादी के मतवालों में ऊर्जा भरने वाला नारा मान लिया गया।
भारतीय साहित्य के ‘ऋषि’ के रूप में जाने जाने वाले बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय आधुनिक बंगाली साहित्य के पितामह और भारतीय राष्ट्रवाद के प्रेरक थे। उनकी लेखनी में देशभक्ति, सामाजिक सुधार और भारतीय संस्कृति की गहरी छाप देखी जा सकती है। ‘आनंदमठ’ जैसे उपन्यास और ‘वंदे मातरम्’ जैसे राष्ट्रीय गीत के रचनाकार के रूप में उन्होंने साहित्य को समृद्ध किया। उनके लेखन में बुद्धि, भावना और क्रांति का अद्भुत संगम विद्यमान है।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के जन्म की सही तारीख ज्ञात नहीं है, लेकिन माना जाता है कि उनका जन्म 26 या 27 जून 1838 को बंगाल के नदिया जिले के कंथलपाड़ा गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता यादवचंद्र चट्टोपाध्याय एक सरकारी अधिकारी थे और उनके भाई संजीव चंद्र चट्टोपाध्याय एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थे।
बंकिम चंद्र ने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की और 1857 में कला स्नातक (बी.ए.) की डिग्री हासिल की। उन्होंने 1869 में कानून की डिग्री भी प्राप्त की। अपने पिता की तरह, उन्होंने ब्रिटिश सरकार के तहत डिप्टी मजिस्ट्रेट और डिप्टी कलेक्टर के रूप में सेवा की।
उन्हें बंगाली उपन्यास का जनक माना जाता है। उनकी पहली महत्वपूर्ण रचना ‘दुर्गेशनंदिनी’ (1865) थी, जो बंगाली साहित्य में पहली महत्वपूर्ण कृति मानी जाती है। इसके बाद उन्होंने ‘कपालकुंडला’, ‘मृणालिनी’, ‘विषवृक्ष’, ‘कृष्णकांत का वसीयतनामा’ और ‘आनंदमठ’ जैसे प्रमुख उपन्यास लिखे। आनंदमठ (1882) उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है जिसमें ‘वंदे मातरम्’ गीत शामिल है। यह गीत स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बना और बाद में भारत का राष्ट्रगीत बना।
‘वंदे मातरम्’ की रचना बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 1870 के दशक में की थी, लेकिन इसे पहली बार 1882 में ‘आनंदमठ’ में प्रकाशित किया गया। इसकी भावनात्मक पंक्तियों ने समाज का ध्यान आकर्षित किया और यह धीरे-धीरे पूरे भारत में प्रसिद्ध हो गया। 1896 में रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में इसे गाया, जिससे इसे राष्ट्रीय पहचान मिली। यह गीत स्वतंत्रता संग्राम का नारा बन गया।
ब्रिटिश सरकार ने ‘वंदे मातरम्’ को विद्रोही गीत मानकर इसके गाने पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया। हालांकि, 15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के बाद इसे राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया गया। 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने इसे आधिकारिक रूप से मान्यता दी।
बंकिम चंद्र की रचनाएं न केवल बंगाली साहित्य में, बल्कि हिंदी और अन्य भाषाओं में भी अनुवादित होकर प्रसिद्ध हुईं। उनकी लेखनशैली ने रवींद्रनाथ टैगोर और शरतचंद्र चट्टोपाध्याय जैसे साहित्यकारों को भी प्रेरित किया। चट्टोपाध्याय का निधन 8 अप्रैल 1894 को हुआ, लेकिन उनकी रचनाएं स्वतंत्रता संग्राम में अमर बनी रहीं।