क्या बिहार चुनाव में कांग्रेस का पुराना गढ़ बरबीघा फिर से लौटेगा?

Click to start listening
क्या बिहार चुनाव में कांग्रेस का पुराना गढ़ बरबीघा फिर से लौटेगा?

सारांश

बरबीघा, बिहार का एक ऐतिहासिक विधानसभा क्षेत्र, जहां राजनीतिक समीकरण बदलने की उम्मीद है। 2020 में जदयू ने जीत हासिल की थी, लेकिन क्या कांग्रेस फिर से अपनी पहचान वापस पा सकेगी? जानिए इस क्षेत्र की राजनीतिक और सांस्कृतिक विशेषताएं।

Key Takeaways

  • बरबीघा बिहार के शेखपुरा जिले का एक प्रमुख विधानसभा क्षेत्र है।
  • यह क्षेत्र कांग्रेस और जदयू के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का गवाह रहा है।
  • बरबीघा में भूमिहार मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
  • सामस गांव का विष्णु धाम मंदिर धार्मिक महत्व रखता है।
  • क्या कांग्रेस फिर से अपनी पहचान वापस पाएगी? यह देखना दिलचस्प होगा।

पटना, 22 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बरबीघा, बिहार के शेखपुरा जिले का एक महत्वपूर्ण विधानसभा क्षेत्र है, जो नवादा लोकसभा सीट का हिस्सा है। यह क्षेत्र बरबीघा और शेखोपुरसराय प्रखंडों के साथ-साथ शेखपुरा प्रखंड की 10 ग्राम पंचायतों को समेटे हुए है। विधानसभा चुनाव में इस सीट से कुल नौ उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें जदयू से कुमार पुष्पंजय, कांग्रेस से त्रिशूलधारी सिंह और जनसुराज से मुकेश कुमार सिंह प्रमुख नाम हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो बरबीघा-नवादा रोड से लगभग 5 किलोमीटर दक्षिण स्थित सामस गांव का विष्णु धाम मंदिर धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक प्रसिद्ध है। यहां भगवान विष्णु की लगभग 7.5 फीट ऊंची और 3.5 फीट चौड़ी मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति 9वीं सदी की बताई जाती है और प्रतिहार कालीन लिपि में खुदे अभिलेख में मूर्तिकार 'सितदेव' का नाम अंकित है। मूर्ति के दाएं-बाएं दो छोटी मूर्तियां हैं, जिन्हें शिव-पार्वती या शेषनाग और उनकी पत्नी माना जाता है। यह मूर्ति जुलाई 1992 में तालाब की खुदाई के दौरान मिली थी।

ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि 1812 में स्कॉटिश भूगोलवेत्ता फ्रांसिस बुकानन-हैमिल्टन ने अपनी रिपोर्ट में सबसे पहले बारबीघा का उल्लेख किया था। यहां 1894 में डाकघर और 1901 में थाना स्थापित किया गया। 1919-20 में यहां दिल्ली सल्तनत काल के 96 प्राचीन सिक्के भी मिले थे।

यह क्षेत्र बिहार के पहले मुख्यमंत्री कृष्ण सिंह की जन्मभूमि है। इसके अलावा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का क्षेत्र से जुड़ाव रहा। उन्होंने यहां एक स्थानीय विद्यालय में प्रधानाचार्य के रूप में कार्य किया था।

भौगोलिक रूप से फल्गु नदी के किनारे बसा बरबीघा समतल भूभाग पर स्थित है, जो कृषि के लिए उपयुक्त है। यह शेखपुरा जिले का सबसे बड़ा वाणिज्यिक केंद्र भी है।

राजनीतिक परिप्रेक्ष्य से देखा जाए तो बरबीघा लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ रहा है। 1951 में विधानसभा क्षेत्र बनने के बाद 17 बार हुए चुनावों में कांग्रेस ने 11 बार जीत हासिल की। जदयू ने तीन बार, निर्दलीय उम्मीदवारों ने दो बार और जनता पार्टी ने एक बार इस सीट पर कब्जा जमाया। 2005 में जदयू के रामसुंदर कनौजिया ने पहली बार इस सीट पर जीत दर्ज की। 2010 में भी जदयू ने जीत हासिल की। 2015 में कांग्रेस के सुदर्शन कुमार विधायक बने, लेकिन 2020 में उन्होंने जदयू का दामन थाम लिया और कांग्रेस को 113 वोटों से हराकर विधायक बने।

बरबीघा सीट पर भूमिहार मतदाता सबसे अधिक हैं और इन्हें निर्णायक माना जाता है। इसके अलावा कुर्मी, पासवान और यादव समुदायों की भी उल्लेखनीय संख्या है, जो चुनावी समीकरण में अहम भूमिका निभाते हैं।

अब देखना यह दिलचस्प होगा कि 2020 की जीत को जदयू दोहरा पाती है या कांग्रेस एक बार फिर अपने पारंपरिक गढ़ को वापस हासिल करने में सफल होती है।

Point of View

यह देखना दिलचस्प होगा।
NationPress
22/10/2025

Frequently Asked Questions

बरबीघा विधानसभा क्षेत्र का इतिहास क्या है?
बरबीघा विधानसभा क्षेत्र का इतिहास 1951 से शुरू होता है, जब इसे विधानसभा क्षेत्र के रूप में स्थापित किया गया।
कौन से प्रमुख उम्मीदवार इस बार बरबीघा में चुनाव लड़ रहे हैं?
इस बार बरबीघा से जदयू के कुमार पुष्पंजय, कांग्रेस के त्रिशूलधारी सिंह और जनसुराज के मुकेश कुमार सिंह प्रमुख उम्मीदवार हैं।
बरबीघा का धार्मिक महत्व क्या है?
बरबीघा का सामस गांव में विष्णु धाम मंदिर है, जो धार्मिक दृष्टि से प्रसिद्ध है।
इस क्षेत्र में किस समुदाय का प्रभाव है?
बरबीघा में भूमिहार, कुर्मी, पासवान और यादव समुदाय के मतदाता निर्णायक माने जाते हैं।
क्या कांग्रेस इस बार अपनी खोई हुई सीट वापस पाएगी?
यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस अपने पारंपरिक गढ़ को वापस हासिल कर पाएगी या नहीं।