क्या बेतहाशा निर्माण से पहाड़ों में बादल फटने का खतरा बढ़ रहा है?

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क्या बेतहाशा निर्माण से पहाड़ों में बादल फटने का खतरा बढ़ रहा है?

सारांश

क्या उत्तराखंड में अनियंत्रित निर्माण से पहाड़ों में बादल फटने का खतरा बढ़ रहा है? जानिए विशेषज्ञों की चेतावनी और पहाड़ों की सुरक्षा के लिए जरूरी उपाय।

Key Takeaways

  • अनियंत्रित निर्माण पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ रहा है।
  • बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं।
  • स्थानीय जलवायु तंत्र असंतुलित हो रहा है।
  • सुरक्षित भविष्य के लिए टिकाऊ विकास आवश्यक है।
  • समय आ गया है कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाया जाए।

नैनीताल, 10 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। उत्तराखंड जैसे संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्रों में तेजी से हो रहा अनियंत्रित निर्माण अब प्रकृति के लिए खतरे का संकेत बन गया है। धराली का भयावह दृश्य आज भी लोगों को डरा रहा है। इन पहाड़ी इलाकों में जहां प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता का खजाना है, वहीं बेतहाशा इमारतों और सड़कों का निर्माण पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ रहा है और आपदाओं का बड़ा कारण बनता जा रहा है। नैनीताल स्थित एरीज (एआरआईईएस) के वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इस प्रकार की गतिविधियां पहाड़ों में बादल फटने जैसी घटनाओं को कई गुना बढ़ा सकती हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, पहाड़ों की मिट्टी पहले से ही कमजोर होती है। बड़े पैमाने पर पहाड़ों को काटकर किए जा रहे निर्माण से मिट्टी की जलधारण क्षमता में कमी आ रही है और स्थानीय जलवायु तंत्र असंतुलित हो रहा है। इसका सीधा असर मौसम के पैटर्न पर पड़ रहा है। अब पर्वतीय क्षेत्रों में 'लोकल क्लाउड फॉर्मेशन' यानी स्थानीय स्तर पर असामान्य बादलों का जमाव बढ़ा है। ऐसे बादल अपेक्षाकृत कम ऊंचाई पर बनते हैं और अचानक भारी बारिश के साथ एक जगह फट पड़ते हैं, जिससे भीषण तबाही होती है।

एरीज के मौसम विज्ञानी नरेंद्र सिंह का कहना है कि निर्माण कार्य केवल परोक्ष नहीं बल्कि अपरोक्ष रूप से भी प्रकृति को प्रभावित करते हैं। उन्होंने कहा कि हर निर्माण से रेडिएशन निकलता है, जो वायुमंडल में जाकर तापमान को बढ़ाता है। जिस इलाके में अधिक निर्माण होता है, वहां का औसत तापमान आसपास के क्षेत्रों से अधिक पाया जाता है। यह तापमान वृद्धि बादलों के बनने और बरसने के तरीके को भी बदल देती है। ग्लोबल वार्मिंग, जंगलों की कटाई और अंधाधुंध निर्माण का संयुक्त प्रभाव अब पहाड़ों पर स्पष्ट रूप से दिखने लगा है। पहले जहां बादल महीनों में बनकर हल्की-हल्की बारिश देते थे, अब वहीं अचानक कुछ घंटों में घिरकर भारी तबाही मचा रहे हैं।

विशेषज्ञों की चेतावनी है कि यदि यह रफ्तार नहीं थमी, तो आने वाले वर्षों में उत्तराखंड और अन्य हिमालयी राज्यों में बादल फटने और भूस्खलन की घटनाएं कई गुना बढ़ सकती हैं। स्थानीय पर्यावरणविद भी मानते हैं कि अब समय आ गया है कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन कायम किया जाए। योजनाबद्ध और टिकाऊ निर्माण, जंगलों का संरक्षण और पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण पर सख्त नियंत्रण ही इस संकट से बचने का एकमात्र उपाय है। अन्यथा, न केवल पहाड़ों की खूबसूरती, बल्कि वहां की जिंदगियां भी गंभीर खतरे में पड़ जाएंगी।

Point of View

हम सभी को यह समझना चाहिए कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। हमें चाहिए कि हम अनियंत्रित निर्माण को रोकें और एक स्थायी विकास की दिशा में आगे बढ़ें। यह न केवल हमारे पहाड़ों की खूबसूरती को बचाने में मदद करेगा, बल्कि हमारे भविष्य को भी सुरक्षित करेगा।
NationPress
10/08/2025

Frequently Asked Questions

उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं?
अनियंत्रित निर्माण और जलवायु परिवर्तन के कारण पहाड़ों की मिट्टी कमजोर हो रही है, जिससे बादल फटने जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं।
क्या निर्माण कार्य का पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है?
हां, निर्माण कार्य से निकलने वाला रेडिएशन और मिट्टी की जलधारण क्षमता में कमी पर्यावरण को प्रभावित करती है।
हमें इस समस्या से बचने के लिए क्या करना चाहिए?
हमें टिकाऊ निर्माण, जंगलों का संरक्षण और सख्त निर्माण नियंत्रण पर जोर देना चाहिए।