क्या भाई की शादी में सहबाला बनकर पहली बार गोरखपुर आए थे अटल जी, महंत अवेद्यनाथ से आशीर्वाद लिया?
सारांश
Key Takeaways
- अटल जी का गोरखपुर से गहरा संबंध
- महंत अवेद्यनाथ के साथ संवाद
- गोरखनाथ मंदिर की यात्रा
- राजनीतिक और आध्यात्मिक जुड़ाव
- परिवारिक संबंध का महत्व
लखनऊ, २४ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को याद करना सिर्फ एक प्रधानमंत्री को स्मरण करना नहीं है, बल्कि यह उस महान व्यक्तित्व को याद करना है, जिसने सत्ता से पहले संवेदना और राजनीति से पहले संबंधों को महत्व दिया। श्रीगोरक्षपीठ से उनका जुड़ाव इसी भावभूमि पर स्थापित था। यह रिश्ता औपचारिक मुलाकातों से परे, विश्वास, श्रद्धा और साझा वैचारिक चेतना का प्रतीक था। गोरखनाथ मंदिर और गोरक्षपीठ अटल जी के लिए केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय परंपरा और सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक थे।
२२ मार्च २००४ का दिन इस रिश्ते की गहराई को स्पष्ट करता है। लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान अटल जी ने उस दिन महराजगंज में जनसभा को संबोधित किया। कार्यक्रम के बाद उन्हें दिल्ली लौटना था, लेकिन गोरखपुर पहुंचते ही उन्होंने अचानक गोरखनाथ मंदिर जाने का निर्णय लिया। यह कोई तय कार्यक्रम नहीं था, बल्कि मन से निकला आग्रह था। प्रधानमंत्री के इस फैसले से प्रशासनिक तंत्र असहज हो गया। सुरक्षा और प्रोटोकॉल का हवाला दिया गया, लेकिन अटल जी ने शांति और दृढ़ता से कहा कि वे महंत अवेद्यनाथ से अवश्य मिलेंगे।
उस समय अटल जी के घुटने में काफी दर्द था। वह वाहन से उतरकर व्हीलचेयर के सहारे मंदिर परिसर तक पहुंचे। मंदिर में प्रवेश करते ही उन्होंने पहले गुरु गोरक्षनाथ का दर्शन पूजन किया और फिर गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ से भेंट कर उनका आशीर्वाद लिया। मंदिर से जुड़े लोगों के अनुसार, उस दिन दोनों के बीच जो संवाद हुआ, वह केवल शिष्टाचार नहीं था। श्रीरामजन्मभूमि सहित राष्ट्रीय और सामाजिक विषयों पर गंभीर चर्चा हुई।
श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने और जन्मभूमि यज्ञ समिति के अध्यक्ष के रूप में महंत अवेद्यनाथ के योगदान के प्रति अटल जी के मन में गहरा सम्मान था। यह सम्मान केवल राजनीतिक सहमति का परिणाम नहीं था, बल्कि संघर्ष और वैचारिक दृढ़ता की स्वीकृति थी। इसलिए, दोनों के बीच का संबंध समय के साथ और प्रगाढ़ होता गया।
१९८९ का दौर इस रिश्ते की एक महत्वपूर्ण कसौटी बना। जनता दल और भाजपा के गठबंधन के कारण गोरखपुर संसदीय सीट जनता दल के खाते में चली गई। संत समाज के आग्रह पर महंत अवेद्यनाथ ने चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। उस समय भाजपा नेतृत्व ने यह स्पष्ट किया कि वह खुलकर सहयोग नहीं कर पाएंगे। इसके बावजूद महंत अवेद्यनाथ चुनाव मैदान में उतरे और भारी मतों से विजयी होकर संसद पहुंचे। इस राजनीतिक परिस्थिति का अटल जी और महंत अवेद्यनाथ के संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ा। मतभेदों के बीच भी सम्मान और संवाद बना रहा।
गोरखपुर से अटल जी का रिश्ता केवल आध्यात्मिक या वैचारिक नहीं था, बल्कि यह गहरे पारिवारिक भाव से भी जुड़ा था। १९४० में वह पहली बार यहां अपने बड़े भाई की बारात में सहबाला बनकर आए थे। तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह बालक एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा। गोरखपुर में उनके भाई की ससुराल होने के कारण यह शहर हमेशा उनके लिए घर की तरह रहा। जीवन के हर पड़ाव पर, चाहे वह राजनीति का संघर्ष हो या प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी, गोरखपुर उनके जीवन में विशेष स्थान रखता रहा।
प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रोटोकॉल ने उनकी निजी यात्राओं को सीमित जरूर किया, लेकिन भावनात्मक जुड़ाव कभी कम नहीं हुआ। १९९८ में गोरखपुर में एक जनसभा के दौरान उन्होंने स्वयं कहा था कि इस शहर से उनका विशेष नाता है, क्योंकि यहां उनकी ससुराल है और यहां के लोगों से उनका आत्मीय संबंध है। श्री गोरक्षपीठ और अटल बिहारी वाजपेयी का संबंध सत्ता और संत के बीच का औपचारिक संवाद नहीं था। यह विश्वास, विचार और श्रद्धा की साझी यात्रा थी। उनकी जयंती पर जब देश उन्हें स्मरण करता है, तो गोरखपुर और गोरक्षपीठ उन्हें उस नेता के रूप में याद करते हैं, जिसने प्रोटोकॉल से पहले श्रद्धा को और राजनीति से पहले रिश्तों को महत्व दिया।