क्या भोजपुर का रहस्यमयी शिव मंदिर सच में जलहरी पर चढ़कर शिवलिंग का अभिषेक करने की प्रथा रखता है?

Click to start listening
क्या भोजपुर का रहस्यमयी शिव मंदिर सच में जलहरी पर चढ़कर शिवलिंग का अभिषेक करने की प्रथा रखता है?

सारांश

भोपाल के पास स्थित भोजपुर का रहस्यमयी शिव मंदिर, जहां भक्त जलहरी पर चढ़कर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं, एक अनोखी परंपरा का गवाह है। इस मंदिर के अद्भुत शिवलिंग और रहस्यमय इतिहास ने इसे श्रद्धालुओं का प्रिय स्थल बना दिया है। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में और भी रोचक बातें।

Key Takeaways

  • भोजेश्वर मंदिर भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक है।
  • यहां जलहरी पर चढ़कर अभिषेक की अनोखी परंपरा है।
  • मंदिर का शिवलिंग आकार में अद्भुत है।
  • यह मंदिर अधूरा है, जिसका रहस्य आज भी कायम है।
  • महाभारत काल से इसका धार्मिक महत्व है।

भोपाल, 27 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत में भगवान शिव के हजारों मंदिर हैं, जहां भक्त पूर्ण श्रद्धा और भक्ति भाव से शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। क्या आपने कभी सुना है कि किसी मंदिर में लोग जलहरी पर चढ़कर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं? शायद नहीं। लेकिन, मध्य प्रदेश में एक ऐसा अद्भुत मंदिर है, जहां यह प्रथा सदियों से चल रही है।

भोपाल से लगभग 30 किलोमीटर दूर भोजपुर गांव की पहाड़ी पर स्थित भोजेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर को ‘पूर्व का सोमनाथ मंदिर’ कहा जाता है, क्योंकि यहां का शिवलिंग आकार और आस्था दोनों में अद्भुत है। मंदिर भले ही अधूरा है, लेकिन इसकी भव्यता किसी पूर्ण निर्माण से कम नहीं। इसकी विशाल संरचना और रहस्यमय अधूरापन इसे देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देता है।

कहा जाता है कि भोजेश्वर मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में महान राजा भोज ने करवाया था। राजा भोज न केवल वीर योद्धा थे, बल्कि कला, संस्कृति और स्थापत्य के भी महान संरक्षक थे। किंवदंती है कि जब राजा भोज गंभीर बीमारी से ठीक हुए, तो उन्होंने भगवान शिव के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए दुनिया का सबसे विशाल शिवलिंग स्थापित करने का संकल्प लिया। इसी संकल्प से जन्म हुआ भोजेश्वर मंदिर का, जो आज भी उनकी श्रद्धा और वास्तुकला के प्रति समर्पण का प्रतीक है।

मंदिर का शिवलिंग 7.5 फीट ऊंचा और 18 फीट चौड़ा है। इसकी स्थापना जिस चबूतरे पर की गई है, वह इतना ऊंचा है कि पुजारी को सीढ़ी लगाकर ऊपर चढ़ना पड़ता है। यही कारण है कि यहां श्रद्धालु और पुजारी दोनों जलहरी पर चढ़कर अभिषेक करते हैं, जो अपने आप में अनोखी परंपरा है।

कहानी यह भी है कि इस मंदिर का निर्माण एक ही रात में होना था, लेकिन सूर्योदय से पहले कार्य अधूरा रह गया। सूरज की पहली किरण के साथ ही निर्माण रुक गया, और मंदिर आज तक अधूरा खड़ा है।

भोजपुर मंदिर का संबंध महाभारत काल से भी बताया जाता है। कहा जाता है कि माता कुंती ने पांडवों के अज्ञातवास के दौरान यहां भगवान शिव का जलाभिषेक किया था। यही कारण है कि यह स्थल भक्तों के लिए विशेष आस्था का केंद्र है।

हर साल मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि पर यहां विशाल मेला लगता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर आयोजित तीन दिवसीय भोजपुर महोत्सव में देशभर से भक्त, साधु-संत और पर्यटक जुटते हैं।

Point of View

यह कहना उचित है कि भोजपुर के शिव मंदिर की अनोखी परंपरा और इसके इतिहास ने इसे भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया है। यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि हमारे स्थापत्य कला का भी अद्भुत उदाहरण है।
NationPress
27/10/2025

Frequently Asked Questions

भोजेश्वर मंदिर का इतिहास क्या है?
भोजेश्वर मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में महान राजा भोज ने करवाया था।
यहां जलहरी पर चढ़कर क्यों अभिषेक किया जाता है?
यहां का शिवलिंग ऊंचाई पर है, जिसके कारण श्रद्धालु जलहरी पर चढ़कर अभिषेक करते हैं।
क्या यह मंदिर अधूरा है?
हां, यह मंदिर अधूरा है और इसका निर्माण एक रात में होना था, लेकिन सूर्योदय से पहले कार्य रुक गया।
यहां कब मेला लगता है?
यहां हर साल मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि पर विशाल मेला लगता है।
भोजपुर मंदिर का धार्मिक महत्व क्या है?
यह मंदिर महाभारत काल से जुड़ा हुआ है और भक्तों के लिए विशेष आस्था का केंद्र है।