क्या मुंगेर में भाजपा का विस्तार होगा या राजद 2020 में मिली हार का बदला लेगी?

सारांश
Key Takeaways
- मुंगेर एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर है।
- राजनीतिक दृष्टिकोण से, यह क्षेत्र महत्वपूर्ण है।
- 2020 में भाजपा ने चुनाव जीता, लेकिन राजद की वापसी की संभावनाएँ हैं।
- यहाँ धार्मिक विविधता और सांस्कृतिक उत्सव महत्वपूर्ण हैं।
- स्थानीय हस्तशिल्प और आधुनिक जीवनशैली का विकास हो रहा है।
पटना, 11 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। पूर्वी बिहार में गंगा के किनारे बसा मुंगेर राज्य के प्रमुख शहरों में से एक है। राजनीतिक दृष्टिकोण से, 1957 में स्थापित मुंगेर विधानसभा क्षेत्र एक सामान्य श्रेणी की सीट है। इस क्षेत्र में समाजवादी विचारधारा वाले नेताओं को प्राथमिकता दी जाती रही है, लेकिन कोई भी पार्टी इसे अपना गढ़ नहीं कह सकती।
अब तक हुए 17 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद), और जनता दल-यूनाइटेड (जदयू) ने तीन-तीन बार यह सीट जीती है, जबकि जनता दल ने दो बार जीत हासिल की है। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी, और जनता पार्टी (सेक्युलर) ने एक-एक बार यह सीट हासिल की है।
2020 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार प्रणव कुमार यादव ने राजद प्रत्याशी अविनाश कुमार विद्यार्थी को मामूली अंतर से हराकर इस सीट पर कब्जा जमाया था। मुंगेर सीट बनने के बाद यह दूसरा मौका था, जब यहां भगवा लहराया था। इससे पहले 1969 में भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी रवीश चंद्र वर्मा ने चुनाव जीतकर विधायक बने थे।
पिछले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को 45.74 फीसदी, जबकि उसके निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 44.99 फीसदी वोट मिले थे। इस बार देखना होगा कि राजद पिछली हार का बदला ले पाती है या भाजपा अपने विजयी रथ को आगे बढ़ाती है।
मुगल और ब्रिटिश काल के दौरान अविभाजित बंगाल में पूर्वी प्रवेशद्वार के रूप में अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण एक प्रमुख शहरी केंद्र रहा मुंगेर आज भी एक महत्वपूर्ण राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और वाणिज्यिक केंद्र बना हुआ है।
बिहार के गौरवशाली अतीत और सांस्कृतिक एकीकरण के सही मूल्य का पता करने के लिए मुंगेर की धरती का दर्शन करना आवश्यक है। यह जिला अपनी ऐतिहासिक महत्व और अद्भुत संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। कई क्षेत्रों में इसके सांस्कृतिक मूल्यों के महान स्तरों का पता लगाया जा सकता है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग के आगमन तक, मुंगेर ने विभिन्न क्षेत्रों में बहुत अधिक उन्नति की है।
इस शहर का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा है, चौथी शताब्दी ईस्वी में गुप्त काल से यह सत्ता का केंद्र रहा है। इतिहास के प्रिज्म के माध्यम से देखा जाए तो मुंगेर क्षेत्र मध्य देश की पहली आर्य जनसंख्या के 'मिडलैंड' के रूप में उभरा। महाभारत में इसे 'मॉड-गिरि' या 'मोदगिरि' के रूप में वर्णित किया गया है। यह स्थान एक समय वेंगा और तामलिप्त के पास एक राज्य की राजधानी था।
शाहजहां के बेटे शाह शुजा ने मुंगेर को अपनी सैन्य तैयारियों का केंद्र बनाया। मुंगेर किला एक प्रमुख सैन्य ठिकाना बना। इसके बाद 1762 में मीर कासिम ने मुंगेर को राजधानी बनाया और यहां शस्त्रागार की स्थापना की, जिससे मुंगेर आग्नेयास्त्र निर्माण का प्रमुख केंद्र बना। मीर कासिम ने प्रशासनिक और न्यायिक सुधार किए और जनता के बीच लोकप्रियता पाई।
फिलहाल, यहां की समृद्धि अतीत और आधुनिक संस्कृति का एक स्थान है। मुंगेर ने अब भी सामाजिक और सांस्कृतिक समृद्धि का कायाकल्प देखा है। लोग उत्सुकता से अपने धार्मिक और सामाजिक त्योहार मनाते हैं, और यहां हिंदू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध और अन्य धर्मों के लोग एक-दूसरे के त्योहारों में भाग लेते हैं।
इस जिले के हर हिस्से की अपनी एक कहानी है। बिहार के इस हिस्से में प्राचीन मंदिरों से लेकर भव्य मस्जिदों और चर्च तक आपको मिलेंगे।
गंगा नदी के किनारे होने की वजह से यह स्थान धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है।
हाल के दिनों में मुंगेर में जनता की जीवनशैली में कुछ बदलाव देखने को मिले हैं। इस क्षेत्र में कई स्थानीय हस्तशिल्प वस्तुओं का उत्पादन होता है, जो इस क्षेत्र की स्थानीय परंपरा और संस्कृतियों को चित्रित करते हैं। शहरी क्षेत्रों में लड़के और लड़कियों को जींस और शर्ट में देखा जा सकता है। यहां अधिकांश लोग हिंदी और स्थानीय बोली बोलते हैं।