क्या बिहार चुनाव में जदयू और राजद आमने-सामने होंगे? क्या इस बार अनंत सिंह का तिलिस्म टूट पाएगा?
सारांश
Key Takeaways
- मोकामा विधानसभा की राजनीति में अनंत सिंह का महत्वपूर्ण स्थान है।
- जदयू और राजद के बीच कांटे की टक्कर की संभावना है।
- मोकामा का राजनीतिक इतिहास बाहुबलियों से भरा है।
- मोकामा का गौरवमयी इतिहास स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है।
- भवनिहार समुदाय का इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रभाव है।
पटना, 27 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित मोकामा विधानसभा केवल पटना से 85 किलोमीटर दूर नहीं है, बल्कि यह बिहार की राजनीति की नब्ज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे पहले 'उत्तर बिहार का प्रवेश द्वार' भी कहा जाता था, क्योंकि यहां का राजेंद्र सेतु (रेल और सड़क पुल) लंबे समय तक उत्तर बिहार का एकमात्र संपर्क मार्ग था। आज भी, जब बिहार विधानसभा चुनाव की बात आती है, तो सभी की नजरें पटना जिले की इस सीट पर केंद्रित रहती हैं।
यह मुंगेर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है और 1951 में विधानसभा क्षेत्र के रूप में इसका गठन हुआ था।
पिछले तीन दशकों से मोकामा की राजनीति किसी न किसी 'बाहुबली' के प्रभुत्व में रही है, लेकिन 2005 से 'छोटे सरकार', अर्थात जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के नेता अनंत सिंह का इस क्षेत्र पर एक अदृश्य किला बना हुआ है, जिसे भेदना हर विरोधी के लिए एक चुनौती रहा है।
मोकामा में 1990 के दशक से बड़े नेताओं का दबदबा रहा है। इसकी शुरुआत दिलीप कुमार सिंह उर्फ 'बड़े सरकार' ने की थी, जो 1990 और 1995 में जनता दल के टिकट पर विधायक बने और कई वर्षों तक मंत्री भी रहे। लेकिन 2005 से अनंत सिंह ने नेतृत्व संभाला और यहां की राजनीतिक कहानी 'छोटे सरकार' के नाम से लिखी जाने लगी।
अनंत सिंह ने इस सीट पर लगातार पांच बार जीत हासिल की है। उनका राजनीतिक सफर किसी रोमांचक कहानी से कम नहीं है।
2015 में जब उन्होंने पार्टी छोड़कर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, तब भी उन्होंने जीत दर्ज की। 2020 में वे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में शामिल हुए और जेल में रहते हुए भी उन्होंने जीत हासिल की।
हालांकि, 2022 में एक आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के कारण उन्हें विधानसभा सदस्यता खोनी पड़ी। लेकिन मोकामा की जनता ने उनका साथ नहीं छोड़ा। 2022 के उपचुनाव में, उनकी पत्नी नीलम देवी को राजद ने मैदान में उतारा, जिन्होंने भाजपा की सोनम देवी को बड़े अंतर से हराकर इस सीट को राजद के पास बनाए रखा।
अब 2025 के चुनावों में, अनंत सिंह फिर से जदयू में लौट आए हैं और पार्टी ने उन पर एक बार फिर भरोसा जताया है।
बिहार विधानसभा चुनाव 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में होने वाले हैं और मोकामा विधानसभा सीट पर पहले चरण (6 नवंबर) को मतदान होगा। यह हाई-प्रोफाइल सीट इस बार भी कांटे की टक्कर के लिए तैयार है।
मोकामा का नाम केवल बाहुबल की राजनीति से नहीं जोड़ा गया है, बल्कि इसका एक गौरवशाली इतिहास भी है। 1908 में, मोकामा घाट रेलवे स्टेशन पर महान क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी ने ब्रिटिश मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफोर्ड की हत्या के असफल प्रयास के बाद खुद को गोली मारकर शहादत दी थी। आज उनकी याद में यहां 'शहीद गेट' बना हुआ है। 1942 में महात्मा गांधी की यात्रा ने भी यहां के स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा दी थी।
मोकामा सीट पर भूमिहार समुदाय का प्रभुत्व माना जाता है, लेकिन यहां के चुनाव परिणाम हमेशा जटिल जातीय समीकरणों पर निर्भर करते हैं।
भारत का दूसरा सबसे बड़ा मसूर उत्पादक क्षेत्र होने के बावजूद मोकामा की राजनीति हमेशा बाहुबल की कहानियों में उलझी रही है।