क्या बिहार चुनाव में टिकारी का ऐतिहासिक वैभव, राजनीतिक उतार-चढ़ाव और नई चुनौतियां महत्वपूर्ण हैं?
सारांश
Key Takeaways
- टिकारी का ऐतिहासिक वैभव और सांस्कृतिक धरोहर
- जातीय समीकरणों का राजनीतिक निर्णय पर प्रभाव
- विकास और रोजगार के मुद्दे
- टिकारी किला और उसकी धरोहरों का संरक्षण
- स्थानीय राजनीति में व्यक्तिगत छवि का महत्व
पटना, 30 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के गया जिले का टिकारी एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र है, जिसका इतिहास राजशाही, वैभव और संघर्ष से परिपूर्ण है। यह क्षेत्र न केवल राजनीतिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के लिए भी जाना जाता है। कभी टेकारी राज का गढ़ रहा यह क्षेत्र आज राजनीति, सामाजिक समीकरण और विकास के मुद्दों का केंद्र बन चुका है।
टिकारी से गया शहर की दूरी लगभग 15 किलोमीटर है। टिकारी मोरहर और जमुना नदियों के बीच स्थित है। यह क्षेत्र कभी टेकारी राज का प्रमुख केंद्र हुआ करता था, जो लगभग 250 वर्षों तक अस्तित्व में रहा और 2,046 गांवों पर शासन करता था। मुगल शासन के दौरान, टेकारी के जमींदार धीर सिंह ने विद्रोहों को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ने उन्हें राजा की उपाधि प्रदान की। बाद में, इस राजवंश ने ईस्ट इंडिया कंपनी का समर्थन करके महाराजा की उपाधि भी प्राप्त की।
टेकारी राज के प्रमुख राजाओं में सुंदर शाह, बुनियाद सिंह, अमरजीत सिंह, हित नारायण सिंह और महाराजा कैप्टन गोपाल शरण सिंह का नाम शामिल है। गोपाल शरण सिंह टेकारी राज के अंतिम प्रतापी राजा थे, जिन्हें अंग्रेजी शासन ने कैप्टन की उपाधि दी थी। टिकारी राज का किला आज भी अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है। यह लखौरी ईंट से बना पांच मंजिला महल स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है, जिसमें भूमिगत सुरंगें, नाचघर, रंगमहल, और बाघों के पिंजरे जैसी संरचनाएं थीं। इसी राज परिवार ने 1876 में राज स्कूल और 1885 में टिकारी नगर पालिका की स्थापना की थी।
टिकारी धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी समृद्ध है। यहां केसपा में स्थित मां तारा देवी मंदिर, सीता कुंड, कोंचेश्वर महादेव मंदिर, पीर बाबा की मजार, रामेश्वर बाग, खटनही झील और सूर्य मंदिर (खनेटू) जैसे स्थल हैं। मां तारा देवी मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है, जिसकी स्थापना महर्षि कश्यप ने की थी। सीता कुंड वह स्थान है जहां सीता माता ने राम-लक्ष्मण की प्रतीक्षा में पिंडदान किया था। यहां आज भी रेत से पिंडदान करने की परंपरा है।
टिकारी विधानसभा सीट औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और यह सामान्य वर्ग की सीट है। यहां की राजनीति पर जातीय समीकरणों का गहरा प्रभाव है। कोरी, यादव, अनुसूचित जाति और मुस्लिम मतदाता इस सीट की राजनीतिक दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अनिल कुमार पिछले डेढ़ दशक से इस क्षेत्र की राजनीति में एक प्रमुख चेहरा हैं। 2010 में उन्होंने जदयू के टिकट पर पहली बार जीत दर्ज की थी। इसके बाद, 2015 में टिकट न मिलने पर उन्होंने हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) का दामन थामा, लेकिन चुनाव हार गए। हालांकि, 2020 के चुनाव में उन्होंने जीत दर्ज की।
इन वर्षों में टिकारी की राजनीति एनडीए और महागठबंधन के बीच झूलती रही है, लेकिन स्थानीय स्तर पर व्यक्तिगत छवि और जातीय समीकरण दोनों निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
2024 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, यहां की कुल जनसंख्या 5,31,179 है, जिसमें 2,73,949 पुरुष और 2,57,230 महिलाएं हैं। वहीं, कुल मतदाताओं की संख्या 3,18,059 है। इसमें 1,65,927 पुरुष, 1,52,118 महिलाएं और 14 थर्ड जेंडर शामिल हैं।
मौजूदा समय में टिकारी की सबसे बड़ी चुनौती अपने किले और धरोहरों को बचाना है। टेकारी किला बचाओ संघर्ष समिति वर्षों से इस धरोहर को संरक्षित कराने की मांग कर रही है, लेकिन जमीन विवाद और निजी स्वामित्व के झगड़े में यह धरोहर दम तोड़ रही है।
विकास, शिक्षा, रोजगार और सड़क-स्वास्थ्य सुविधाएं भी यहां के प्रमुख चुनावी मुद्दे हैं। टिकारी को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग अक्सर होती रही है।