क्या शहाबुद्दीन के जुल्म को याद कर चंदा बाबू के बेटे की आंखें डबडबा गईं?

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क्या शहाबुद्दीन के जुल्म को याद कर चंदा बाबू के बेटे की आंखें डबडबा गईं?

सारांश

चंदा बाबू के बेटे मोनू ने शहाबुद्दीन के खिलाफ अपने पिता की संघर्ष कहानी सुनाई। यह संघर्ष न केवल कानूनी था, बल्कि परिवार की सुरक्षा का भी था। मोनू ने अपने परिवार पर शहाबुद्दीन द्वारा किए गए जुल्मों का जिक्र किया, जिसने उनकी जिंदगी को बदल दिया।

Key Takeaways

  • कानूनी संघर्ष में व्यक्तिगत बलिदान होता है।
  • शहाबुद्दीन के खिलाफ मोर्चा खोलना एक कठिन निर्णय था।
  • परिवार की सुरक्षा सर्वोपरि है।
  • सच्चाई की किमत चुकाना पड़ता है।
  • समाज में अन्याय का सामना करना आवश्यक है।

पटना, 23 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के दिवंगत नेता शहाबुद्दीन को सलाखों के पीछे पहुंचाने वाले चंदा बाबू के बेटे मोनू ने अपने पिता को याद करते हुए बताया कि उनके पिता ने इस बाहुबली के खिलाफ मोर्चा खोलने की कितनी भारी कीमत चुकाई। इस दौरान उनकी आंखें भी डबडबा गईं।

समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से बातचीत में मोनू ने बताया कि जब मेरे पिता ने शहाबुद्दीन के खिलाफ मोर्चा खोला और उसे सलाखों के पीछे पहुंचाया, उसके बाद जो कुछ हुआ, वह पुरानी दुश्मनी का मामला नहीं था। यह बदले की भावना से जुड़ा था। हालाँकि, मुझे इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। मुझे मीडिया और पिताजी के माध्यम से ही पता चला कि उन्होंने किस प्रकार शहाबुद्दीन के खिलाफ मोर्चा खोला था। उस समय हम बहुत छोटे थे।

उन्होंने शहाबुद्दीन द्वारा अपने परिवार पर किए गए जुल्म को याद करते हुए कहा कि उस व्यक्ति ने मेरा पूरा परिवार उजाड़ दिया। अब मेरे परिवार में बचा कौन है? मेरे बड़े भाई के न रहने के बाद परिवार की छत ही उजड़ गई।

मोनू ने बताया कि इस घटना के बाद हम सभी में खौफ का आलम ऐसा था कि हम अपनी जान बचाने के लिए भाग गए। किसी का कुछ पता नहीं था कि कौन कहां है। पिताजी कहाँ हैं? माताजी कहाँ हैं? किसी का कोई अता-पता नहीं था। एक साल बाद मेरी मुलाकात पिताजी से हुई थी। इसके बाद उन्होंने मुझे माँ से मिलवाया। इस प्रकार हम सभी परिवार से मिले।

जब मोनू से पूछा गया कि क्या आपको भी कभी इस मामले में धमकाया गया है, तो इस पर उन्होंने कहा कि मुझे अभी तक नहीं धमकाया गया है। हाँ, एक-दो बार मेरे पिताजी को फोन आया था। उन्हें धमकाने की कोशिश की गई थी। धमकाने वाले अक्सर मेरे पिताजी से कहते हैं कि तुम केस वापस ले लो। जवाब में मेरे पिताजी कहते हैं कि यह अब सरकारी मामला बन चुका है। ऐसे में मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा।

मोनू ने कहा कि मेरे पिताजी को पैसे का भी ऑफर दिया गया। कहा गया था कि आप पैसे ले लो और यह केस वापस ले लो। इस बारे में पिताजी ने मीडिया को भी बताया था। मेरे पिता ने कहा कि अब इस कानूनी लड़ाई में मैं सब कुछ गंवा चुका हूँ। मेरे परिवार के कई लोग इस लड़ाई में मारे जा चुके हैं। ऐसे में अब पैसे लेने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। अब जब हम अपने परिवार के सभी सदस्यों को कानूनी लड़ाई में खो चुके हैं, तो ऐसी स्थिति में पैसा कोई मायने नहीं रखता।

मोनू बताते हैं कि इस पूरी कानूनी लड़ाई में जिस प्रकार का संघर्ष मेरे पिताजी ने किया, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। मेरे दो भाइयों को पहले ही मार दिया गया। इसके बाद मेरे तीसरे नंबर के भाई को भी मार दिया गया, तो मेरे पिताजी पूरी तरह से टूट चुके थे। उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती यह हो गई थी कि वे एक तरफ जहां कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे, वहीं दूसरी तरफ अपने परिवार का भी पालन-पोषण कर रहे थे। इस प्रकार की स्थिति किसी भी पिता के लिए चुनौतीपूर्ण हो जाती है। इन सभी चुनौतियों का सामना करने के बाद मेरे पिताजी कई बीमारियों का शिकार हो गए थे और मेरी माँ भी लकवाग्रस्त हो गई थीं। उन दिनों मेरे बड़े भाई गोरखपुर में मोबाइल की दुकान चलाते थे, तब उन्होंने मुझसे कहा कि अब मैं यहाँ रहकर क्या करूंगा। मुझे भी वहीं आ जाना चाहिए। इसके बाद मेरे भाई सीवान आ गए। 2014 में मेरे बड़े भाई की शादी हुई। शादी के बाद मेरे भाई की भी हत्या कर दी गई।

मोनू बताते हैं कि मुझे नहीं पता कि इस पूरे घटना की शुरुआत कहाँ से होती है? लेकिन, मुझे पता है कि शहाबुद्दीन ने मेरे पिताजी से रंगदारी मांगी थी। लेकिन, मेरे पिताजी ने देने से साफ इनकार कर दिया। इसके बाद शहाबुद्दीन के आदमी हमारे यहाँ आए और धमकाते हुए कहा कि कौन इतना बड़ा है जो हमें रंगदारी देने से इनकार कर रहा है। इस बीच, शहाबुद्दीन के आदमी मेरे भाई के पास आए और उन्हें मारने पीटने लगे और बोले कि यही वह आदमी है, जो रंगदारी देने से इनकार कर रहा है। इसके बाद मेरे बीच वाले भाई ने थाने को फोन किया, तो शहाबुद्दीन साहब के आदमियों ने कहा कि तुम पुलिस को फोन कर रहे हो, तुम्हारी इतनी हिम्मत? तुम जानते हो कि हम किसके आदमी हैं? इसके बाद मेरे दोनों भाइयों को किडनेप कर लिया गया। इसके बाद मेरे दोनों भाइयों का कुछ पता नहीं चला।

मोनू ने आगे कहा कि इसके बाद मुझे यहाँ के लोगों ने सुझाव दिया कि यहाँ से चले जाओ। इसके बाद मैं अपनी नानी के घर चला गया। इस दौरान मेरे घर पर क्या हुआ और क्या नहीं, मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है। इस घटना के दो साल बाद मेरी मुलाकात पिताजी से हुई। उन्होंने मुझे सब कुछ बताया। हमारे परिवार के सभी सदस्य आपस में बिछड़े हुए थे। कोई किसी से भी नहीं मिला था। इसके बाद हम लोग एक-दूसरे से मिले। हमें गांव जाना पड़ा। हमें बहुत सी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। ऐसा किसी के साथ न हो।

Point of View

बल्कि हमें यह भी सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम अपनी सुरक्षा के लिए सचाई की किमत चुका सकते हैं।
NationPress
23/10/2025

Frequently Asked Questions

मोनू ने अपने पिता के संघर्ष के बारे में क्या कहा?
मोनू ने बताया कि उनके पिता ने शहाबुद्दीन के खिलाफ मोर्चा खोलने पर भारी कीमत चुकाई और उनके परिवार को उजाड़ दिया।
क्या मोनू को भी धमकाया गया था?
मोनू ने कहा कि उन्हें अभी तक धमकाया नहीं गया, लेकिन उनके पिता को धमकियां मिली थीं।
शहाबुद्दीन के खिलाफ कानूनी लड़ाई में क्या हुआ?
मोनू के पिता ने शहाबुद्दीन से रंगदारी देने से इनकार किया, जिसके बाद उनके परिवार पर कई जुल्म हुए।