क्या सीआरपीएफ के जवान साहस और अनुशासन के प्रतीक हैं?: विजेंद्र गुप्ता
सारांश
Key Takeaways
- सीआरपीएफ जवान अनुशासन और साहस के प्रतीक हैं।
- सीआरपीएफ की आंतरिक सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका है।
- संवाद कार्यक्रम में जवानों के परिवारजन भी शामिल हुए थे।
- दिल्ली विधानसभा का ऐतिहासिक महत्व है।
- सीआरपीएफ ने कई महत्वपूर्ण अभियानों में भाग लिया है।
नई दिल्ली, 30 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। देश के सबसे चुनौतीपूर्ण सुरक्षा परिवेश में कार्य करते हुए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवान अनुशासन, साहस और अडिग पेशेवर प्रतिबद्धता का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। वे भारत की आंतरिक सुरक्षा का आधार स्तंभ हैं। यह बात दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने मंगलवार को दिल्ली विधानसभा में सीआरपीएफ की 103वीं बटालियन के जवानों एवं अधिकारियों के साथ आयोजित संवाद कार्यक्रम में कही।
इस अवसर पर जवानों के परिवारजन एवं बच्चे भी उपस्थित थे। कार्यक्रम में 103वीं बटालियन के उप कमांडेंट, सहायक कमांडेंट एवं अन्य अधिकारी भी मौजूद रहे।
विजेंद्र गुप्ता ने देश भर में आंतरिक सुरक्षा एवं सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने में सीआरपीएफ की ऐतिहासिक और निरंतर भूमिका की सराहना की। उन्होंने उग्रवाद और आतंकवाद के विरुद्ध अभियानों, वामपंथी उग्रवाद से निपटने, चुनावों के दौरान सुरक्षा प्रबंध, महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों एवं गणमान्य व्यक्तियों की सुरक्षा तथा प्राकृतिक आपदाओं के समय नागरिक प्रशासन की सहायता में बल के महत्वपूर्ण योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सीआरपीएफ की भागीदारी का भी उल्लेख करते हुए वैश्विक शांति एवं स्थिरता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को उजागर किया।
गुप्ता ने विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर, दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर तथा अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में सेवा दे चुके सीआरपीएफ कर्मियों के योगदान को सराहा और कठिन परिस्थितियों में उनके समर्पण, साहस एवं पेशेवर दक्षता की प्रशंसा की।
जवानों एवं अधिकारियों को संबोधित करते हुए विजेंद्र गुप्ता ने दिल्ली विधानसभा सभा के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि इस संस्था की स्थापना 1911 से जुड़ी है, जब तृतीय दिल्ली दरबार के अवसर पर किंग जॉर्ज पंचम द्वारा राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने की घोषणा की गई थी।
उन्होंने कहा कि बीते 113 वर्षों में विधानसभा ने एक लंबी यात्रा तय की है, जिसमें औपनिवेशिक काल के दौरान गोपाल कृष्ण गोखले और लाला लाजपत राय जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने विधायी मंचों से भारतीय हितों की आवाज़ उठाई।
उन्होंने रॉलेट एक्ट, 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड तथा प्रथम विश्व युद्ध में भारत के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि विधानसभा का केंद्रीय कक्ष कई ऐतिहासिक क्षणों का साक्षी रहा है, जिनमें 1923 में दिल्ली विश्वविद्यालय का प्रथम दीक्षांत समारोह और 1925 में महत्वपूर्ण विधानों का पारित होना शामिल है।
कार्यक्रम के अंतर्गत जवानों एवं अधिकारियों को विधानसभा भवन का भ्रमण भी कराया गया, जिसमें उन्हें सदन की कार्यप्रणाली, परंपराओं और संसदीय विरासत से अवगत कराया गया। सीआरपीएफ कर्मियों के परिवारजन एवं बच्चों ने भी इस भ्रमण में भाग लिया और दिल्ली विधानसभा सभा की 113 वर्ष पुरानी विधायी परंपरा तथा भारत की लोकतांत्रिक यात्रा में उसकी भूमिका के बारे में जानकारी प्राप्त की।
इस अवसर पर विजेंद्र गुप्ता ने स्मृति-चिह्न के रूप में “दिल्ली विधान सभा प्रस्तुत करती है शताब्दी-यात्रा: वीर विठ्ठलभाई पटेल” शीर्षक से प्रकाशित एक कॉफी टेबल बुक भी भेंट की।