क्या तिब्बती पहचान के प्रतीक दलाई लामा की खोज में पूर्व धर्मगुरुओं के संकेत खास हैं?

सारांश
Key Takeaways
- दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 को हुआ था।
- दलाई लामा की पहचान पुनर्जन्म के सिद्धांत पर आधारित है।
- दलाई लामा का असली नाम तेनजिन ग्यात्सो है।
- दलाई लामा की उपाधि 1578 में दी गई थी।
- दलाई लामा की खोज में कई संकेत और सपनों का उपयोग किया जाता है।
नई दिल्ली, 5 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा का 90वां जन्मदिन 6 जुलाई को मनाया जाएगा। दलाई लामा एक उपाधि है, न कि सिर्फ एक नाम। वर्तमान दलाई लामा का असली नाम तेनजिन ग्यात्सो, जिसे लामो धोंडुप के नाम से भी जाना जाता है, है। 1959 में जब चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया और तिब्बती बौद्धों पर अत्याचार किया, तब दलाई लामा अपने हजारों अनुयायियों के साथ भारत पहुंचे थे। उस समय से अब तक कई चीजें बदल चुकी हैं, लेकिन आज भी चीनी कब्जे के खिलाफ तिब्बत की स्वतंत्रता की मांग महत्वपूर्ण बनी हुई है, जिसमें भारत की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जन्मदिन से कुछ दिन पहले, दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो ने अपने संभावित उत्तराधिकारी के चयन के बारे में संकेत दिए। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि उनके उत्तराधिकारी का निर्णय उनका ट्रस्ट गादेन फोडरंग करेगा। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि यह पुरानी परंपरा आगे भी जारी रहेगी।
दलाई लामा को तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग सम्प्रदाय का सर्वोच्च नेता और तिब्बती पहचान का प्रतीक माना जाता है। यह उपाधि पहली बार 1578 में मंगोल शासक अल्तान खान द्वारा सोनम ग्यात्सो को दी गई थी, जिन्हें तीसरे दलाई लामा के रूप में पहचाना जाता है। उनके पूर्वजों में गेंदुन द्रब को पहले और गेदुन ग्यात्सो को दूसरे दलाई लामा के रूप में मान्यता प्राप्त थी।
दलाई लामा के चयन की प्रक्रिया सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है और यह पुनर्जन्म के सिद्धांत पर आधारित है। तिब्बती बौद्धों का मानना है कि प्रत्येक दलाई लामा में उनके पूर्ववर्ती की आत्मा होती है। कहा जाता है कि वर्तमान दलाई लामा की मृत्यु के बाद उनकी आत्मा एक नवजात के रूप में पुनर्जन्म लेती है।
पिछले दलाई लामा के निधन के बाद शोक का समय होता है, और फिर वरिष्ठ लामाओं द्वारा संकेतों, सपनों और भविष्यवाणियों के आधार पर अगले दलाई लामा की खोज की जाती है। इस प्रक्रिया में यह देखना होता है कि दलाई लामा की चिता से निकलने वाले धुएं की दिशा क्या थी, और वह मृत्यु के समय किस दिशा में देख रहे थे। कई बार इस प्रक्रिया में कई साल लग जाते हैं।
अगर एक से ज्यादा बच्चों में दलाई लामा की पहचान होती है, तो उनके बीच परीक्षा आयोजित की जाती है और इसमें पूर्व दलाई लामा की वस्तुओं की पहचान कराई जाती है। खोज पूरी होने के बाद बच्चे को बौद्ध धर्म, तिब्बती संस्कृति, और दर्शन की गहन शिक्षा दी जाती है। अब तक जितने भी दलाई लामा हुए हैं, उनमें एक का जन्म मंगोलिया, एक का पूर्वोत्तर भारत और अन्य का तिब्बत में हुआ है।
दलाई लामा की वेबसाइट के अनुसार, वर्तमान दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 को किंघई प्रांत के एक किसान परिवार में लामो धोंडुप के रूप में हुआ था, जिनकी पहचान पुनर्जन्म के संकेतों के आधार पर हुई थी। कहा जाता है कि तत्कालीन दलाई लामा के निधन के बाद लगभग चार साल की खोज के बाद तिब्बती सरकार को लामो धोंडुप मिले थे। धोंडुप ने पूर्व दलाई लामा की वस्तुओं को देखकर अपनी पहचान बताई थी, जिसके बाद 1940 में उन्हें ल्हासा के पोटाला पैलेस में 14वें दलाई लामा के रूप में मान्यता दी गई।