क्या दानापुर विधानसभा सीट पर चुनावी जंग में बराबरी का मुकाबला होगा?
सारांश
Key Takeaways
- दानापुर विधानसभा क्षेत्र का चुनावी इतिहास रोचक है।
- भाजपा और राजद के बीच कड़ी टक्कर की संभावना है।
- यादव मतदाता इस क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
- जल निकासी और बाढ़ के मुद्दे यहाँ के महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दे हैं।
- दानापुर का ऐतिहासिक महत्व इसे एक विशेष पहचान देता है।
पटना, २५ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार की राजधानी पटना के निकट स्थित दानापुर केवल एक अनुमंडलीय शहर नहीं है, बल्कि यह इतिहास, विरासत और बिहार की राजनीति का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। अपनी छावनी (कैंटोनमेंट) के लिए प्रसिद्ध यह नगर फिर से चुनावी रणभूमि का हॉटस्पॉट बन चुका है।
यह सीट पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और बिहार की राजनीति में हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाती आई है।
१९५७ में स्थापित, दानापुर विधानसभा क्षेत्र अब तक १८ बार चुनावी जंग का गवाह बन चुका है और यहाँ का इतिहास बेहद रोचक रहा है। इस सीट पर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दबदबा लगभग बराबर रहा है, दोनों ने पांच-पांच बार जीत दर्ज की है। वहीं, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल (जनता परिवार) ने भी मिलकर पांच बार जीत हासिल की है। यहाँ तक कि १९८५ में एक निर्दलीय उम्मीदवार भी यहाँ से जीतकर विधानसभा पहुंचा था।
राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने खुद १९९५ और २००० में यहाँ से चुनाव लड़ा और जीते, लेकिन दोनों बार सीट छोड़ दी।
उनके सीट छोड़ने के कारण हुए उप-चुनावों में भाजपा के विजय सिंह यादव (१९९६) और राजद के रामानंद यादव (२००२) को जीत दिलाई गई।
साल २००५ से २०१५ तक, भाजपा की आशा सिन्हा ने लगातार तीन बार जीत दर्ज करके इस सीट पर अपनी मजबूत पकड़ बना ली थी। लेकिन २०२० के चुनाव में राजद के रीतलाल यादव ने उन्हें बड़े अंतर से हरा दिया।
इस विधानसभा चुनाव में दानापुर में एक बार फिर राजद और भाजपा के बीच सीधी और कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है। राजद जहाँ अपनी सीट बरकरार रखने की कोशिश में है, वहीं भाजपा हर हाल में वापसी के मूड में है।
यहाँ यादव मतदाता क्षेत्र की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यही वजह है कि लालू प्रसाद यादव ने खुद इस सीट से दो बार चुनाव लड़ा।
दानापुर की पहचान इसकी ख़ास भौगोलिक संरचना से होती है। यह इकलौता क्षेत्र है जहाँ शहरी चमक-दमक है, उपजाऊ ग्रामीण इलाका है और नदियों के बीच स्थित दियारा क्षेत्र की अपनी अलग संस्कृति भी है।
विकास के नाम पर मेट्रो और एलिवेटेड रोड जैसी बड़ी परियोजनाएं चल रही हैं, लेकिन दानापुर के लोगों की बुनियादी जरूरतें अब भी पूरी नहीं हुई हैं। जल निकासी की गंभीर समस्या, हर साल आने वाली बाढ़ का खतरा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी आज भी यहाँ के गंभीर मुद्दे बने हुए हैं, जिन पर चुनावी जीत का दारोमदार टिका है।
दानापुर का इतिहास सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं है। यह नगर अपनी सैन्य और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। इसे देश की दूसरी सबसे पुरानी छावनी होने का गौरव प्राप्त है, जिसकी स्थापना ब्रिटिश शासन काल में १७६५ में हुई थी।
इस ऐतिहासिक छावनी का स्वतंत्रता संग्राम में भी खास योगदान रहा है। २५ जुलाई १८५७ को यहीं के सिपाहियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था। आज, यहाँ बिहार रेजिमेंट का रेजिमेंटल सेंटर स्थित है, जिसकी स्थापना १९४९ में हुई थी।
साल में एक बार, जून से जुलाई के बीच, यह छावनी क्षेत्र एक अनूठा प्राकृतिक पक्षी अभयारण्य बन जाता है। यहाँ बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं, जिन्हें 'ओपन बिल स्टॉर्क' कहा जाता है।