क्या दिल्ली घोषणापत्र पारंपरिक और आधुनिक चिकित्सा के बीच सहयोग का नया अध्याय है?
सारांश
Key Takeaways
- दिल्ली घोषणापत्र ने पारंपरिक और आधुनिक चिकित्सा के बीच सहयोग का एक नया अध्याय शुरू किया है।
- शिखर सम्मेलन में 100 से अधिक देशों के विशेषज्ञों ने भाग लिया।
- आयुष मंत्रालय ने स्वास्थ्य क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
- यह घोषणापत्र स्वास्थ्य प्रणालियों में सहयोग को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।
- प्रधानमंत्री मोदी ने पारंपरिक चिकित्सा की प्रभावशीलता पर जोर दिया।
नई दिल्ली, 29 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयुष मंत्रालय और डब्ल्यूएचओ के सहयोग से 17 से 19 दिसंबर के बीच एक महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें पारंपरिक चिकित्सा के महत्व पर विशेष ध्यान दिया गया।
इस शिखर सम्मेलन के दौरान, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा आयोजित दूसरे वैश्विक शिखर सम्मेलन में 'दिल्ली घोषणापत्र' को जारी किया गया। यह घोषणापत्र पारंपरिक चिकित्सा को एकीकृत चिकित्सा का हिस्सा बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे लोगों को स्थानीय स्तर पर अधिक स्वास्थ्य विकल्प और सुलभ उपचार मिल सकेगा।
आयुष मंत्रालय ने पहले ही इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जैसे कि आयुर्स्वास्थ्य योजना के तहत अनुसंधान और शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करना।
यह घोषणापत्र पारंपरिक और आधुनिक चिकित्सा के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है, जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य प्रणालियाँ अधिक समग्र और प्रभावी बनेंगी।
'दिल्ली घोषणापत्र' का स्पष्ट संदेश है कि भविष्य की स्वास्थ्य प्रणालियाँ प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि सहयोग पर आधारित होंगी, जहां परंपरा और आधुनिकता मिलकर मानव-कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेंगी।
2025 में पारंपरिक चिकित्सा पर तीसरे शिखर सम्मेलन के दौरान, डब्ल्यूएचओ सदस्य देशों से एकीकृत चिकित्सा के साक्ष्यों को आगे बढ़ाने और स्वास्थ्य प्रणालियों में सुधार की दिशा में कार्य करने की अपील करेगा।
'दिल्ली घोषणापत्र' ने पारंपरिक और आधुनिक चिकित्सा के बीच सहयोग की एक नई दिशा प्रदान की है, जिससे समग्र कल्याण और स्वास्थ्य की दिशा में सकारात्मक बदलाव आने की उम्मीद है।
शिखर सम्मेलन में 100 से अधिक देशों के नीति निर्माता, विशेषज्ञ और शोधकर्ता शामिल हुए। सम्मेलन के समापन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पारंपरिक चिकित्सा को केवल जीवन-शैली तक सीमित रखने की पुरानी धारणा को बदलने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि पारंपरिक चिकित्सा गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं में भी प्रभावी साबित हो सकती है, और भारत इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है।
वहीं, डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस ने भारत के एकीकृत चिकित्सा प्रयासों की सराहना की और इसे दुनिया भर में एक सकारात्मक उदाहरण बताया।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने भी स्वास्थ्य नीति में बदलाव की बात करते हुए, आधुनिक और पारंपरिक चिकित्सा के सामूहिक उपयोग को प्रोत्साहित किया।