क्या दिल्ली के 'साहिब' ने दूध-जलेबी की दुकान से पाया था राजनीतिक रास्ता? सीएम बनने के बाद भी डीडीए फ्लैट में रहे

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क्या दिल्ली के 'साहिब' ने दूध-जलेबी की दुकान से पाया था राजनीतिक रास्ता? सीएम बनने के बाद भी डीडीए फ्लैट में रहे

सारांश

साहिब सिंह वर्मा, एक ऐसा नाम जो दिल्ली की राजनीति में सादगी और ईमानदारी का प्रतीक बन गया। उनकी पुण्यतिथि पर उनके विचार और संघर्ष की कहानी जानें, जो हमें आज भी प्रेरित करती है।

Key Takeaways

  • साहिब सिंह वर्मा का जीवन सादगी और संघर्ष का प्रतीक है।
  • उन्होंने जनता की समस्याओं को हमेशा प्राथमिकता दी।
  • साहिब सिंह का राजनीतिक सफर प्रेरणादायक है।
  • उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए भी साधारण जीवन जीने का उदाहरण पेश किया।
  • साहिब सिंह वर्मा की मृत्यु ने राजनीतिक जगत को एक सच्चे जनसेवक से वंचित कर दिया।

नई दिल्ली, 29 जून (राष्ट्र प्रेस)। आज के राजनीतिक परिदृश्य में दिखावा और ताकत की भूख आम हो गई है, ऐसे में साहिब सिंह वर्मा जैसे नेताओं की याद और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। दिल्ली की राजनीति में ऐसा नाम जो सादगी, संघर्ष, ईमानदारी और सेवा का प्रतीक बन गया। डॉ. साहिब सिंह वर्मा की पुण्यतिथि (30 जून) पर जब हम उनके जीवन पर नज़र डालते हैं, तो स्पष्ट होता है कि वे सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि एक विचारधारा थे, एक ऐसे जनसेवक, जो कुर्सी से ज्यादा जनता की परेशानियों को प्राथमिकता देते थे।

प्रवेश वर्मा, जो आज खुद एक प्रभावी राजनीतिक हस्ती हैं, अपने पिता की पहली राजनीतिक मुलाकात को याद करते हुए कहते हैं कि मेरे पिताजी की नौकरी के प्रारंभिक दिनों में जहां वे रहते थे, वहां एक हलवाई की दुकान थी। वहाँ अटल बिहारी वाजपेयी अक्सर दूध-जलेबी खाने आते थे। एक दिन उनकी मुलाकात हुई और यहीं से पिता की राजनीतिक विचारधारा की दिशा तय हुई। वे पहले संघ से जुड़े और फिर भाजपा में शामिल हो गए।

यह मुलाकात किसी साधारण परिचय की तरह शुरू हुई, लेकिन यहीं से एक जाट किसान का बेटा देश की राजधानी की राजनीति में अपनी मजबूत पहचान बनाने की ओर बढ़ा।

हरियाणा के झज्जर जिले के मांडोठी गांव में एक किसान परिवार में जन्मे साहिब सिंह वर्मा का जीवन बेहद साधारण था। पिता मीर सिंह और मां भरपाई देवी के सिखाए मूल्यों के साथ वे बड़े हुए। गांव की मिट्टी में पले-बढ़े साहिब ने किसान की समस्याएं और आम आदमी की कठिनाइयों को करीब से देखा। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से लाइब्रेरी साइंस में मास्टर्स और फिर इसी विषय में पीएचडी की। इसके बाद दिल्ली में बतौर लाइब्रेरियन नौकरी करते हुए भी पढ़ाई और समाजसेवा दोनों को जारी रखा।

साहिब सिंह वर्मा की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत 1977 में दिल्ली नगर निगम के पार्षद बनने से हुई। यह उनकी राजनीतिक यात्रा की पहली सीढ़ी थी। इसके बाद 1991 में उन्होंने बाहरी दिल्ली से लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 1993 में विधानसभा चुनाव जीतकर वे दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना की सरकार में शिक्षा मंत्री बने। दिल्ली की राजनीति में 1996 का साल उथल-पुथल का था। जैन हवाला कांड में नाम आने के कारण लालकृष्ण आडवाणी ने इस्तीफा दे दिया। उनके कहने पर खुराना ने भी पद छोड़ दिया। विधायक दल की बैठक में विधायकों ने उन्हें अपना नेता चुना और वे दिल्ली के मुख्यमंत्री बने।

साहिब सिंह वर्मा का मुख्यमंत्री बनना आसान था, लेकिन सीएम बने रहना कठिन। सरकार में कई मंत्री उनसे असहमत रहते थे और कैबिनेट बैठक में भी नहीं आते थे, क्योंकि वे खुराना गुट से थे। उस समय दिल्ली में बिजली-पानी की भारी किल्लत थी। केंद्र से फंड नहीं मिल रहे थे। विरोध स्वरूप उन्होंने सरकारी गाड़ी लेने से इनकार कर दिया और साइकिल पर चलने लगे। उनके पीछे सुरक्षा की जीपें चलती थीं।

सीएम बनने के बाद भी साहिब सिंह ने डीडीए फ्लैट में रहना जारी रखा। उनके फ्लैट के निकट एक पार्क में सुरक्षा जवानों की तैनाती से कॉलोनीवासी परेशान हो गए। जब लोगों ने शिकायत की, तो उन्होंने बेबाकी से कहा कि मुझे कोई सुरक्षा नहीं चाहिए। कुछ दिन बाद उन्होंने श्याम नाथ मार्ग स्थित सरकारी बंगले में शिफ्ट होकर कॉलोनी की समस्याओं का समाधान किया।

दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के बाद 1999 में वे सांसद बने और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय श्रम मंत्री के रूप में कार्य किया। उनकी छवि एक प्रभावशाली जाट नेता के रूप में बनी रही। हालांकि 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उनका सामाजिक जुड़ाव बना रहा। 30 जून 2007 को एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई।

Point of View

उनकी जीवनशैली हमें प्रेरित करती है।
NationPress
20/12/2025

Frequently Asked Questions

साहिब सिंह वर्मा का जन्म कब हुआ था?
साहिब सिंह वर्मा का जन्म हरियाणा के झज्जर जिले के मांडोठी गांव में हुआ था।
साहिब सिंह वर्मा ने मुख्यमंत्री बनने के बाद क्या किया?
उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद भी डीडीए फ्लैट में रहना जारी रखा और जनता की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया।
साहिब सिंह वर्मा की मृत्यु कब हुई?
साहिब सिंह वर्मा की मृत्यु 30 जून 2007 को एक सड़क दुर्घटना में हुई।
साहिब सिंह वर्मा की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत कब हुई?
उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत 1977 में दिल्ली नगर निगम के पार्षद के रूप में हुई।
साहिब सिंह वर्मा की प्रमुख विचारधारा क्या थी?
उनकी प्रमुख विचारधारा सादगी, ईमानदारी और जनसेवा थी।
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