क्या डेल्टा के किसान स्टालिन सरकार से धान खरीद के लिए नमी सीमा बढ़ाने की मांग कर रहे हैं?

सारांश
Key Takeaways
- किसानों की मांग है कि नमी सीमा को बढ़ाया जाए।
- बारिश के कारण धान की गुणवत्ता प्रभावित हुई है।
- किसानों को सरकारी समर्थन की आवश्यकता है।
चेन्नई, 27 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। पिछले कुछ दिनों से लगातार बारिश के कारण धान की कटाई में कठिनाइयाँ उत्पन्न हो रही हैं। तमिलनाडु के तंजावुर और अन्य डेल्टा जिलों के किसानों में एक असामंजस्य उत्पन्न हो गया है। वे चाहते हैं कि राज्य सरकार मौजूदा खरीद नियमों में सहायता प्रदान करे और त्वरित हस्तक्षेप करे।
किसान यह चाहते हैं कि स्टालिन सरकार सीधे खरीद केंद्रों (डीपीसी) पर खरीदे जाने वाले धान में स्वीकार्य नमी की मात्रा को अस्थायी रूप से 17 प्रतिशत से बढ़ाकर 22 प्रतिशत कर दें। इससे यह सुनिश्चित होगा कि मौसम की नमी के कारण उनकी फसल को अस्वीकृत न किया जाए।
इस कुरुवई सीजन में तंजावुर में लगभग 1.97 लाख एकड़ में धान की खेती की गई है और लगभग आधे क्षेत्र में कटाई पूरी हो चुकी है।
जिले भर की 276 जिला सहकारी समितियों (डीपीसी) में किसान अपनी उपज ला रहे हैं। हालांकि, पिछले हफ्ते की भारी बारिश, खासकर ओराथानाडु जैसे अंदरूनी इलाकों में, कई किसानों के लिए अपनी धान को बिक्री से पहले अच्छे से सुखाना मुश्किल बना दिया है।
अधिकांश डीपीसी के पास अनाज सुखाने के लिए सीमित स्थान है, जिससे बारिश में भीगे अनाज के ढेर खरीद के लिए इंतजार कर रहे हैं।
मौजूदा नियमों के अनुसार, सरकारी खरीद के लिए धान में नमी की मात्रा 17 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। लेकिन बारिश के कारण धान में नमी का स्तर इससे अधिक हो गया है। इसी वजह से किसानों के लिए अपनी उपज को सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य उत्तम किस्म के लिए 2,545 रुपये प्रति क्विंटल और सामान्य किस्म के लिए 2,500 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचना कठिन हो गया है।
अगर किसानों को अस्थायी राहत नहीं मिलती, तो उन्हें मजबूरी में अपनी फसल निजी व्यापारियों को कम दामों पर बेचनी पड़ सकती है। किसानों ने राज्य सरकार से मांग की है कि वह जिला कलेक्टरों को यह अधिकार दे कि वे स्थानीय मौसम की स्थिति के अनुसार नमी के नियमों में थोड़ी छूट दे सकें, ताकि भारतीय खाद्य निगम से औपचारिक मंजूरी का इंतजार न करना पड़े।
किसानों का कहना है कि एफसीआई द्वारा जरूरी क्षेत्रीय निरीक्षण की मौजूदा व्यवस्था के कारण फैसले में देरी होती है। कई बार यह देरी तब तक होती है जब तक फसल कटाई का समय खत्म नहीं हो जाता, जिससे किसान सरकारी खरीद का फायदा नहीं उठा पाते।