क्या गयाजी में दुर्गाबाड़ी पूजा समिति का 'सिंदूर खेला' सफल रहा?

सारांश
Key Takeaways
- सिंदूर खेला का महत्व वैवाहिक जीवन में खुशियों का प्रतीक है।
- गयाजी की दुर्गाबाड़ी पूजा समिति का आयोजन सांस्कृतिक पहचान को प्रकट करता है।
- महिलाएं पारंपरिक भारतीय परिधान में भक्ति और आनंद में डूबी रहती हैं।
गयाजी, 2 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। दुर्गाबाड़ी पूजा समिति द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में मां दुर्गा की विदाई एक भावुक वातावरण में संपन्न हुई। इस अवसर पर बंगाली समाज की महिलाओं ने पारंपरिक ‘सिंदूर खेला’ कार्यक्रम में भाग लिया और मां को विदा किया। सुहागिन महिलाओं ने मां दुर्गा के चरणों और माथे पर सिंदूर चढ़ाया, फिर एक-दूसरे की मांग सजाई और चेहरे पर भी सिंदूर लगाकर खुशियां मनाईं। महिलाएं पूरी तरह से पारंपरिक भारतीय परिधान में भक्ति और आनंद में डूबी हुई दिखाई दीं।
समिति की पदाधिकारी सुजाता चक्रवर्ती ने बताया कि हर वर्ष की तरह इस बार भी दुर्गाबाड़ी पूजा समिति की ओर से भव्य प्रतिमा स्थापित की गई थी। षष्ठी से मां की पूजा आरंभ हुई और फिर सप्तमी, अष्टमी और नवमी पर विशेष अनुष्ठान किए गए। दशमी को मां की विदाई के साथ ही सिंदूर खेला का आयोजन किया गया।
उन्होंने कहा कि हम सब मां से यही प्रार्थना करते हैं कि वह अपने बच्चों की झोली खुशियों से भर दें। मां हमें हर संकट से उबारें और शक्ति व समृद्धि प्रदान करें। विसर्जन के साथ ही सभी श्रद्धालु अगले वर्ष मां के पुनः आगमन की प्रतीक्षा में डूब गए।
यह ध्यान देने योग्य है कि गयाजी की दुर्गाबाड़ी पूजा समिति का यह आयोजन शहर के प्रमुख धार्मिक आयोजनों में से एक माना जाता है। यहां न केवल बंगाली समाज बल्कि स्थानीय लोग भी बड़ी संख्या में उपस्थित होते हैं। खासकर दशमी के दिन होने वाला सिंदूर खेला अब गयाजी की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है। महिलाएं मानती हैं कि यह उत्सव वैवाहिक जीवन की खुशहाली और परिवार की समृद्धि का प्रतीक है।
मां दुर्गा की विदाई के साथ पूरे पंडाल में भावुकता और आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिला। श्रद्धालुओं की आंखें नम थीं, लेकिन मन में विश्वास था कि अगले साल मां फिर से अपने भक्तों को आशीर्वाद देने आएंगी।