क्या गृह मंत्री अमित शाह ने ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता विनोद कुमार शुक्ला को श्रद्धांजलि दी?
सारांश
Key Takeaways
- विनोद कुमार शुक्ला का साहित्य में अद्वितीय योगदान है।
- उनकी लेखन शैली ने हिंदी साहित्य को नई पहचान दी।
- उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- उनकी रचनाएँ सदैव याद की जाएंगी।
- उनका निधन एक युग का अंत है।
नई दिल्ली/रायपुर, 23 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिंदी साहित्य के महान विद्वान और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता विनोद कुमार शुक्ला का मंगलवार को रायपुर स्थित एम्स में उपचार के दौरान निधन हो गया। उनकी आयु 89 वर्ष थी। शुक्ला अपनी प्रयोगात्मक किन्तु सरल लेखन शैली के लिए जाने जाते थे। वह लंबे समय से विभिन्न अंगों में संक्रमण से पीड़ित थे, और उन्होंने शाम 4:48 बजे अंतिम सांस ली।
सूत्रों के अनुसार, उन्हें 2 दिसंबर को सांस की समस्या के चलते एम्स में भर्ती कराया गया था, जहां उन्हें ऑक्सीजन और वेंटिलेटर पर रखा गया था।
उनका अंतिम संस्कार बुधवार को सुबह 11 बजे रायपुर के मारवाड़ी मुक्तिधाम में किया जाएगा। उनके परिवार में उनकी पत्नी, पुत्र और एक पुत्री हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्ला के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार, भारतीय ज्ञानपीठ से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल जी का निधन साहित्य जगत के लिए बहुत बड़ी क्षति है। उनकी सादगीपूर्ण लेखन शैली और सरल व्यक्तित्व के लिए प्रसिद्ध शुक्ल जी को उनकी अद्वितीय लेखन कला के लिए हमेशा याद किया जाएगा। मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों, प्रशंसकों और अनगिनत पाठकों के साथ हैं। ईश्वरॐ शांति शांति शांति
इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए एक्स पर लिखा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात लेखक विनोद कुमार शुक्ल के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। हिंदी साहित्य जगत में उनके अमूल्य योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति.
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में 1 जनवरी 1937 को जन्मे शुक्ला ने अध्यापन को अपना पेशा चुना, लेकिन उन्होंने अपना जीवन साहित्य को समर्पित कर दिया।
उनकी पहली कविता, 'लगभग जयहिंद' 1971 में प्रकाशित हुई, जिसने हिंदी साहित्य में उनके उल्लेखनीय सफर की शुरुआत की।
उनके उल्लेखनीय उपन्यासों में 'दीवार में एक खिड़की रहती थी', 'नौकर की कमीज', और 'खिलेगा तो देखेंगे' शामिल हैं।
फिल्म निर्माता मणि कौल ने 1979 में 'नौकर की कमीज' पर बॉलीवुड फिल्म भी बनाई, जबकि 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
शुक्ला की लेखन शैली अपनी सहज सरलता और अनूठी शैली के लिए जानी जाती थी, जिसमें अक्सर रोजमर्रा की जिंदगी को गहन कथाओं में पिरोया जाता था।
उनकी रचनाओं ने भारतीय साहित्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और पाठकों में एक नई चेतना का संचार किया।
2024 में उन्हें 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिससे वे छत्तीसगढ़ के पहले लेखक बन गए जिन्हें यह प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुआ।
वे इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाले 12वें हिंदी लेखक हैं।
हिंदी साहित्य में विनोद कुमार शुक्ला का अद्वितीय योगदान, उनकी रचनात्मकता और उनकी विशिष्ट शैली साहित्यिक इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अंकित रहेगी।
उनका निधन एक युग का अंत है, लेकिन उनकी विरासत पाठकों और लेखकों की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।