क्या यूनुस के प्रेस सचिव की पोस्ट ने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर चिंता जताई?

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क्या यूनुस के प्रेस सचिव की पोस्ट ने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर चिंता जताई?

सारांश

बांग्लादेश में प्रेस सचिव शफीकुल आलम की सोशल मीडिया पोस्ट ने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर गहरी चिंताएं उत्पन्न की हैं। क्या सरकार की असहाय स्थिति देश के नागरिकों की सुरक्षा को खतरे में डाल रही है? जानिए इस गंभीर मुद्दे पर विस्तृत जानकारी।

Key Takeaways

  • शफीकुल आलम की पोस्ट ने सुरक्षा पर चिंताओं को उजागर किया।
  • हिंसक हमले से पत्रकारों का जीवन खतरे में पड़ा।
  • सरकार की असहायता ने नागरिकों में भय पैदा किया है।
  • सुरक्षा मांगने के बावजूद मदद नहीं मिली।
  • बांग्लादेश में कानून व्यवस्था की स्थिति चिंताजनक है।

नई दिल्ली, 23 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम की एक सोशल मीडिया पोस्ट ने देश में कानून-व्यवस्था और आम नागरिकों, विशेषकर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताओं को जन्म दिया है।

प्रेस सचिव ने मीडिया संस्थानों पर हुए हिंसक हमलों के दौरान अपनी ‘बेबस स्थिति’ का जिक्र करते हुए बांग्लादेश के प्रमुख बंगाली अखबार प्रथम आलो से सवाल किया, “यदि सरकार के प्रभावशाली लोग खुद को असहाय मानते हैं, तो आम लोग कहाँ जाएँ?”

वास्तव में, 19 दिसंबर को शफीकुल आलम ने अपने आधिकारिक फेसबुक अकाउंट पर लिखा कि 18 दिसंबर की रात उन्हें द डेली स्टार और प्रथम आलो के पत्रकार मित्रों के घबराए हुए फोन आए थे। उन्होंने मदद के लिए कई जगह फोन किए, लेकिन समय पर सहायता नहीं पहुंच सकी।

उन्होंने लिखा, “मुझे अत्यंत खेद है कि मैं अपने पत्रकार दोस्तों की मदद नहीं कर सका। मैंने सही लोगों को फोन किया, मदद जुटाने की कोशिश की, लेकिन वह समय पर नहीं आ सकी।”

यह ध्यान देने योग्य है कि 18 दिसंबर की रात ढाका में इन दोनों प्रमुख मीडिया संस्थानों के दफ्तरों पर हिंसक भीड़ ने हमला किया। आलम के अनुसार, कर्मचारियों के साथ मारपीट की गई, दफ्तरों में तोड़फोड़ की गई और आगजनी भी की गई।

उन्होंने बताया कि तड़के लगभग 5 बजे उन्हें यह जानकारी मिली कि द डेली स्टार में फंसे सभी पत्रकार सुरक्षित बाहर निकाल लिए गए हैं, लेकिन तब तक दोनों अखबार देश के सबसे गंभीर भीड़-हमलों में से एक का सामना कर चुके थे।

पोस्ट के अंत में आलम ने लिखा, “मैं नहीं जानता कि आपको सांत्वना देने के लिए कौन से शब्द पर्याप्त होंगे। एक पूर्व पत्रकार होने के नाते मैं शर्मिंदा हूं।”

उनकी इस पोस्ट पर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं आईं। एक यूजर ने लिखा कि यह हमला सीधे तौर पर राज्य की विफलता को दर्शाता है। दूसरे ने कहा, “यह सब आपकी अंतरिम सरकार के कार्यकाल में हुआ है। सुरक्षा सुनिश्चित न कर पाने की जिम्मेदारी से आप बच नहीं सकते।”

एक अन्य यूजर ने टिप्पणी की, “यह बेहद निराशाजनक है। पहले जरूरी कदम नहीं उठाए गए और अब नतीजे भुगतने पड़ रहे हैं।”

इस बीच, प्रथम आलो ने हमले के एक दिन बाद जारी बयान में कहा कि संभावित खतरे को देखते हुए उसने पहले ही सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और संबंधित प्राधिकरणों से सुरक्षा की मांग की थी, लेकिन मदद पहुंचने से पहले ही कार्यालय में तोड़फोड़ हो गई।

अखबार के अनुसार, जान बचाने के लिए पत्रकारों और कर्मचारियों को दफ्तर छोड़ना पड़ा। बाद में पुलिस और दमकल विभाग के पहुंचने पर हालात काबू में आए।

मीडिया विश्लेषक निशात सुलताना ने अपने कॉलम में सवाल उठाया कि जब सरकार का इतना जिम्मेदार और प्रभावशाली प्रतिनिधि सार्वजनिक रूप से अपनी असहायता जता रहा है, तो यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।

उन्होंने लिखा कि शुरुआत से ही अंतरिम सरकार अपराध पर नियंत्रण और आपात हालात से निपटने में असफल रही है, जिसके चलते कानून हाथ में लेने वाली ताकतें बार-बार हावी होती रही हैं।

Point of View

तो यह दर्शाता है कि कानून व्यवस्था में गंभीर खामियाँ हैं।
NationPress
23/12/2025

Frequently Asked Questions

बांग्लादेश में पत्रकारों की सुरक्षा का क्या हाल है?
बांग्लादेश में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएँ हैं, विशेषकर हाल के हिंसक हमलों के बाद।
क्या सरकार ने इस मामले में कोई कदम उठाए हैं?
सरकार ने सुरक्षा के लिए मांग की गई थी, लेकिन समय पर मदद नहीं मिल पाई।
शफीकुल आलम की पोस्ट का क्या महत्व है?
उनकी पोस्ट ने सरकार की असहायता को उजागर किया है और नागरिकों की सुरक्षा पर सवाल उठाया है।
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